चंद्रमा पर उतरना, झंडा गाड़ना या वहां की मिट्टी लाना अब बीते समय की बात हो चुकी है। नई अंतरिक्ष दौड़ अब चंद्रमा पर स्थायी ठिकाने बनाने और ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने की ओर बढ़ रही है, जिसमें परमाणु ऊर्जा संयंत्र अहम भूमिका निभा सकते हैं। अप्रैल 2025 में चीन ने घोषणा की थी कि वह वर्ष 2035 तक अपने प्रस्तावित अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान केंद्र को ऊर्जा देने के लिए चंद्रमा पर परमाणु संयंत्र लगाएगा। इसके जवाब में, अगस्त में अमेरिका के कार्यवाहक नासा प्रशासक सीन डफी ने कहा कि अमेरिका 2030 तक चंद्रमा पर अपना परमाणु रिएक्टर चालू कर सकता है।
विशेषज्ञों की राय
अंतरिक्ष कानून विशेषज्ञ बताते हैं कि यह अचानक शुरू हुई प्रतिस्पर्धा नहीं है। NASA और अमेरिकी ऊर्जा विभाग लंबे समय से छोटे परमाणु ऊर्जा प्रणालियों पर काम कर रहे हैं, जो चंद्रमा पर बस्तियां, खनन कार्य और लंबे समय तक मानव उपस्थिति को ऊर्जा उपलब्ध करा सकें। उनका कहना है कि यह हथियारों की दौड़ नहीं बल्कि रणनीतिक इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने की प्रतिस्पर्धा है।
1960 के दशक से अमेरिका और सोवियत संघ अंतरिक्ष मिशनों में रेडियोआइसोटोप जनरेटर का उपयोग करते आए हैं, जिनसे उपग्रह, मंगल रोवर्स और वॉयजर जैसे मिशन संचालित हुए।
कानून क्या कहता है?
संयुक्त राष्ट्र का 1992 का गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव “बाह्य अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से संबंधित सिद्धांत” बताता है कि जहां सौर ऊर्जा पर्याप्त न हो, वहां परमाणु ऊर्जा का उपयोग उचित है। यह दस्तावेज सुरक्षा, पारदर्शिता और अंतरराष्ट्रीय परामर्श के दिशा-निर्देश तय करता है।
अंतरराष्ट्रीय कानून में कहीं भी चंद्रमा पर शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा उपयोग पर रोक नहीं है। लेकिन जो देश सबसे पहले यह करेगा, वह भविष्य के मानकों और कानूनी परंपराओं को आकार देगा।
1967 की बाह्य अंतरिक्ष संधि के अनुसार, सभी देशों को एक-दूसरे के हितों का ध्यान रखना होगा। इसका मतलब यह है कि यदि कोई देश चंद्रमा पर रिएक्टर लगाता है, तो उसके आसपास के इलाकों में अन्य देशों की गतिविधियां सीमित हो सकती हैं।
संप्रभुता पर रोक, लेकिन नियंत्रण संभव
संधि कहती है कि कोई भी देश चंद्रमा या अन्य ग्रहों पर संप्रभुता का दावा नहीं कर सकता, हालांकि वहां बनाए गए ठिकानों और सुविधाओं पर उनकी पहुंच को नियंत्रित किया जा सकता है।
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव जैसे संसाधन-समृद्ध क्षेत्रों में रिएक्टर स्थापित करना स्थायी उपस्थिति का संकेत हो सकता है, क्योंकि यहां क्रेटरों में पानी की बर्फ मौजूद है।
तकनीक और भविष्य
- एक छोटा चंद्र रिएक्टर 10 साल से ज्यादा समय तक लगातार बिजली दे सकता है, जिससे आवास, रोवर्स, 3D प्रिंटर और जीवन समर्थन प्रणालियां चल सकें। यही तकनीक भविष्य के मंगल मिशनों के लिए भी आवश्यक मानी जा रही है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका के पास न सिर्फ तकनीकी बल्कि शासन के स्तर पर भी नेतृत्व करने का मौका है। अगर वह अपने प्रोजेक्ट्स को पारदर्शी रखे, अंतरराष्ट्रीय नियमों का पालन करे और शांतिपूर्ण उपयोग का आश्वासन दे, तो यह अन्य देशों को भी प्रेरित करेगा।
- भविष्य में चंद्रमा पर प्रभाव का पैमाना झंडों से नहीं, बल्कि वहां खड़े किए गए ढांचों और उनके उपयोग से तय होगा — और इसमें परमाणु ऊर्जा की भूमिका अहम हो सकती है, बशर्ते इसे जिम्मेदारी और अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों के तहत लागू किया जाए।