Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि रिश्ता या संबंध गवाह की विश्वसनीयता को प्रभावित करने वाला कारक नहीं है। उसके द्वारा दिया गया साक्ष्य विश्वसनीय होना चाहिए। हाईकोर्ट ने एक 80 वर्षीय वृद्धा से दुष्कर्म और हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा।
कोर्ट ने कहा कि परिवार के सदस्यों की गवाह के रूप में जांच करने पर कानून में कोई रोक नहीं है। गवाह के साक्ष्य पर भरोसा किया जा सकता है बशर्ते उसकी विश्वसनीयता भरोसेमंद हो। ये आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार तथा न्यायमूर्ति विक्रम डी. चौहान की खंडपीठ ने मनवीर की अपील को खारिज करते हुए दिया।
Allahabad HC: याची ने सत्र न्यायालय के फैसले को हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
मामले में आरोपी के खिलाफ गौतम बुद्धनगर के सेक्टर-49 में 80 वर्षीय वृद्ध महिला के साथ दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या के आरोप में 2006 में एफआईआर दर्ज कराई गई थी।
सत्र न्यायालय ने छह दिसंबर 2007 को दिए आदेश में दोषी मानते हुए उम्रकैद और 10 हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। याची ने सत्र न्यायालय के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी का कमरे में जाना शिकायतकर्ता और उसके परिवार के सदस्यों को देखने के बाद और उसके कमरे को बंद करना एक प्रासंगिक तथ्य था। जिससे इंगित होता है कि आरोपी ने अपराध किया है।आरोपी की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई कि मामले में दोनों गवाह पीड़िता के रिश्तेदार हैं। इसलिए उनकी गवाही पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि गवाह मृतक के परिवार के सदस्य होने के नाते आरोपी को झूठा फंसाने की संभावना रखते हैं, इस आधार पर उनके साक्ष्य को खारिज नहीं किया जा सकता है।
रिश्ते एक गवाह की विश्वसनीयता को प्रभावित करने वाला कारक नहीं है।अकसर ऐसा नहीं होता है कि एक रिश्ता वास्तविक अपराधी को छुपाता नहीं है और एक निर्दोष व्यक्ति के खिलाफ आरोप लगाता है। कोर्ट ने कहा कि परिवार के सदस्यों की गवाह के रूप में जांच करने पर कानून में कोई रोक नहीं है।
घटना ऐसी जगह पर हुई जहां स्वतंत्र गवाह उपलब्ध नहीं हो सकता है। रिश्तेदार ही गवाह हो सकते हैं। कोर्ट ने तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए सत्र न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए अपील को खारिज कर दिया।
संबंधित खबरें