डॉ. राम मनोहर लोहिया एक वैचारिक योद्धा थे। उनका मानना था कि मैं जो सोचता हूँ वह धरातल पर भी उसी रूप में आना चाहिए। उन्होंने अपने समय के हर जरूरी सवाल पर मौलिक ढंग से विचार किया। सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने के लिए उन्होंने जो सिद्धांत दिए वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। लोहिया सबको साथ लेकर चलने और सबको प्रतिनिधित्व देने की वकालत करते थे। वे ऐसे महापुरुष है जिनके रास्ते पर चलकर नए भारत की एक लकीर खींची जा सकती है। ये बातें मंगलवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ‘लोहिया के सपनों का भारत’ पुस्तक के लोकार्पण के दौरान वक्ताओं ने कही। अशोक पंकज द्वारा लिखित इस पुस्तक का प्रकाशन लोकभारती प्रकाशन ने किया है।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राज्यसभा के उप-सभापति हरिवंश रहे और अध्यक्षता गांधीवादी समाजवादी रघु ठाकुर ने की। वहीं, राजनयिक और पूर्व विदेश सचिव मुकचुन्द दूबे; इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय; और सामाजिक विमर्श के सम्पादक और राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व-कुलपति प्रो. के. एल. शर्मा बतौर वक्ता उपस्थित रहे।
लोहिया जी के विचारों को जन-जन तक पहुँचाने की जरूरत
अपने वक्तव्य के दौरान पुस्तक के लेखक अशोक पंकज ने कहा, “लोहिया जी ने अपने सिद्धांतों में भारतीय सन्दर्भ में बदलाव के कई ऐसे सूत्र बताए थे जिनका अगर आज़ादी के बाद से ही पालन किया गया होता तो देश में आज गरीबी जैसी समस्याएं नहीं होती। लोहिया जी और समाजवाद के नाम पर आज के समय चुनावों में वोट बटोरने वाली पार्टियों ने भी उनके विचारों को सही तरीके से नहीं समझा है और न ही उन्हें जनता तक पहुँचाया हैं।”
‘लोहिया के सपनों का भारत’ पुस्तक लिखने का विचार कैसे आया इस पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “जब मैंने लोहिया जी के विचारों को पहली बार पढ़ा तो मुझे लगा कि सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करने के बारे में उनके सिद्धांतों को हमने अभी तक सही तरीके से समझा नहीं है। उन्होंने जो सिद्धांत दिए थे वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनके विचारों को हमें जन-जन तक पहुँचाने की जरूरत है। यहीं से मुझे इस पुस्तक को लिखने का विचार आया। मैंने कोशिश की है कि समाजवाद के बारे में लोहिया जी के जो विचार थे उनको सार रूप में इस पुस्तक में रखूं ताकि अगर कोई उनके समाजवाद को समझना चाहें तो उसे इसका सार मिल सकें।”
सबको साथ लेकर चलने की वकालत करते थे लोहिया
कार्यक्रम के पहले वक्ता मुचकुन्द दूबे ने देश की आज़ादी के लिए राम मनोहर लोहिया द्वारा किए गए योगदान को उद्धृत करते हुए कहा, “लोहिया जी ने देश की आज़ादी के लिए जो कुछ किया वह बहुत रोमांचक इतिहास है। आज के युवाओं को इसे देखकर आश्चर्य हो सकता है कि कोई ऐसा भी कर सकता है!”
आगे उन्होंने कहा, “हम देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को जिसमें महिलाएं, दलित और अल्पसंख्यक शामिल हैं, उनको बाहर रखकर कभी सम्पन्नता की कल्पना भी नहीं कर सकते। लोहिया सबको साथ लेकर चलने और सबको प्रतिनिधित्व देने की वकालत करते थे।”
पुस्तक के बारे में अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा, “लोहिया जी के विचारों को तार्किक और विषयबद्ध रूप से जनता के बीच लाना बहुत जरूरी था। इस महत्वपूर्ण काम को अशोक पंकज ने किया है इसलिए वे धन्यवाद के पात्र हैं।”
एक सच्चे आन्दोलनजीवी थे लोहिया
अगले वक्ता राम बहादुर राय ने कहा, “डॉ. लोहिया एक महापुरुष हैं और रहेंगे। क्योंकि एक महापुरुष वह होता है जिसके विचार हमेशा प्रासंगिक रहते हैं और लोहिया जी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। डॉ. लोहिया एक सच्चे आन्दोलनजीवी थे। अगर उनको पता चलता कि कोई समूह अपनी मांगों को लेकर आवाज़ उठा रहा है तो वह जरूर उनका साथ देते थे। डॉ. लोहिया एक ऐसे महापुरुष है जिनके रास्ते पर चलकर नए भारत की एक लकीर खींची जा सकती है।”
पुस्तक के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “लोहिया जी के सपनों के समाजवाद को एक पुस्तक के रूप में लाने की अशोक पंकज ने जो संकल्पना उन्होंने की, उसमें वह सफल हुए हैं। यह पुस्तक ऐसी कुंजी है जो पाठकों को लोहिया जी के वैचारिक आँगन में पहुँचा देगी। इस पुस्तक को पढ़ते समय और डॉ. लोहिया को समझते हुए आप यह पाएंगे कि वे असहमति की आवाज़ थे। यह पुस्तक सवाल उठाती है कि आखिर लोहिया का सपना क्या था? इसके लिए हमें लोहिया जी को पढ़ना और उनके विचारों को समझना जरूरी है।”
एक वैचारिक योद्धा थे लोहिया
अगले वक्ता प्रो. के. एल. शर्मा ने कहा, “डॉ. लोहिया एक वैचारिक योद्धा थे। वे वास्तविक सामाजिक संरचना के पक्षधर थे। उनका मानना था कि मैं जो सोचता हूँ वह धरातल पर भी उसी रूप में आना चाहिए। लोगों में जागरूकता लाने के लिए उन्होंने कई बड़े आन्दोलनों का नेतृत्व किया। मानववाद पर उन्होंने बहुत जोर दिया। उनका मानना था कि आखिरी व्यक्ति तक लाभ पहुँचना चाहिए। वे कहते थे कि गैर-बराबरी के कई सोपान है, हमारे लिए उनको समझना बहुत जरूरी है। न्याय के सिद्धांत से ही जाति की व्यवस्था पर प्रहार किया जा सकता है।”
पुस्तक के बारे में उन्होंने कहा, “मेरे हिसाब से यह किताब गागर में सागर है। इसमें समाजवाद भी है, मार्क्सवाद भी है और हमारी भारतीय संस्कृति के बारे में भी बहुत कुछ है।”
लोहिया ने हर जरूरी सवाल पर मौलिक ढंग से विचार किया
अगले वक्ता हरिवंश ने राम मनोहर लोहिया के बारे में एक किस्सा सुनाते हुए अपने वक्तव्य की शुरुआत की। उन्होंने कहा, “लोहिया जी जब विदेश से पढ़ाई करके लौटे तो उनके घरवालों ने उनसे कोई नौकरी या व्यापार करने के लिए कहा तो उन्होंने नौकरी करने से इनकार कर दिया। जब उनके चाचा ने उनसे पूछा कि तुम किस चीज का व्यापार करोगे तो उनका जवाब था- करोड़पतियों के नाश का व्यापार।”
राम मनोहर लोहिया की लोकप्रियता के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “दूर-दराज के गाँवों में बैठे लोगों तक भी उनकी आवाज़ पहुँचती थी क्योंकि वह बहुत सादगी से उन्हीं की भाषा में अपनी बात रखते थे। उनका पहनावा भी देश के आम लोगों की तरह था। उन्होंने समाज के अन्तिम व्यक्ति को यह अहसास कराया कि वे उनसे अलग नहीं है, बल्कि उन्हीं के बीच के व्यक्ति हैं।”
लोहिया के विचारों की प्रासंगिकता पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “लोहिया जी ने अपने समय के हर जरूरी सवाल पर मौलिक ढंग से विचार किया है। उनके विचारों को कैसे आगे बढ़ाया जाए इस पर हमें सोचना चाहिए।”
असहमति लोकतंत्र का तत्व है
कार्यक्रम के अन्तिम वक्ता रघु ठाकुर ने कहा, “लोहिया की चिन्ताएँ वाजिब थी। लेकिन आज के परिप्रेक्ष्य में देखें तो चीजें काफ़ी बदल गई है। अगर आज लोहिया होते और उनसे पूछा जाता कि आपके समाजवाद को अनुयायियों ने जिस तरह से आगे बढ़ाया क्या आप उससे संतुष्ट हैं तो इसको लेकर शायद वे भी नाराजगी जाहिर करते। उनका कहना था कि कथनी और करनी में अन्तर होता है। उनकी विचारधारा को मानने वाले लोगों ने भी शायद यही किया जिसकी वजह से समाजवाद का वह आन्दोलन उस रूप में आगे नहीं चल पाया।”
आगे उन्होंने कहा, “लोहिया जी को असहमति की आवाज़ के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। असहमति लोकतंत्र का तत्व है। अगर लोकतंत्र को बचाना है तो हमें कुछ असहमति की आवाज़ उठाने और अपनी बातें कहने के लिए खड़े होना होगा। आज के समय में लोहिया जी के विचारों से हमें सीखने और उन्हें व्यवहार में लाने की ज्यादा जरूरत है। ऐसे में इस पुस्तक के लिए भी यह बहुत उपयुक्त समय है।”