परमाणु ऊर्जा विभाग (डीईए) की इकाई ‘भारी जल बोर्ड’ ने हवा से ऑक्सीजन-18 को अलग करने की तकनीक विकसित की है जिससे आरंभिक चरण में ही कैंसर की जांच सस्ती हो जायेगी। बोर्ड के एक वैज्ञानिक ने बताया कि ऑक्सीजन-18 वाले पानी का इस्तेमाल ‘फ्लोरीन-18 ग्लूकोज’ बनाने में होता है। यह ग्लूकोज कैंसर की शुरुआती जाँच की अत्याधुनिक तकनीक पॉजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) का आवश्यक तत्त्व है। अभी पीईटी जांच काफी महँगी है, लेकिन फ्लोरीन-18 ग्लूकोज देश में ही बनने से यह काफी सस्ता हो जायेगा और अंतत: कैंसर की जाँच भी सस्ती हो जायेगी।

ऑक्सीजन का परमाणु भार आम तौर पर 16 इकाई होता है। ऑक्सीजन-18 इसका समस्थानिक है जिसका परमाणु भार 18 होता है। ऑक्सीजन-18 वाला पानी भी प्राकृतिक रूप से मिलता है, लेकिन इसकी मात्रा बहुत कम होती है। आम तौर पर नदियों में बहने वाले पानी या अन्य प्राकृतिक जल में ऑक्सीजन-18 वाला पानी भी साथ-साथ पाया जाता है, लेकिन इसे अलग करना एक चुनौती है।

भारी जल बोर्ड के वैज्ञानिक ने बताया कि अभी कैंसर की जाँच के लिए ऑक्सीजन-18 वाला पानी आयात किया जा रहा है। दुनिया के कुछ ही देशों के पास इस तरह का भारी पानी बनाने की तकनीक है। आयात करने पर इसकी कीमत करीब एक हजार डॉलर प्रति ग्राम आती है। वहीं बोर्ड द्वारा बनाये गये ऑक्सीजन-18 के पानी की कीमत 200 डॉलर प्रति ग्राम आती है। इस प्रकार इससे फ्लोरीन-18 ग्लूकोज और कैंसर की पीईटी जाँच के भी सस्ता होने की उम्मीद है।

अभी ऑक्सीजन-18 वाले स्वदेशी भारी पानी का इस्तेमाल प्रयोग के तौर पर नवी मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर के एडवांस सेंटर फॉर ट्रीटमेंट, रिसर्च एंड एजुकेशन इन कैंसर में किया जा रहा है तथा इसकी गुणवत्ता आयातित ग्लूकोज से किसी प्रकार कम नहीं है।

उन्होंने बताया कि इसका उत्पादन तेलंगाना के मानुगुरु स्थित भारी जल संयंत्र में किया जा रहा है। बोर्ड द्वारा अभी इस पानी का उत्पादन कुछ ही किलोग्राम किया जा रहा है, लेकिन जरूरत पर पड़ने पर उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि जांच सस्ती होने पर ज्यादा लोग इसका फायदा उठाने के लिए सामने आयेंगे जिससे मांग भी बढ़ेगी।

-साभार, ईएनसी टाईम्स

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