10 साल की बलात्कार पीड़ित गर्भवती बच्ची की गर्भपात की जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। पीजीआई चंडीगढ़ के मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात से लड़की की जान को खतरा हो सकता है। इससे पहले चंडीगढ़ की जिला अदालत ने 18 जुलाई, 2017 को अपने एक फैसले में पीड़िता को गर्भपात की इजाजत देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद वकील अलख आलोक श्रीवास्तव ने यह जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी।
न्यायलय ने कहा, ‘गर्भ 32 हफ्ते का है, ऐसे में नाबालिग बच्ची के लिए गर्भपात से जोखिम बहुत ज्यादा है। यह कोई शुरुआती गर्भ का मामला नहीं है।’ हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ित बच्ची को सभी तरह की चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान सालिसीटर जनरल रंजीत कुमार ने कहा कि चूंकि बड़ी संख्या में इस तरह के मामले शीर्ष अदालत में आ रहे हैं, इसलिए जल्दी गर्भपात की संभावना के बारे में तत्परता से निर्णय लेने हेतु प्रत्येक राज्य में एक स्थाई मेडिकल बोर्ड गठित करने के उनके सुझाव पर विचार किया जाए।
गौरतलब है बच्ची के साथ बलात्कार का यह मामला उस समय सामने आया था जब उसने पेट दर्द की शिकायत अपने परिजनों से की थी। इसके बाद परिजनों ने बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराया जहां डॉक्टरों ने उसे गर्भवती घोषित किया।
10 वर्षीय बच्चे के गर्भवती होने पर खुद डॉक्टर हक्के-बक्के थे। उनका कहना था कि उन्होंने इससे पहले कभी ऐसा मामला नहीं देखा, जिसमें इतनी कम उम्र में कोई बच्ची गर्भवती हुई हो। डॉक्टरों के अनुसार इस उम्र में गर्भवती होने से भ्रूण का ठीक से विकास भी नहीं हो पाता। बाद में खुलासा हुआ कि बच्ची के साथ बलात्कार करने का आरोपी खुद उसका सगा मामा है।
आपको बता दें कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनैंसी ऐक्ट के तहत 20 सप्ताह तक के अविकसित और असामान्य भ्रूण के गर्भपात की अनुमति देता है। न्यायालय भ्रूण के अनुवांशिकी रूप से असमान्य होने की स्थिति में भी अपवाद स्वरूप गर्भपात का आदेश दे सकता है।
हालांकि, पिछले तीन जुलाई को ही शीर्ष अदालत ने कोलकाता की एक महिला को 26 हफ्ते के बाद गर्भपात की इजाजत दी है क्योंकि इसमें भ्रूण कई समस्याओं से ग्रस्त था।
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