Waris Punjab De: लवप्रीत सिंह को ‘तूफान’ के नाम से भी जाना जाता है। लवप्रीत सिंह वही आदमी है जिसके लिए पिछले दिनों अमृतसर में भारी अशांति देखी गई थी। अब उसे अमृतसर सेंट्रल जेल से रिहा कर दिया गया है। उसे अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस इंसान के खातिर ‘वारिस पंजाब दे’ से जुड़े हजारों लोग पुलिस से भिड़ गए थे और खुलेआम तलवारें और बंदूकें लहरा रहे थे। यह इस समूह की बढ़ती ताकत का खुला प्रदर्शन था जो धीरे-धीरे पंजाब में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। पंजाब की आजादी और सिख संस्कृति को उसके पूर्व गौरव को बहाल करने के लिए ‘वारिस पंजाब दे’ का आह्वान पंजाब के युवाओं में काफी लोकप्रिय हो रहा है। कई लोगों के अनुसार, यह संगठन खालिस्तान की मांगों को फिर से हवा दे रहा है और पंजाब के युवाओं में फिर से अलगाववाद के बीज बो रहा है। लेकिन इस समूह की कहानी क्या है? समूह का नेतृत्व कौन कर रहा है? आइये यहां सबकुछ विस्तार से जानते हैं:
दीवार पर चेतावनी थी। पंजाब पुलिस राज्य में खालिस्तान आंदोलन के उदय के बारे में पहले से जानती थी और फिर भी अमृतपाल सिंह को निशाने पर लेने का फैसला किया। पंजाब पहले भी आतंकवाद की चपेट में रहा है। इसकी कीमत देश को एक प्रधानमंत्री और एक मुख्यमंत्री को चुकानी पड़ी थी। जब अमृतपाल सिंह के समर्थकों ने लवप्रीत सिंह के लिए थाने पर कहर बरपाया, तो पंजाब पुलिस की नींद खुल गई। लेकिन पंजाब पुलिस ने चुप्पी साधे रहकर अपने कार्यों का बचाव किया।
हालांकि, अमृतपाल कोई नई घटना नहीं है। वह पिछले कई महीनों से लगातार बढ़ रहा है। ‘वारिस पंजाब दे’, जिसका नेतृत्व अमृतपाल कर रहा है, हमेशा अस्तित्व में था और इसकी स्थापना दिवंगत अभिनेता दीप सिद्धू ने की थी। एक सड़क दुर्घटना में सिद्धू की मौत के बाद, अमृतपाल सिंह को नेता बनाया गया। अमृतपाल अकसर स्पोर्ट्स आर्म्स के साथ भीड़ इकट्ठा कर लेता है। माना जाता है कि अमृतपाल के अनुयायी हिंसक हैं और कई हमले कर चुके हैं। एक अधिकारी का कहना है कि इस शख्स पर पंजाब सरकार या पुलिस ने पर्याप्त होमवर्क क्यों नहीं किया। शायद यही वजह है कि आज अमृतपाल की तुलना खूंखार आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले से हो रही है।
घटना के बाद पंजाब पुलिस ने क्या कहा?
पंजाब पुलिस ने कहा कि गड़बड़ी करने वालों के हाथ में गुरु ग्रंथ साहिब था और इसलिए उन्होंने सम्मान की वजह से कार्रवाई नहीं की। इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि अगर उन्होंने प्रतिक्रिया दी होती तो स्थिति और बिगड़ सकती थी। अंततः परिणाम यह हुआ कि लवप्रीत को रिहा कर दिया गया। जानकारों का दावा है कि यह पंजाब सरकार के हाथ से निकल चुका है और अब समय आ गया है कि केंद्र इस मुद्दे को उठाए, जैसा कि जम्मू-कश्मीर में हुआ था, जहां कानून-व्यवस्था की स्थिति नियंत्रण में है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह एजेंडा नहीं फलेगा। हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं और पंजाब सरकार से बात कर रहे हैं, शाह ने एएनआई प्रमुख स्मिता प्रकाश से कहा था। उन्होंने यह भी कहा कि डरने की जरूरत नहीं है।
‘वारिस पंजाब दे’ का उदय
‘वारिस पंजाब दे’ की स्थापना दिवंगत अभिनेता और कार्यकर्ता दीप सिद्धू ने की थी। सिद्धू का फरवरी 2022 में दिल्ली से बठिंडा जाते समय एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था। बता दें कि सिद्धू ने पंजाब चुनाव से पहले सितंबर 2021 में समूह की स्थापना की थी। संगठन के बारे में बात करते हुए सिद्धू ने कहा था कि हम किसी भी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं कर रहे हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई, यह उन सभी के लिए है जो पंजाब के अधिकारों के लिए हमारे साथ लड़ेंगे।”
जब अमृतपाल सिंह ने संभाला मोर्चा
सिद्धू की मौत के बाद खालिस्तान समर्थकअमृतपाल सिंह को संगठन की कमान सौंपी गई। जरनैल सिंह भिंडरावाले के पैतृक गांव मोगा जिले में आयोजित एक समारोह में अमृतपाल सिंह को ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख नियुक्त किया गया था। उनके कुछ समर्थक उन्हें “भिंडरावाले 2.0” कहते हैं। लेकिन सिद्धू के परिवार का दावा है कि वह अमृतपाल सिंह को नहीं जानते हैं। बता दें कि वारिस पंजाब डे पिछले साल तब सुर्खियों में आए थे जब उनके समर्थकों ने जालंधर में मॉडल टाउन गुरुद्वारे की कुर्सियां जला दी थीं।
यह भी पढ़ें: