उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने उसके क्रियाकलापों की जांच के लिए जारी की गई CBI जांच की अधिसूचना को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी है। राज्य सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने CBI जांच की अधिसूचना जारी की है।
CBI को अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक के आयोग के काम की जांच के लिए कहा गया है। चीफ जस्टिस डी बी भोसले और जस्टिस सुनीत कुमार की बेंच ने मामले में राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने को कहा है और पूछा है कि किन तथ्यों पर CBI जांच का फैसला लिया गया। मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी को होगी।
बता दें कि प्रदेश सरकार ने 31 जुलाई 2017 को इस मामले की CBI जांच की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी जिसके बाद केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने CBI जांच की अधिसूचना जारी कर दी । समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान हुई इन भर्तियों को लेकर लगातार कई सवाल उठते रहे हैं। आयोग की कार्यप्रणाली के खिलाफ अभ्यर्थियों ने लंबे समय तक आंदोलन भी किया था। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले बेजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था इतना ही नहीं तत्कालीन बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने इलाहाबाद जाकर अभ्यर्थियों के आंदोलन को समर्थन भी दिया था।
इसी दौरान समजवादी पार्टी के ही एमएलसी रहे देवेन्द्र प्रताप सिंह ने लोक सेवा आयोग की भर्तियों की CBI से जांच की मांग करके तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया था। इसके बाद आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव की योग्यता को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने डॉ. अनिल यादव को अयोग्य करार दिया और फिर सरकार को उन्हें हटाना पड़ा था।
डॉ. यादव के वक्त हुई भर्तीयों को लेकर आरोप है कि इसमें जाति विशेष के अभ्यर्थियों को लाभ पहुंचाया गया, रिश्वतखोरी और पेपर लीक होने जैसे आरोप भी हैं। कहा जा रहा है कि अंकों में गड़बड़ी करने, स्केलिंग में गड़बड़ी करने, केंद्रों के निर्धारण में मनमानी, कॉपियां नष्ट कर सबूतों को मिटाने जैसे आरोपों के आधार पर प्रदेश सरकार ने नियुक्तियों की CBI जांच का आदेश दिया है।