देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो हफ्ते पहले अपनी कैबिनेट का विस्तार किया था। साथ ही 43 मंत्रियों को शपथ दिलाया था। तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष एल मुरुगन को भी राज्यमंत्री का शपथ दिलाया है। 44 साल के मुरुगन का जीवन काफी लंबा संघर्ष भरा रहा है। मगर अब उन्होने मेहनत कर के दिल्ली तक का सफर तय कर लिया है। इस समय उनके माता पिता की खुब चर्चा हो रही है। ये दोनों राजनीति की चकाचौंध से दूर तमिलनाडु के एक गांव में मजदूरी करते है। मुरुगन के मां-बाप को बेटे की कामयाबी पर बेहद गर्व तो है, लेकिन वो अपनी खुद की जिंदगी जीना चाहते है। वो जिंदगी जिसने उन्हें दो वक्त की रोटी देती है।
मीडिया की टीम जब उनके घर पहुंची तो मुरुगन के माता-पिता दिल्ली से करीब ढाई हज़ार किलोमीटर दूर नमाक्कल ज़िले के कोन्नूर गांव में काम करते दिखाई दिए। 59 साल की मां ए वरुदाम्मल और 68 साल के पिता एल लॉगानथन कि खेत में मजदूरी करते है। मीडिया को उनके माता पिता से बात करने के लिए खेत के मालिक से इजाजत लेनी पड़ी थी।

खबरों के अनुसार जब मुरुगन के माता-पिता से बातचीत हुई तो उन्होंने अपने बेटे की कामयाबी का श्रेय लेने के लिए साफ इंकार कर दिया। उनका कहना था कि, ‘अगर हमारा बेटा केंद्रीय मंत्री बन जाए तो हम क्या कर सकते हैं। हमने उसके करियर में तरक्की के लिए कुछ भी नहीं कर सका।
एल मुरुगन दलित परिवार से तालुक रखते है। और वो अरुणथातियार समुदाय से आते हैं। नमक्कल ज़िले में इनका एक छोटा सा घर है। माता पिता को जब भी जो काम मिलता है वो आसानी से कर लते हैं। कभी खेतों में मजदूरी तो कभी कुली काम का काम. जब इन्हें अपने पड़ोसियों से बेटे की मंत्री बनने की खबर मिली ये दोनों खेतों में लगे हुए थे। लेकिन बेटे की कामयाबी के बारे में सुनने के बाद भी ये नहीं रुके और लगातार काम मे लगे रहे।

एल मुरुगन के माता पिता ने बताया हमने अपने बेटे को कर्ज के कर पढ़ाया है। बेटा पढ़ाई में बहुत अच्छा था। उन्होंने सरकारी स्कूल से पढ़ाई की। फिर बाद में मुरुगन ने चेन्नई के आंबेडकर लॉ कालेज से कानून की पढ़ाई पूरी कि। पिता को बेटे की पढ़ाई के लिए दोस्तों में पैसे उधार लेना पड़ता था। मुरुगन ने भाजपा की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष बनने के बाद चेन्नई में अपने माता-पिता को साथ रहने के लिए बुलाया था, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वे वापसक चले गए। मुरुगन की मां ने कहा, ‘हमलोग कभी-कभी तीन-चार दिनों के लिए चेन्नई जाते थे, लेकिन उसके बिजी लाइफस्टाइल में हम फिट नहीं हो पाते है। लिहाजा हमलोग फिर से अपने गांव कोन्नूर आ गए है, और अब यहीं रहते है।