भारत के पड़ोसी देश नेपाल (Nepal) में 20 नवंबर को हुए आम चुनाव (Election) के साथ-साथ विधानसभा चुनाव के नतीजे आज आ रहे हैं. नेपाल में 2015 में संविधान (Constitution) को बदलने के बाद दूसरी बार चुनाव हो रहें हैं. लेकिन अभी तक के नतीजों से संकेत मिल रहे हैं, कि ना सिर्फ नेपाल फिर से एक बार राजनीतिक अस्थिरता की तरफ बढ़ रहा है, बल्कि तमाम बड़े दलों के प्रति जनता में भारी असंतोष है. नेपाल में 1 करोड़ 80 लाख से ज्यादा वोटर हैं. हालांकि पूरा रिजल्ट एक हफ्ते में आने की उम्मीद है.
कैसे ओर कितनी सीटों पर होते हैं नेपाल में चुनाव?
नेपाल की हाऊस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव (संसद) और प्रांतीय विधानसभाओं के लिए चुनाव (Election) हुए थे. नेपाल की संसद में कुल 275 सीटें हैं जिनमें 165 सीटों पर फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FTTP) व्यवस्था के तहत चुनाव हुआ था. इन 165 सीटों के लिए कुल 2,412 उम्मीदवार चुनावी मैदान में थे. वहीं, बाकी की बची हुई 110 सीटों पर आनुपातिक प्रतिनिधि (Proportional Representation) व्यवस्था के तहत सदस्यों का चुनाव होगा. नेपाल में संसद और सभी 7 प्रांतों में एक साथ चुनाव होते हैं.
इसके अलावा प्रांतीय विधानसभा की 330 सीटों के लिए भी चुनाव हो रहे थे. इन 330 सीटों के लिए कुल 3,224 उम्मीदवार मैदान में थे. इन 330 सीटों पर फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (First Past The Post) व्यवस्था के तहत चुनाव हो रहा है जबकि बाकी की बची हुई 220 सीटों पर सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के तहत होगा. अभी आ रहे चुनाव नतीजों के बाद ही ये तय होगा आनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के तहत किस पार्टी को संसद और विधानसभाओं में कितनी सीटें मिलेंगी.
ओली सरकार के कार्यकाल में बढ़ा था भारत-नेपाल में तनाव
चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व नेपाली पीएम के पी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने कहा कि वो प्रधानमंत्री बनते ही भारत के साथ सीमा विवाद हल कर देंगे. वे देश की एक इंच भूमि भी जाने नहीं देंगे. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि 2 साल से ज्यादा सत्ता में रहने के बावजूद ओली ने इस विवाद को हल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया.
बतौर प्रधानमंत्री ओली ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा जो भारत के हिस्सें हैं को नेपाल में दर्शाता हुआ नया नक्षा (Map) जारी कर दिया था जिसको लेकर खासा विवाद हुआ था. भारत इन्हें अपने उत्तराखंड प्रांत का हिस्सा मानता है. ओली ने इस नक्शे को नेपाली संसद में पास भी करा लिया था. ओली राष्ट्रवादी मुद्दों को उछाल कर स्विंग वोटरों को अपने पक्ष में साधने में जुटे हुए थे.
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba) और भारत
नेपाली कांग्रेस के मुखिया और वर्तमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि उकसाने और शब्दों की लड़ाई की बजाय वो भारत के साथ कूटनीति और बातचीत के जरिए विवाद सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने 2022 में भारत का दौरा भी किया था.
पार्टियों की क्या है स्थिति
नेपाल चुनाव आयोग के अनुसार, अभी तक आए नतीजों में, प्रधानमंत्री शेर बबहादुर देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस 4 सीटें जीत चुकी हैं और 46 सीटों पर आगे चल रही है. वहीं, कम्युनिस्ट पार्टी सीपीएन-यूएमएल (CPN UML) 2 सीट पर जीत चुकी है और 42 सीटों पर आगे है. नागरिक उनमुक्ति पार्टी ने भी एख सीट पर जीत के साथ अपना खाता खोला है और 2 अन्य सीटों पर बढ़त बनाए हुए है.
सीपीएन माओवादी फिलहाल 16 सीटों पर आगे है, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी 11 सीटों पर आगे चल रही है, वहीं 8 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवार आगे हैं, जबकि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी फिलहाल 7 सीटों पर आगे चल रही है. इनके अलावा CPN- Unified Socialist 7 सीटों, जनता समाजवादी पार्टी 6 सीटों पर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी 2 सीटों पर आगे चल रही है.
जिस तरह के चुनावी रूझान हैं, उससे साफ जाहिर होता है, कि बड़ी पार्टियां जनता का पूर्ण समर्थन लेने में नाकामयाब रही हैं और नेपाल फिर से राजनीतिक अस्थिरता की तरफ बढ़ रहा है. बड़ी पार्टियों के खिलाफ असंतोष नेपाल में संघीय और प्रांतीय चुनावों के नतीजे जैसे-जैसे आ रहे हैं, ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि नेपाल के मतदाताओं ने देश के बड़े राजनेताओं के प्रति अपना असंतोष स्पष्ट कर दिया है.
शुरुआती नतीजे बताते हैं कि नेपाली कांग्रेस (एनसी) और सीपीएन-यूएमएल के बीच की 30 साल पहले की प्रतिद्वंद्विता अभी भी उतनी ही भयंकर है और इस बार नेपाल की राजनीति एक नए युग की शुरुआत देख सकती है. माओवादी-सेंटर और यूनिफाइड सोशलिस्ट ने हर जगह खराब प्रदर्शन किया है.
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का पांच दलीय गठबंधन भी चुनावी परिणाम में पिछड़ता दिख रहा है. अभी तक के रूझान के मुताबिक, छोटी पार्टियों ने बड़ी पार्टियों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है और निर्दलीय उम्मीदवार भी बड़े दलों के उम्मीदवारों पर भारी साबित हो रहे हैं.
रिपोर्टों के अनुसार माओवादी पार्टी के समर्थकों ने इस बार निर्दलीय और बागी उम्मीदवारों को वोट कर दिया है, जिससे माओवादी पार्टी को भयंकर नुकसान होता नजर आ रहा है. वहीं, केपी शर्मा ओली के गठबंधन को भी तगड़ा नुकसान होता दिख रहा है.
क्या है बड़े नेताओं की स्थिति?
इसके अलावा प्रमुख राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं ने अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अपने दावेदारों के खिलाफ बड़ी बढ़त बना ली है. नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष और प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा वर्तमान में दादेलधूरा-1 में अपने निकटतम उम्मीदवार से 4,686 मतों से आगे चल रहे हैं. इसी तरह झापा-5 में सीपीएन यूएमएल अध्यक्ष केपी शर्मा ओली 6,696 मतों के साथ सबसे आगे हैं.
वहीं, राकांपा माओवादी केंद्र के अध्यक्ष पुष्पा कमल दहल (Puspa Kamal Dahal) भी 6,340 मतों से आगे चल रहे हैं, जबकि CPN एकीकृत समाजवादी के अध्यक्ष माधव कुमार नेपाल के रौतहाट-1 में करीब 2,000 मतों से आगे चल रहे हैं.
राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी जिसपर है सबकी नजर
पेशे से पत्रकार रह चुके रबी लामिछाने द्वारा 6 महीने पहले बनाई गई ‘राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी’ ने काफी आक्रामक चुनाव प्रचार किया और उसका नतीजा अब रिजल्ट में देखने को मिल रहा है. नेपाल संसदीय चुनाव में प्रतिनिधि सभा के लिए 165 सीटों पर वोट डाले गये वोटों में से सिर्फ 6 महीने पहले पार्टी की स्थापना करने वाले रबी की ‘राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी’ 11 सीटों पर काफी ज्यादा वोटों से आगे चल रही है. 11 सीटों पर बढ़त के चलते रबी की पार्टी ने तमाम बड़े दलों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है और वो आगामी सरकार में किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकते हैं. रबी ने इस बार सिर्फ लोकसभा में उम्मीदवार उतारे थे. उनकी पार्टी ने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था
कौन हैं Rabi Lamichhane जिनकी हो रही है सबसे ज्यादा चर्चा?
लंबे समय से खोजी पत्रकारिता कर रहे रबि लामिछाने (Rabi Lamichhane) ने पूरे नेपाल में अपना एक अलग समर्थक बना लिया है. उनके नाम सबसे लंबे समय तक टॉक शो करने का रिकॉर्ड भी है. 21 जून 2022 को पूर्व पत्रकार रबि लामिछाने ने राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी का बनाया था. उनकी ताकत का अंदाजा इस बार से लगाया जा सकता है, कि उनसे डरकर पूर्व पीएम पुष्प दहल प्रचंड तक अपनी पसंदीदा सीट छोड़कर अन्य जगह से चुनाव लड़ रहें हैं.
रबि चार साल पहले ही अपनी अमेरिकी नागरिकता छोड़ चुके हैं मगर विपक्षी पार्टियों ने उनके विदेशी होने का मुद्दा जोरशोर के साथ उठाया था. हालांकि, अभी तक के चुनावी नतीजे बता रहे हैं, कि रबि पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.
वो बड़े मुद्दे जिनके आसपास लड़ा गया चुनाव?
20 नवंबर को हुए चुनावों में भ्रष्टाचार और देश की मौजूदा आर्थिक हालत सबसे बड़ा मुद्दे थे. आम लोग कार्यपालिका और न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को लेकर त्रस्त हैं. महंगाई और कमजोर होती अर्थव्यवस्था ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. नेपाल में अब भी कई क्षेत्र ऐसे हैं जो सड़क और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं पहुंच पाई है.