NASA Artemis 1: अमेरिका अंतरिक्ष एजेंसी NASA अपने मून मिशन Artemis 1 को आज यानी 3 सितंबर 2022 की रात करीब पौने 12 बजे लॉन्च करने वाला है। ये लॉन्चिंग फ्लोरिडा स्थित केप केनवरल के लॉन्च पैड 39बी से होगी। इससे पहले इसे 29 अगस्त को लॉन्च करने की खबरे आयी थी, लेकिन तब यह लॉन्च नहीं किया गया था। वजह थी ईधन का रिसाव और दरार जिसे लेकर पूरी दुनिया में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर 50 सालों बाद चंद्रमा पर जाने की क्या जरूरत है।
NASA Artemis 1: कई मायनों में बेहद खास है ये Artemis 1
इंसानों को लेकर दूर जाने वाला पहला स्पेसक्राफ्ट
Artemis 1 मिशन इंसानों की अंतरिक्ष उड़ान में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है। कई दशकों के बाद धरती के लोअर अर्थ ऑर्बिट (Lower Earth Orbit-LEO) के बाहर इंसान जाने वाला है। आज की लॉन्चिंग सफल होती है तो पहली बार ऐसा होगा कि बिना किसी इंसान की मदद से नासा स्पेस लॉन्च सिस्टम रॉकेट के जरिए ओरियन स्पेसशिप को चांद के चारों तरफ चक्कर लगाकर वापस आने के लिए भेज रहा है। यह यात्रा 42 दिन, 3 घंटे और 20 मिनट की होगी।
चंद्रमा के अंधेरे वाले हिस्से की भी जांच होगी
ओरियन स्पेसशिप को इंसानों की अंतरिक्ष उड़ान के लिए बनाया गया है। यह इंसानों द्वारा बनाया गया पहला ऐसा स्पेसक्राफ्ट होगा जो अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा दूरी तय करेगा। वह भी इंसानों को बिठाकर। इससे पहले कभी किसी यान ने इससे ज्यादा दूरी तय नहीं की होगी।
मिशन के दौरान ओरियन धरती से चंद्रमा तक पहले 4.50 लाख किमी की यात्रा करेगा। फिर चंद्रमा के अंधेरे वाले हिस्से की तरफ 64 हजार KM दूर जाएगा। ओरियन स्पेसशिप बिना इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जुड़े ही इतनी लंबी यात्रा करने वाला पहला अंतरिक्षयान होगा।
इस मिशन को Artemis नाम क्यों दिया गया?
ग्रीस में चंद्रमा की देवी को अर्टेमिस कहा जाता है। यह शिकार की भी देवी मानी जाती हैं। ये अपोलो की जुड़वा बहन हैं। यह नाम इसलिए चुना गया क्योंकि पहली बार मून मिशन पर किसी महिला को भेजने की तैयारी हो रही है। साथ ही किसी ब्लैक इंसान को भी। यह लोग साल 2030 में चंद्रमा पर जाएंगे। महिला को सम्मान देने के लिए नासा ने इस मिशन का नाम अर्टेमिस रखा है। जैसे अमेरिका का अपोलो मून मिशन सफल रहा था। उन्हें उम्मीद है कि ये मिशन भी सफल होगा।
10 छोटे सैलेलाइट्स भी जाएंगे ओरियन के साथ
ओरियन स्पेसशिप अपने साथ 10 छोटे सैटेलाइट्स यानी क्यूबसैट्स भी लेकर जा रहा है। जिन्हें वह अंतरिक्ष में छोड़ेगा। ये छोटे सैटेलाइट्स ओरियन की यात्रा और अन्य गतिविधियों पर नजर रखेंगे। ये क्यूबसैट्स चंद्रमा के अलग-अलग हिस्सों की निगरानी करेंगे। उनकी जांच करेंगे। भविष्य में इन्हीं क्यूबसैट्स की मदद से धरती के नजदीक चक्कर लगाने वाले किसी एस्टेरॉयड पर स्पेसक्राफ्ट भेजने की तैयारी भी की जा रही है। ये क्यूबसैंट्स ऐसे एस्टेरॉयड्स की स्टडी भी करेंगे। साथ ही अन्य तरह के स्पेस एक्सप्लोरेशन भी करेंगे।
अर्टेमिस मून मिशन की जरूरत क्यों पड़ रही है?
बता दें कि 20वीं सदी के दौरान स्पेस रेस हो रही थी। 60 और 70 के दशक में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चांद पर जाने और अंतरिक्ष में सैटेलाइट्स छोड़ने को लेकर भयानक जंग छिड़ी थी। अमेरिका धरती के अलावा किसी अन्य ग्रह पर जाने की बात से अपनी धाक जमा चुका था। इधर, भारत की स्पेस एजेंसी ISRO के चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर पानी की खोज की। चीन के चांगई-5 ने भी इस बात की पुष्टि की। अब चीन और रूस की तैयारी है कि वह चांद के लिए अंतरराष्ट्रीय लूनर रिसर्च स्टेशन बनाने वाले हैं। ये 9 मार्च रॉकेट के जरिए क्रू लॉन्च व्हीकल को चांद पर भेजेंगे।
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