सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के सामने बड़ी चुनौती मुंह बाए खड़ी है। पिछले कई सालों से हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की कमी का मुद्दा उठता रहा है और इस साल हालात और गंभीर हो सकते हैं।
अगर शुरुआत सुप्रीम कोर्ट से करें तो सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल प्रधान न्यायाधीश समेत 31 पद स्वीकृत हैं। इनमें से छह पद खाली हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस साल छह जज रिटायर होंगे। सबसे पहले एक मार्च को जस्टिस अमिताव रॉय और 4 मई को जस्टिस आर के अग्रवाल रिटायर हो जाएंगे। मतलब यह कि मई तक कुल आठ पद खाली हो जाएंगे यानी सुप्रीम कोर्ट में एक चौथाई पद खाली होंगे। इसके बाद जस्टिस जे चेलामेश्वर 22 जून को, जस्टिस ए के गोयल 6 जुलाई को, प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर को, जस्टिस कुरियन जोसेफ 29 नवंबर को और जस्टिस मदन बी लोकुर 30 दिसंबर को रिटायर होंगे। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट में जम्मू कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, ओडिशा और पश्चिम बंगाल का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। जजों की नियुक्ति के लिए मेमोरंडम ऑफ प्रोसीजर को भी अभी तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है। जिसकी वजह से नियुक्ति में देरी हो रही है।
अब अगर देश के 24 हाई कोर्ट में जजों की संख्या पर नजर डालें तो 9 हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के पद खाली पड़े हैं। दिल्ली, बॉम्बे, कलकता, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल और मणिपुर में हाईकोर्ट में भी कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश से काम चल रहा है। इस साल मई तक जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट और त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी रिटायर हो जाएंगे।
जहां तक हाईकोर्ट में जजों की कमी का सवाल है तो फिलहाल देश के 24 हाई कोर्ट में जजों के कुल 1079 पद हैं। इनमें से 398 पद खाली हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट में जजों के कुल 160 पद हैं। जजों की यह संख्या इलाहाबाद स्थित मुख्य पीठ और लखनऊ बेंच दोनों को मिलाकर है। फिलहाल दोनों जगह मिलाकर कुल 109 जज ही नियुक्त हैं। इनमें से भी 22 इस साल रिटायर हो जाएंगे। दिल्ली हाईकोर्ट में जजों के कुल 60 पद स्वीकृत हैं और इनमें से 23 पद खाली हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट में जजों के 72 पद हैं लेकिन वहां सिर्फ 39 जज ही तैनात हैं। कर्नाटक हाई कोर्ट में कुल 62 पद हैं लेकिन वहां केवल 37 जज ही काम कर रहे हैं।
ऐसे होता है जजों का चयन
सुप्रीम कोर्ट के जजों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों का चयन एक समान प्रक्रिया से होता है। दोनों के लिए ही नाम प्रधान न्यायाधीश की ओर से सुझाए जाते हैं और फिर कॉलेजियम में चर्चा के बाद मंजूरी दी जाती है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के नाम हाईकोर्ट जजों के समूह से वरिष्ठता और योग्यता के आधार पर चुने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों, वरिष्ठ हाईकोर्ट जजों और आम तौर पर सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले मशहूर वकीलों में से चयन होता है। सुप्रीम कोर्ट के जजों के चयन के लिए राज्यों के प्रतिनिधित्व के साथ साथ कई और पहलुओं पर भी विचार किया जाता है। इसमें हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों की अखिल भारतीय वरिष्ठता, अपने हाईकोर्ट में वरिष्ठता और उम्र पर विचार करना होता है। इसके अलावा धर्म या जाति पर भी विचार होता है। साथ ही साथ महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर भी ध्यान दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल जस्टिस आर भानुमती अकेली महिला जज हैं।
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों का चयन काफी जटिल कार्य है। इसके कुछ नियम हैं जिनका पालन किया जाना जरूरी है। जैसे कोई भी जज अपने गृह हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश नहीं हो सकता। किसी दूसरे हाईकोर्ट से मुख्य न्यायाधीश लाने की प्रक्रिया में देखना जरूरी होता है कि वह हाईकोर्ट के वरिष्ठतम जज से वरिष्ठ हो। यदि ऐसा न संभव हो तो कॉलेजियम को जिस हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति होनी है, उस हाईकोर्ट के वरिष्ठ जजों से मंजूरी लेनी होती है कि उन्हें जूनियर जज के मुख्य न्यायाधीश बनने पर कोई आपत्ति नहीं है।
जाहिर सी बात है जजों की कमी का सीधा असर मुकदमों की सुनवाई और उससे जुड़े पक्षकारों पर पड़ेगा। यानी न्याय का इंतजार और लंबा हो सकता है। देश के हाईकोर्टों मे 40 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। और इनमे से करीब 6 लाख मामले दस साल या उससे ज्यादा समय से चल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और निचली अदालतों में कुल मिलाकर इस वक्त करीब तीन करोड़ मामले लंबित हैं।