Kabir Prasthan Diwas: सोलहवीं सदी के महान संत कबीरदास का जन्म 1398 में वाराणसी में हुआ था। संत कबीर ने अपना पूरा जीवन वाराणसी (Varanasi ) यानी काशी में ही बिताया था, लेकिन जीवन के आख़िरी समय में वह मगहर (Maghar) चले गए थे। वर्ष 1518 में महान संत कबीरदास ने मगहर में अपना शरीर त्याग दिया। मगहर को चाहे जिस वजह से भी जाना जाता रहा हो, लेकिन कबीर साहब ने उसे पवित्र बना दिया। आज दुनिया भर में इसे लोग जानते हैं और यहां आते हैं।
Kabir Prasthan Diwas: संत कबीरदास ने मगहर में क्यों त्यागे प्राण ?
बता दें कि मगहर(Maghar) के लिए यह भ्रम संसार में फैलाया गया था कि जो काशी में मरता है वह सीधा स्वर्ग जाता है, और जो मगहर में मरता है वह नरक गमन करता है। वहीं संत कबीर का मानना था कि सही विधि से भक्ति करने वाला कहीं भी प्राण त्याग दे वह अपने सही स्थान पर ही जाता है। इसलिए संत कबीर ने मगहर में फैले भ्रम को तोड़ने के लिए काशी के सभी पंडित और ब्राह्मणों से कह दिया कि वह अपना देह त्यागा मगहर में करेंगे। कबीर ने कहा कि फिर काशी के पंडित और ब्राह्मण अपनी- अपनी पोथियों में जांच लें कि मैं कहां गया हूं, स्वर्ग या नरक। सन् 1515 में संत कबीरदास मगहर आए और यहीं पर दो वर्ष बाद सन् 1518 में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
संत कबीरदास के शरीर त्याग के बाद क्यों हिंदू और मुस्लिम शिष्यों में हुआ झगड़ा?
सदगुरु कबीर में हिंदू-मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों की आस्था थी। कबीर के देहांत के बाद यह कहानी प्रचलित है कि जब संत कबीरदास ने शरीर त्याग किया तो उनके हिंदू और मुस्लिम शिष्यों में इस बात पर बहस होने लगी कि उनका अंतिम संस्कार( क्रिया) कौन करेगा? हिंदू शिष्य कबीर के शरीर को जलाना चाहते थे, जबकि मुस्लिम उन्हें अपनी रीति से दफनाना चाहते थे। तभी झगड़े के बीच जब सदगुरु कबीर के शव से चादर हटाई गई तो शरीर की जगह कुछ फूल मिले। जिसके बाद आधे फूल लेकर हिंदुओं ने एक समाधि बना ली और आधे फूल लेकर मुसलमानों ने मजार बना ली।
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