Kashmiri Pandits: भारत की विविधता इसकी सबसे बड़ी खासियत और सबसे बड़ी खूबसूरती है। देश में हिंदू, सिख, इसाई, मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग फल फूल रहे हैं। इस का एक नाम हिंदुस्तान भी है। हिंदुस्तान मतलब हिंदुओं का स्थान, हिंदुओं का देश है। पर एक वक्त ऐसा था जब अपने ही स्थान पर हिंदू सुरक्षित नहीं थे।
सुरक्षा के आभाव में हिंदुओं को अपना बना बनाया घर छोड़कर सरकारी रैन बसेरों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा। बच्चों का भविष्य खत्म हो गया था। महिलाओं का बलात्कार हुआ, बच्चों का कत्लेआम हुआ। यहां पर बात हो रही है Kashmiri Pandits या फिर कह लें कश्मीरी हिंदुओं की। Kashmiri Pandits के नरसंहार को आज 32 साल हो गए हैं। इन 32 सालों में कश्मीरी पंडितों का जख्म भरा नहीं है।
Kashmiri Pandits की कयामत वाली रात
19 जनवरी 1990 की कड़कड़ाती सर्दी थी। कश्मीर की मस्जिदों से उस दिन अजान के साथ कई और नारे भी गूंज रहे थे। यहां क्या चलेगा निजाम-ए-मुस्तफा, कश्मीर में अगर रहना है तो अल्लाहू अकबर कहना है। यहां पर रहना है तो आजादी की लड़ाई में हमारा साथ दो, धर्म परिवर्तन करो या फिर घाटी छोड़कर भाग जाओ। यह संदेश था कश्मीर की घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों के लिए। ये नारा हर दिन मस्जिदों से लगाया जाता था। इसी तरह महीनों बीत गए।
घाटी में रहने वाले हिंदुओं के घरों में उस दिन बेचैनी थी। सड़क पर इस्लाम और पाकिस्तान की शान में तकरीरें हो रहीं थी। हिंदुओं की बहन बेटियों के लिए भद्दी भद्दी बातें कहीं जा रहीं थी। ये रात कश्मीरी पंडितों के लिए कयामत बनकर आई और 4 लाख हिंदुओं को उनके घर से अलग कर दिया।
Kashmiri Pandits का नरसंहार
19 जनवरी को नारों की गूंज सुनकर कश्मीरी पंडित अपना घर छोड़ने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें नहीं पता था कि कहां जाना है लेकिन जान बचानी है इतना पता था। वे समान बांध ही रहे थे कि पाकिस्तान प्रेमियों ने उनके घरों पर हमला कर दिया। हजारों की संख्या में महिलाओं का रेप हुआ, घरों को आग के हवाले कर दिया गया। रात भर कत्लेआम हुआ।
इस घटना में 300 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या हुई थी। महिलाओं का सामूहिक बलात्कार हुआ, कायमत वाली रात घाटी से पंडितों का पहला जत्था निकला। मार्च और अप्रैल के दरम्यान हजारों परिवार घाटी से भागकर भारत के अन्य इलाकों में शरण लेने को मजबूर हुए। अगले कुछ महीनों में खाली पड़े घरों को जलाकर खाक कर दिया। जो घर मुस्लिम आबादी के पास थे, उन्हें बड़ी सावधानी से बर्बाद कर दिया गया।
घाटी में सिर्फ 800 Kashmiri Pandit हैं
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अनुसार, जनवरी 1990 में घाटी के भीतर 75,343 परिवार थे। 1990 और 1992 के बीच 70,000 से ज्यादा परिवारों ने घाटी को छोड़ दिया। एक अनुमान है कि आतंकियों ने 1990 से 2011 के बीच 399 कश्मीरी पंडितों की हत्या की। पिछले 32 सालों के दौरान घाटी में बमुश्किल 800 हिंदू परिवार बचे हैं।
कई सरकारें आईं और गईं लेकिन कोई भी सरकार घाटी में कश्मीरी पंडितों के लिए सुरक्षित वातावरण नहीं बना पाई। कश्मीरी पंडित आज भी दिल्ली, मुंबई, लखनऊ में शरणार्थी बनकर जी रहे हैं। कोई सरकार उन्हें घाटी भेजने में कमयाब नहीं रही। समय समय पर कश्मीरी पंडितों का दर्द सामने आता रहता है।
कश्मीरी पंडितों का सवाल
कश्मीर में आज भी कश्मीरी पंडित आतंकियों का शिकार हो रहे हैं। राकेश पंडित से लेकर कई कश्मीरी पंडितों को बीते साल में आतंकियों ने मार दिया। नरसंहार की यह कहानी कब खत्म होगी इसका इंतजार आज भी कश्मीरी पंडित कर रहे हैं।
कश्मीरी पंडितों को आखिर अपने ही देश में क्यों शरणार्थी बनकर जीना पड़ रहा है? उन्हें कश्मीर से पलायन क्यों करना पड़ा? इन सवालों को लेकर सरकार ने कभी कोई ठोस बयान नहीं दिया लेकिन कहा जाता है कि 1987 के चुनाव में धांधली के कारण यहां पर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी।
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