Supreme Court: राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बांड से मिलने वाले चंदा भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। इस मसले पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया कि पश्चिम बंगाल की एक कंपनी ने खुद कहा है कि एक्साइज विभाग के दबाव में सत्ताधारी पार्टी को उसने 40 करोड़ का चंदा दिया है। मामला संवेदनशील है। एक साल से इस मामले पर किसी का ध्यान नहीं। ऐसे में इस पर सुनवाई होनी चाहिए। हालांकि कोर्ट ने मामले की सुनवाई का आश्वासन तो दिया लेकिन कोई तारीख नहीं तय की है।
Supreme Court: विधानसभा चुनाव से पूर्व हुई थी सुनवाई
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इलेक्टोरल बॉन्ड की ब्रिक्री को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। इसे लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दायर की थी। कोर्ट में आवेदन दिया गया था। इस पर 1 अप्रैल से जारी होने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड पर तत्काल प्रभाव से रोक की मांग की गई थी।
पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि 1 अप्रैल से नए बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं। चुनाव आयोग भी कह चुका है कि ये बॉन्ड चुनाव में शेल कंपनियों के जरिए राजनीतिक पार्टियों के लिए गैरकानूनी फंडिंग का जरिया हैं। इसलिए मामले की सुनवाई जल्द हो।
बॉन्ड कौन खरीद रहा है, इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को होती है। चुनाव आयोग तक इससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं ले सकता है। उन्होंने कहा कि यह एक तरह की करेंसी है। इसे करीबन 7 हजार से ज्यादा खरीदा जा चुका है। ये राजनीतिक दल को रिश्वत देने का एक तरीका है।
Supreme Court: क्या होते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड ?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है। जिसे बैंक नोट भी कहते हैं।
इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।
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