Rajnath Singh ने सावरकर को देश का पहला रक्षा विशेषज्ञ बताया है। उन्होंने कहा है कि वीडी सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ने भारत को “मजबूत रक्षा और राजनयिक सिद्धांत” के साथ प्रस्तुत किया। साथ ही उन्होंने उनकी तुलना शेर से की। रक्षा मंत्री ने एक किताब के विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही। इस कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद थे। राजनाथ सिंह ने कहा कि उन्हें बदनाम करने का एक अभियान चलाया गया है। वो एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिसे लेकर कोई दो राय नहीं होनी चाहिए।
‘गांधी के कहने पर डाली थी दया याचिका’
राजनाथ सिंह यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि जहां तक बात दया याचिका की है तो उन्होंने गांधी के कहने पर ही इस याचिका को दायर किया था। ये झूठ है कि उन्होंने अंग्रेजों के सामने दया याचिका दी थी। साथ ही उन्होंने कहा कि सावरकर को लेकर तथ्यहीन बातें कही जाती है।
सावरकर को बदनाम किया गया: मोहन भागवत
विनायक दामोदर सावरकर यानी वीर सावरकर पर लिखी एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम में कहा कि स्वतंत्रता के बाद बदली हुई परिस्थितियों में वीर सावरकर को बदनाम करने के लिए, उनकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने के लिए बहुत से प्रयास किये गये। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके राष्ट्रवाद की अवधारणा को समझा ही नहीं गया या उसे समझने से जनमानस को रोका गया।
सावरकर के बाद अब स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती और श्रीअरविंद को भी बदनाम करने की साजिश होगी क्योंकि वीर सावरकर इन तीनों महापुरूषों के विचारों से प्रभावित थे। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि आज के माहौल में सावरकर जी का हिन्दुत्व, विवेकानंद का हिन्दुत्व बोला जाता है और यह एक फैशन जैसा हो गया है, जबकि हिन्दुत्व एक है। हिंदुत्व पहले से है और अंत तक उसका स्वरूप एक ही रहेगा।
हमारी पूजा विधि अलग है लेकिन पूर्वज एक हैं
संघ प्रमुख ने अल्पसंख्यक औऱ खासकर मुस्लिमों की सुरक्षा औऱ प्रतिष्ठा पर बोलते हुए कहा कि जो विभाजन के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान गए उन मुसलमानों की प्रतिष्ठा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान में भी वैसी नहीं है। दरअसल जो भारत का है, वो भारत का ही है। इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए।
भागवत ने कहा कि हमारी पूजा विधि अलग-अलग हो सकती है, लेकिन हमारे पूर्वज तो एक ही हैं। बंटवारे के बाद जो भी भारत छोड़कर पाकिस्तान गये क्या उन्हें वहां वो प्रतिष्ठा कभी नहीं मिली। हमारा हिंदुत्व वही है, जो सत्या है, सनातन है। वीर सावरकर ने स्पष्ट कहा है और इसमें कहीं से कोई दोराय नहीं होनी चाहिए कि किसी का तुष्टिकरण नहीं होना चाहिए।