पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री Mamata Banerjee औऱ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख Sharad Pawar के बीच आज दोपहर में बैठक होगी। दोनों नेताओं के बीच यह मुलाकात मुंबई में होगी। ममता बनर्जी तीन दिन की मुंबई यात्रा पर हैं।
कांग्रेस को छोड़कर अन्य विपक्षी दलों के साथ ममता बनर्जी लगातार मुलाकात कर रही हैं और आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में एक मजबूत विपक्ष को खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन इस पूरे मामले में सबसे बड़ा तो प्रश्न यही उठता है कि क्या कांग्रेस से अलग या कांग्रेस को दूर रखकर किसी तरह के विपक्ष की कल्पना भी की जा सकती है।
तृणमूल कांग्रेस विपक्ष की अगुवाई करने में समक्ष हो सकेगा
पश्चिम बंगाल के बीते विधानसभा चुनाव में अपने दम पर बीजेपी को पीछे धकेलने वाली ममता बनर्जी ने बंगाल में अपने जनाधार को मजबूती से बचाये रखा लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में पूरे देश के परिपेक्ष्य में बात करें तो क्या ममता बनर्जी या तृणमूल कांग्रेस किसी तरह से विपक्ष की अगुवाई करने में समक्ष हो सकेगा, जबकि बंगाल के इतर ममता की राजनीति का कोई खासा प्रभाव नजर नहीं आता है।
ममता बनर्जी बंगाल में पहले जिस तरह से वाम दलों के खिलाफ संघर्ष कर रही थीं, ठीक आज उसी तरह की स्थितियां उनके लिए बीजेपी ने खड़ी कर रखीं हैं। ऐसे में ममता अपने गढ़ में उभर रही हिंदुत्व बनाम धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई में उलझी पड़ी हैं और यही कारण है कि वो देश के अन्य राज्यों में अपनी सोच या विचारधारा को आगे बढ़ा पाने में खासी उलझी नजर आ रही है।
बिना जमीन के नेता उनकी सोच को वोटों में बदल पाएंगे
ये बात भी मान ली जाए कि अन्य दलों के वरिष्ठ नेताओं का ममता के दल में आने, उनकी मजबूती और दृढता को प्रदर्शित करता है लेकिन क्या अन्य दलों से आये बिना जमीन के नेता उनकी सोच को वोटों में बदल पाएंगे। इस तरह के कुछ प्रश्न हैं जिनसे ममता बनर्जी को दो-चार होना पड़ेगा।
वैसे ममता बनर्जी की राजनीति भी उग्रता के जिस नये कलेवर के साथ बंगाल में प्रदर्शित हो रही है, उससे कम ही उम्मीद की जा सकती है कि वो देश के अन्य हिस्सों में वोट की राजनीति में ज्यादा सहायक होगी। अगर हम बात करें सेक्यूलर सोच के साझा मंच की तो आज के परिदृश्य में बिना कांग्रेस के उसकी कल्पना कर पाना संभव नहीं है।
बावजूद उसके ममता बनर्जी जस शिद्दत के साथ लगी हुई हैं और विपक्षी दलों को गोलबंद करने का प्रयास कर रही हैं, आने वाले चुनाव में कहीं ऐसा न हो कि इसका सारा लाभ कांग्रेस उठा ले जाए, जो बड़ी खामोशी से ममता बनर्जी के हर कदम को बड़ी ही सधी निगाहों से पढ़ने की कोशिश कर रही है।
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