Rishi Panchmi 2022:भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि ही ऋषि पंचमी कहलाती है।आगामी 1 सितंबर 22 को ऋषि पंचमी व्रत पड़ रहा है। ये दिन बेहद खास है, क्योंकि इस दिन किसी देवी-देवता की नहीं बल्कि सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है। विष्णु जी के मत्स्य अवतार की कथा में सप्त ऋषियों के बारे में उल्लेख मिलता है। कथा के अनुसार जब धरती पर जल प्रलय आया।उस समय पूरी पृथ्वी जल में समा गई थी।
सभी सूक्ष्म प्रणियों, बीजों आदि को लेकर सप्तऋषि एक नाव पर सवार हो गए थे, तब श्री हरि विष्णु नें मत्स्य अवतार धारण करके पृथ्वी की रक्षी की थी। कहते हैं कि जलप्रलय में इस नाव में जो बच गए उन्हीं से धरती पर दोबारा जीवन चक्र शुरू हुआ। यही वजह है पूरी सृष्टि उन सप्तऋषियों के प्रति गहरी आस्था रखती है, पूजन और व्रत करती है।
Rishi Panchmi 2022: ऋषि पंचमी व्रत का महत्व
ऋषि पंचमी व्रत करने से उन सभी जातकों को लाभ मिलता है, जिनसे जाने-अनजाने में कोई भूल हो गई हो। इस व्रत को करने मात्र से ऐसे पापकर्मों से मुक्ति मिलती है। ये व्रत विशेषतौर पर महिलाएं करती हैं। महावारी के दौरान धार्मिक कार्यों को लेकर गलतियों की क्षमा प्राप्ति के लिए यह व्रत किया जाता है। इस व्रत की कथा भी महावारी से जुड़ी हुई है।
Rishi Panchmi 2022: सप्त ऋषियों का वर्णन करता श्लोक
धार्मिक शास्त्रों में सप्त ऋषियों के बारें में कई अलग-अलग जानकारियां मिलती हैं। सप्त ऋषियों के बारे में इस श्लोक में इस तरह से वर्णन मिलता है।
कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहंतु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥
Rishi Panchmi 2022: जानिए सप्तऋषियों के नाम
- ऋषि कश्यप
- अत्रि ऋषि
- भारद्वाज ऋषि
- विश्वामित्र ऋषि
- गौतम ऋषि
- जमदग्नि ऋषि
- वशिष्ठ ऋषि
Rishi Panchmi 2022: आइए बताते हैं इन ऋषियों के बारे में
ऋषि कश्यप– सप्त ऋषियों में ऋषि कश्यप का पहला स्थान माना गया है। कथा के अनुसार जब श्री गणेश जी ने अगलासुर का अंत करने के लिए उसे निगल लिया था, तब पेट की जलन को शांत करने के लिए ऋषि कश्यप ने ही दूर्वा की गांठें बनाकर दी थीं। जिससे गणेश जी के पेट की जलन शांत हुई थी। इनकी एक पत्नी का नाम अदिति और दूसरी का नाम दिति था। कहते हैं कि अदिति से देवों और दिति से दैत्यों की उत्पत्ति हुई थी।
अत्रि – दूसरे ऋषि अत्रि हैं। इनकी पत्नी अनुसूया थीं। इनके पुत्र का नाम दत्तात्रेय है। कथाओं के अनुसार त्रेतायुग में जब श्रीराम को वनवास मिला था, तब सीता जी और लक्ष्मण के साथ श्री राम अत्रि ऋषि के आ़़श्रम में आकर रूके थे।
भारद्वाज- तीसरे स्थान पर ऋषि भारद्वाज आते हैं। इन्होंने महान ग्रंथों की रचना की थी। आयुर्वेद के ग्रंथ की रचना भी इन्होंने ही की थी। कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य इन्हीं के पुत्र थे।
विश्वामित्र- ऋषि विश्वामित्र चौथे स्थान पर आते हैं। जब राजा जनक ने सीता जी के स्वयंवर का आयोजन किया, तो श्रीराम जी और लक्ष्मण विश्वामित्र के साथ ही वहां गए थे। इन्होंने ही गायत्री मंत्र की रचना की।
गौतम- ऋषि गौतम पांचवे ऋषि हैं। इनकी पत्नी अहिल्या थीं।इन्होंने अपनी पत्नी को पत्थर हो जाने का श्राप दिया था। श्रीराम जी के चरण स्पर्श से अहिल्या पुनः सही हो गईं थीं।
जमदग्नि-जमदग्नि को छठे ऋषि का स्थान दिया जाता है। परशुराम इन्हीं के पुत्र थे। जमदग्नि के कहने पर ही परशुराम ने अपनी माता रेणुका का सिर काट दिया था।
वशिष्ठ – ऋषियों में ऋषि वशिष्ठ को सातवां स्थान दिया जाता है। इन्होंने ही त्रेता युग में प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु की भूमिका निभाई थी।
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