भारत में अक्सर लोग गाय और माय (मां) की तुलना एक समान करते हैं।  कुछ दिनों पहले राजस्थान हाई कोर्ट ने भी मां की तुलना गाय से की और ये सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा।  राजस्थान हाई कोर्ट के बाद अब हैदराबाद हाई कोर्ट के एक जज ने भी गाय को लेकर बड़ी टिप्पणी की है। हैदराबाद हाई कोर्ट  के जज जस्टिस बी शिवा शंकर राव का कहना है कि गाय को राष्ट्रीय पशु का दर्जा मिलना ही चाहिए। इतना ही नहीं उन्होंने गाय को पवित्र राष्ट्रीय धरोहर बताते हुए गाय का स्थान  मां और भगवान के स्थान पर दे दिया है। जस्टिस शिवाशंकर राव ने सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर का जिक्र करते हुए कहा कि बकरीद के मौके पर मुस्लिम धर्म के लोगों को स्वस्थ्य गाय को काटने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है।

दरअसल यह बात जज ने पशु व्यवसायी रामावत हनुमा  की हाई कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कही।  रामावत उसकी जब्त की गई 63 गायों की कस्टडी के लिए निचली अदालत के पास पहुंचा था। निचली अदालत में अपील खारिज होने के बाद उसने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।  वहां जस्टिस राव ने हनुमा की दलील यह कहकर ठुकरा दी कि वह ट्रायल कोर्ट के फैसले में दखल नहीं देना चाहते।  रामवत का कहना है कि वह गायों को चराने के लिए अपने गांव के पास कंचनपल्ली गांव लेकर गया था पर उस पर आरोप है कि वह अपने कुछ साथियों के साथ पास के किसानों से उन गायों और बैलों को लेकर आया था ताकि बकरीद पर उनको काट सके।

एक अंग्रेजी अखबार के अनुसार जज ने उन पशु-डॉक्टरों को आंध्रप्रदेश गोहत्या एक्ट 1977 के अंतर्गत लाने की मांग भी की जो कि धोखे से सेहतमंद गाय को अनफिट करार देकर सर्टिफिकेट देकर कह देते हैं कि वे दूध नहीं दे सकती। आपको बता दें कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उन गायों को काटने की इजाजत है जो कि बूढ़ी हो चुकी हैं और दूध नहीं देती हों। जस्टिस राव ने यह भी बताया कि अब एपी काउ स्लॉटर ऐक्ट 1977 में संशोधन के बाद अब इस अपराध को गैर-जमानती और गंभीर भी माना जाएगा। इसी के साथ जस्टिस राव ने बाबर और हुमायू के युग का उदहारण देते हुए कहा कि उस समय अगर वो गाय के कत्ल पर रोक लगा सकते हैं तो हम क्यों नहीं। जबकि हमारे यहां गाय का दर्जा मां और भगवान के दर्जे जैसा है।

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