केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के अंदर सभी महिलाओं को इजाजत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा- 5 जज बेंच में शामिल थे।
हालांकि यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है। बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ दिनों तक चली सुनवाई के बाद एक अगस्त को इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
#NEWS: कोर्ट ने महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में प्रवेश का दिया अधिकार, धर्म के मामले में महिलाएं बराबर की हिस्सेदार, महिलाओं को पूजा से रोकना मूल अधिकार का हनन:#SupremeCourt
4-1 के बहुमत से महिलाओं को मंदिर में प्रवेश का अधिकार मिला#Sabarimala #SabrimalaVerdict #CJIDipakMisra pic.twitter.com/s1NTXNvLTC— APN न्यूज़ हिंदी (@apnlivehindi) September 28, 2018
शुक्रवार को भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए बड़ा दिन बनाते हुए सीजेआइ ने कहा, ‘सबरीमाला मंदिर की परंपरा संवैधानिक नहीं है। सबरीमाला की पंरपरा को धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं माना जा सकता।’ वहीं फैसला सुनाते हुए जस्टिस रोहिंगटन नरीमन ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार, यह मौलिक अधिकार है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूजा से इंकार करना महिलाओं की गरिमा से इंकार करना है। उन्होंने सवाल किया, क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है?
जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने रखी अलग राय
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसले में अपना पक्ष सुनाते हुए जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि इस मुद्दे का असर दूर तक जाएगा। धार्मिक परंपराओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए। अगर किसी को किसी धार्मिक प्रथा में भरोसा है, तो उसका सम्मान होना चाहिए, क्योंकि ये प्रथाएं संविधान से संरक्षित हैं। समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ ही देखना चाहिए और कोर्ट का काम प्रथाओं को रद करना नहीं है।
सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन देख रहे त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड (टीडीबी) ने कहा है कि उसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर है। वह कोई पुनर्विचार याचिका दायर नहीं करेगा।
सबरीमाला के मुख्य पुजारी कंडारारू राजीवारू ने कहा कि निराश हूं लेकिन महिलाओं के प्रवेश पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय स्वीकार है।