चुनाव परिणामों की घोषणा के बावजूद लंबे समय से जारी नेपाल (Nepal) में राजनीतिक अस्थिरता आखिरकार रविवार 25 दिसंबर को खत्म हो गई। इसके साथ ही इस कहावत को भी बल मिला कि राजनीति में कोई किसी का तो स्थाई दोस्त या दुश्मन नही होता। इस कहावत को चरितार्थ में बदलते हुए पुष्प कमल दहल – प्रचंड (Pushpa Kamal Dahal – Prachand) ने सत्ता के लिए नेपाली कांग्रेस के हाथ को छोड़कर अपने पुराने साथी केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) के साथ हाथ मिलाया है।
नेपाल में 2015 में संविधान (Constitution) के बदलने के बाद से ये दूसरा चुनाव था। नया प्रधानमंत्री मिलने में लगातार हो रही देरी के चलते नेपाल में राजनीतिक संकट गहराता जा रहा था जिसको लेकर राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने चेताया भी था। 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा वोटर वाले नेपाल में 2008 में खत्म हुई राजशाही के बाद से दस बार सरकारें बदल चुकी हैं।
क्या है Nepal में मौजूदा स्थिति?
सीपीएन-माओवादी सेंटर (Communist Party of Nepal – Maoist Centre) के अध्यक्ष पुष्प कमल ने पूर्व पीएम और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्कसिस्ट-लेनिलिस्ट) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली के साथ रविवार को प्रधान मंत्री पद पर दावेदारी के लिए राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी (Bidhya Devi Bhandari) को छह सहयोगी दलों का समर्थन पत्र सौंपा। इस दौरान अन्य सहयोगी दलों के मुखिया भी उपस्थित रहे।
नेपाल में 20 नवंबर को हुए चुनाव से ठीक पहले गठबंधन करते हुए नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) और सीपीएन-माओवादी सेंटर प्रमुख प्रचंड ने बारी-बारी से सरकार का चलाने को लेकर एक समझौता (Agreement) किया था। लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी सीट न मिलने का कारण अब तक सरकार नहीं बन पा रही थी।
सरकार बनाने को लेकर 25 दिसंबर को क्या हुआ?
19 दिसंबर 2022 को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा नई सरकार के गठन को लेकर सभी राजनीतिक दलों को लिखे गये पत्र में 25 दिसंबर तक सरकार बनाने का समय दिया गया था। रविवार को हुई नेपाली कांग्रेस के साथ बैठक के दौरान CPN-Maoist Centre के मुखिया प्रचंड बिना किसी सहमति के बैठक से बाहर चले गए और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्कसिस्ट-लेनिलिस्ट) के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली से मुलाकात कर ढाई-ढाई साल के लिए सरकार चलाने के फार्मूले पर सहमत हो गये। 25 दिसंबर को हुए समझौते के तहत पहले ढाई साल के लिए प्रचंड नेपाल की सत्ता संभालेंगे वहीं, ढाई साल के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड मार्कसिस्ट-लेनिलिस्ट) के नेता नेपाल की सत्ता चलाएंगें।
2022 के Nepal चुनाव के नतीजें?
20 नवंबर को हुए चुनाव के बाद आये नतीजों में नेपाल की 275 सदस्यों वाली संसद में नेपाली 89 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी, जबकि उनकी प्रमुख विपक्षी पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल – एकीकृत मार्कसिस्ट लेनिनिस्ट (सीपीएन-यूएमएल) को 78 सीटें मिली। तीसरे नंबर पर 53 सीटों के साथ प्रचंड की सीपीएन-एमसी और चौथे नंबर पर 20 सीटों के साथ राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसडब्लू), पांचवें नंबर पर 14 सीटों के साथ राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी (आररपीपी) इनके अलावा जनता समाजवादी पार्टी (आरएसडब्लू) को 12 सीट, सीपीएन-यूएस को 10, जनमत पार्टी (जेपी) को 6, एलएसपी को 4 और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी (एनयूपी) को 3 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा।
कौन हैं पुष्प कमल दहल (प्रचंड)?
पुष्प कमल दहल जिन्हे प्रचंड के नाम से भी जाना जाता है का जन्म 11 दिसंबर, 1954 को नेपाल के पोखरा प्रांत के पास कास्की जिले के धीकुर पोखरी में हुआ था। 1975 में उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की। 1980 में प्रचंड ऑल नेपाल नेशनल फ्री स्टूडेंट्स संघ (क्रांतिकारी) नेता बने। ये संघ नेपाल की कट्टरपंथी कम्युनिस्ट पार्टी (मसाल), या सीपीएन से जुड़ा हुआ था। बाद में प्रचंड को सीपीएन (मशाल) के पोलित ब्यूरो का सदस्य बनाया गया और इसके बाद उन्हें इसका महासचिव बना दिया गया। 1990 में कई वामपंथी दलों के विलय के बाद सीपीएन (यूनिटी सेंटर) बनाया गया और प्रचंड को इसका महासचिव बनाया गया। हालांकि, 1994 में ये पार्टी फिर से विभाजित हो गई जिसेक बाद1995 में, दहल ने अपनी शाखा का नाम बदलकर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी) कर दिया।
शुरू से रहें हैं विद्रोही
प्रचंड की सीपीएन (माओवादी) ने 1996 में नेपाल में राजशाही के खिलाफ अपना उग्रवादी (Insurgency) अभियान शुरू किया। इसने 13 फरवरी, 1996 को कई पुलिस थानों पर हमला किया जिसके बाद प्रचंड 10 साल तक भूमिगत रहे, जिसमें से कहा जाता है कि उन्होंने 8 साल भारत में बिताए। 1996 में जारी हुआ उनका संघर्ष 2006 में व्यापक शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ खत्म हुआ।
दहल अपने एक दशक के सशस्त्र विद्रोह को खत्म करने के बाद से मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हुए और 15 अगस्त 2008 को पहली बार नेपाल के प्रधान मंत्री बने हालांकि वो एक साल से भी कम समय तक ही इस पद पर रहे। इसके बाद अगस्त 2016 में उन्हें फिर से प्रधान मंत्री चुना गया जिसके बाद 2017 में उन्हें समझौते की शर्तों के अनुसार अपने पद से इस्तीफा दे दिया। नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ने इनके बाद देश की कमान संभाली थी।
पूर्ववर्ती KP Sharma Oli सरकार के कार्यकाल में भारत के साथ बढ़ी थी तकरार
पहले ढ़ाई साल नेपाल की सत्ता को संभालने के बाद प्रचंड नेपाल की कमान केपी शर्मा ओली को सौंपेंगे जिनके भारत के साथ पिछले कुछ समय से संबंध ठीक नहीं रहे हैं। हालांकि, 20 नवंबर 2022 को हुए चुनावों से पहले प्रचार के दौरान पूर्व नेपाली पीएम के पी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने कहा था कि वो प्रधान मंत्री बनते ही भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद हल कर देंगे। वे देश की एक इंच भूमि भी नहीं जाने देंगे।
जब ओली नेपाल के प्रधान मंत्री थे तो उन्हें कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा जो भारत के हिस्सें हैं को नेपाल में दर्शाता हुआ नया नक्षा (Map) जारी किया था जिसको लेकर दोनों देशों में खासा विवाद हुआ था। भारत इन्हें अपने उत्तराखंड प्रांत का हिस्सा मानता है। ओली ने इस नक्शे को नेपाली संसद से भी पास करा लिया था।
क्या था 2017 के चुनाव में हाल?
नेपाल में नया संविधान के बाद 2017 में हुए आम चुनाव में देश के सात में से छह प्रांतों के अलावा केंद्र में सरकार बनाने के लिए कम्युनिस्टों को लगभग दो तिहाई बहुमत मिला। लेकिन अंदरूनी मतभेदों की वजह से, कम्युनिस्ट बेहतर प्रदर्शन कर पाने में असफल रहे और इस दौरान बिखर गए। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए, शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व वाली नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने कम्युनिस्टों के बिखरे समूह और मधेस आधारित राजनीतिक दलों की मदद से 275 सदस्यीय संसद में मात्र 61 सीट होने के बावजूद 13 जुलाई 2021 को नेपाल में सरकार बनाई।
भारत-नेपाल के बीच संबंध
नेपाल ने 1950 में दोनों देशों के बीच वर्ष 1950 में हुई भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि में संशोधन की मांग की थी जिसे भारत ने इसे स्वीकार कर लिया था। लेकिन नेपाल में बढ़ते चीन के दखल ने भारत की चिंता को बढ़ाया है। चीन और नेपाल के बीच आर्थिक संबंधों में वर्ष 2015 से बढ़ोतरी देखने को मिली लेकिन 2018 आते-आते नेपाल में चीन का हस्तक्षेप काफी बढ़ना शुरू हो गया। इसके अलावा ‘नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी’ के गठन में भी चीन की काफी महत्वपूर्ण भूमिका होने के कारण वह उस समय की NCP सरकार में अपने अत्यधिक प्रभाव स्थापित करने में सफल रहा।
नेपाल में चीन के बढ़ते प्रभाव का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चीन ने नेपाल में सबसे बड़े निवेशक के रूप में भारत को पीछे छोड़ दिया है।