करे कोई भरे कोई। यह कहावत गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की समस्या को बेहतर तरीके से चरितार्थ करती है। पहले महाराष्ट्र में और अब गुजरात में उत्तर भारतीयों को मार-मार कर भगाया जाने लगा है। गुजरात में एक बिहारी द्वारा किया गया कुकर्म वहां रह रहे सभी उत्तर भारतीयों को इतना महंगा पड़ने वाला है, यह किसी ने भी नहीं सोचा होगा। हाल ये है कि अब राज्य के औद्योगिक क्षेत्र पर भी इसका प्रभाव पड़ने लगा है। पीएम मोदी द्वारा उद्योग क्षेत्र के विकास के लिए शुरू की गई वाइब्रेंट गुजरात की नीति ने जहां प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ने का मौका दिया, वहीं अब रुपाणी सरकार के कार्यकाल में बन रही ऐंटी माइग्रेंट गुजरात की छवि ने यहां उद्योग और निवेश की संभावनाओं पर सवालिया निशान लगाना प्रारंभ कर दिया है।
वहीं इस मसले पर कांग्रेस ने बीजेपी को घेरते हुए कहा है कि गुजरात मॉडल की पोल खुल गई है। राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा कि गरीबी खुद एक बड़ी दहशत है। वहीं गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने राहुल गांधी के ट्वीट का जवाब दिया है। उन्होंने पलायन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए पूछा कि क्या राहुल गांधी को इस तरह ट्वीट कर शर्म नहीं आ रही।
ग़रीबी से बड़ी कोई दहशत नहीं है| गुजरात में हो रहे हिंसा की जड़ वहाँ के बंद पड़े कारख़ाने और बेरोज़गारी है|
व्यवस्था और अर्थव्यवस्था दोनो चरमरा रही है|
प्रवासी श्रमिकों को इसका निशाना बनाना पूर्णत ग़लत है| मैं पूरी तरह से इसके ख़िलाफ़ खड़ा रहूँगा| pic.twitter.com/yLabmmZDwk
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) October 8, 2018
हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने इस मुद्दे पर कहा है कि जो भी इस स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। खास बात ये है कि साणंद इंडस्ट्रीज असोसिएशन के अध्यक्ष अजीत शाह का कहना है कि उत्तर भारतीय मजदूरों के राज्य छोड़ने से करीब 25 हजार करोड़ रुपये की औद्योगिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं। मजदूरों पर लगातार हो रहे हमले और सोशल मीडिया पर अफवाहों के दौर के बीच अब तक राज्य से करीब 20 हजार मजदूर अपने गृह राज्यों को वापस लौट चुके हैं, जिसके कारण गुजरात की तमाम औद्योगिक इकाइयों में कामकाज ठप हो गया है।