Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने घूस लेकर अभियुक्तों को छोड़ने के मामले में सिपाहियों के निलंबन आदेश पर कोर्ट ने रोक लगाई।कोर्ट ने बिना नियमित विभागीय जांच कराए सिपाहियों के निलंबन को गलत बताया। इस बाबत राज्य सरकार और पुलिस बोर्ड से जवाब मांगा है।ये आदेश न्यायमूर्ति राजीव जोशी ने सिपाही अतुल कुमार नागर एवं सुमित शर्मा द्वारा दायर अलग-अलग याचिकाओं पर दिया है ।
याचिका में निलंबन आदेश को चुनौती दी गई है।याची के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम व अतिप्रिया गौतम ने कोर्ट को बताया की याची साइबर क्राइम थाना, जनपद गौतमबुद्ध नगर में कार्यरत थे। उनके खिलाफ शिकायतकर्ता मंजू चौहान ने एफआईआर दर्ज कराई।
Allahabad HC: रिपोर्ट में पुलिस की छवि धूमिल होने की बात
इस बाबत साइबर क्राइम थाना सेक्टर 36, नोएडा के प्रभारी की रिपोर्ट में कहा गया कि पैसा लेकर आरोपियों को छोड़ने का कृत्य न केवल गंभीर है, बल्कि दुराचरण की श्रेणी में आता है। पुलिस विभाग की छवि को भी धूमिल करता है। इससे महकमे को क्षति पहुंची है।
शिकायतकर्ता के अनुसार 5 लोग सादे कपड़े में आए और उन्होंने अपने आप को नोएडा साइबर थाने की पुलिस बताया और कार्यालय से वसीम, परवेज व सुहेल को पूछताछ करने के बहाने पकड़कर साथ ले गए।
लगभग 2 घंटे बाद उन्होंने मेरे मोबाइल व्हाट्सएप नंबर पर परवेज के व्हाट्सएप नंबर से कॉल करके तीनों को छोड़ने के बदले 7 लाख रुपये मांगे। 5 लाख में सौदा तय हुआ।वादी का आरोप था कि उसने 2 लाख रुपये इन लोगों को दे दिए तथा शेष 3 लाख रुपये अगले दिन इंतजाम करके देने के लिए कहा। इस पर सिपाहियों ने तीनों आदमियों को छोड़ दिया।
पिछले वर्ष सौंपी थी रिपोर्ट
जानकारी होने पर पुलिस अधीक्षक साइबर क्राइम ने सिपाहियों को निलंबित कर दिया। सीनियर एडवोकेट विजय गौतम का कहना था कि निलंबन आदेश जारी करने के बाद अपर पुलिस महानिदेशक साइबर क्राइम लखनऊ के आदेश 2 सितंबर 2021 के तहत डिप्टी एसपी साइबर क्राइम लखनऊ को प्रारंभिक जांच सौपी गई। इस पूरे मामले में न तो सिपाहियों को अभी तक चार्जशीट दी गई है और न ही नियमित विभागीय कार्रवाई शुरू की गई है।
कोर्ट का कहना था कि रिकॉर्ड देखने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि याची के खिलाफ प्रारंभिक जांच चल रही है। Allahabad High Court ने कहा कि नियमित जांच बैठाये बगैर निलंबन नहीं किया जा सकता। निलंबन आदेश विधि द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के विरुद्ध है। कोर्ट ने याचिका पर सरकारी वकील से 4 सप्ताह में जवाब मांगा है।
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