Accession Day: वो दस्तावेज, जिसने जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाया…

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Accession Day: वो दस्तावेज, जिसने जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाया...
Accession Day: वो दस्तावेज, जिसने जम्मू-कश्मीर को भारत का हिस्सा बनाया...

Accession Day: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, भारत के दो केंद्रशासित प्रदेश हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि ये दोनों प्रदेश भारत का अंग कैसे बने? जम्मू-कश्मीर और लद्दाख पहले जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा थे लेकिन 2019 में दोनों को अलग-अलग कर केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। आजादी के बाद आज ही के दिन जम्मू-कश्मीर रियासत का भारत में विलय हुआ था। इसलिए आज के दिन को विलय दिवस के रूप में मनाते हैं।

आजादी से पहले पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान, अक्साई चिन और ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट भी जम्मू-कश्मीर रियासत का हिस्सा थे लेकिन अगस्त 1947 में जब भारत का बंटवारा हुआ तो उस समय जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह से कहा गया कि वे भारत या पाकिस्तान में किसी एक के साथ जुड़ जाएं। लेकिन महाराजा हरि सिंह आनाकानी करते रहे। काफी वक्त तक तो वे हिंदुस्तान और पाकिस्तान के साथ मोलभाव ही करते रहे।

हालांकि इस बीच उनकी रियासत के बहुसंख्यक मुस्लिम समाज में इस बात को लेकर बैचेनी बढ़ गयी कि महाराजा भारत के साथ जा सकते हैं। भारत में बहुसंख्यक हिंदू थे इसलिए जम्मू-कश्मीर के लोग रियासत के भविष्य को लेकर असमंजस में थे। इस बीच कुछ लोगों ने महाराजा के खिलाफ बगावत कर दी। रियासत में सांप्रदायिक हिंसा होने लगी।

Accession Day: इस बीच मोहम्मद अली जिन्ना का सब्र भी जवाब दे गया और जम्मू कश्मीर रियासत पर कबाइली हमला हो गया। महाराजा हरि सिंह की सेना हमलावरों के आगे टिक नहीं पाई। फिर क्या था महाराजा ने भारत से मदद की गुहार लगाई। भारत सरकार इस शर्त पर मदद के लिए राजी हुई कि महाराज हरि सिंह रियासत का भारत में विलय करेंगे और आज ही के दिन महाराजा हरि सिंह ने उन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए थे। जिसके तहत जम्मू कश्मीर भारत का अंग हो गया। हालांकि पाकिस्तान इस विलय को आज तक नकारता रहा है।

इस घटना के बाद तो भारत और पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हो गयी। ये जंग 5 जनवरी 1949 तक चली। संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद दोनों देशों ने संघर्ष विराम पर हस्ताक्षर किये। लेकिन इस जंग के चलते कश्मीर का दक्षिणी हिस्सा और गिलगित-बल्तिस्तान पाकिस्तान के पास चले गए। वहीं जब 1962 में चीन का भारत के साथ युद्ध हुआ तो अक्साई चिन और ट्रांस-काराकोरम ट्रैक्ट चीन के पास चला गया।

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