मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार (2 जनवरी) को केंद्र से यह पूछा है कि क्यों नहीं संसद को ऐसा कानून बनान चाहिए जिसमें महिलाओं के लिए अपने नवजात शिशुओं को स्तनपान कराना अनिवार्य हो। कोर्ट ने संयुक्त अरब अमीरात का उदहारण दिया जहां पर बच्चे के दो साल का होने तक मां के लिए बच्चे को स्तनपान कराना जरुरी है।
जस्टिस एन किरुबीकरण ने एक सरकारी डॉक्टर द्वारा दायर एक मामले की सुनवाई के दौरान यह सवाल उठाया। डॉक्टर ने इस बात को लेकर कोर्ट का रुख किया था कि उसे पीजी कोर्स करने के लिए इसलिए अनुमति नहीं दी गई क्योंकि इसके लिए उसकी न्यूनतम सेवा अवधि दो वर्ष नहीं बनती जो स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में शामिल होने के लिए आवश्यक है। अवधि इलसिए पूरी नहीं होती है क्योंकि इस दौरान उसके द्वारा प्रसूति के लिए लिए गए अवकाश को इससे अलग करके जोड़ा गया।
मद्रास हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को तो राहत दे दी लेकिन प्रसूति की छुट्टी और नवजात शिशुओं के लिए जरूरी देखभाल के सवाल पर मामले को आगे विचार के लिए लंबित रखा।
कोर्ट ने केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय और कानून और न्याय मंत्रालय को एक पक्ष के तौर पर मामले में शामिल किया और उनसे 15 सवालों के जवाब मांगे हैं।
जस्टिस एन किरुबीकरण ने पूछा कि केंद्र अपने कर्मचारियों को 180 दिनों के वर्तमान अवधि के मातृत्व अवकाश को बढ़ाकर 270 दिन क्यों नहीं करता जैसा कि तमिलनाडु द्वारा किया गया है और एक वर्ष के भीतर दूसरे राज्यों को भी करने के लिए कहे।
उन्होंने यह भी पूछा कि केंद्र संविधान के अनुच्छेद 249 के तहत केंद्र सरकार को मिली शक्तियों का इस्तेमाल कर क्यों नहीं राज्य सरकारों के दायरे में आने वाले मुद्दों पर एक व्यापक कानून पारित करता जबकि यह राष्ट्रीय हित में होगा।
जस्टिस किरुबीकरण ने सवाल किया कि क्यों न नवजात शिशु के स्तनपान कराने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत उसका मौलिक अधिकार घोषित किया जाए।
कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि सरकारी कर्मचारी जो मातृत्व अवकाश का लाभ उठाते हैं उनके लिए नवजात शिशुओं को स्तनपान कराना अनिवार्य क्यों नहीं किया जाना चाहिए।
इतना ही नहीं जस्टिस किरुबीकरण ने पूछा कि क्या शिशु मिल्क सब्स्टिट्यूट्स, फीडिंग बोतल और शिशु आहार (उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का नियमन) अधिनियम 1992 के प्रावधान ठीक से लागू किए जा रहे हैं और क्या केंद्र और साथ ही राज्य सरकार के कार्यालयों में ‘क्रेच’ सुविधा उपलब्ध कराई गई है या नहीं।
कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या केंद्र और राज्य सरकारों के लिए यह संभव है कि सार्वजनिक स्थानों में स्तनपान कराने के लिए विशेष कमरे के प्रावधान के लिए एक नया कानून लाए।