आयरलैंड में गर्भपात पर लगे प्रतिबंध को हटाने के लिए किए जनमत संग्रह में 66.4 लोगों ने इसके पक्ष में मतदान किया है। जनमत के नतीजों के मुताबिक 66 फीसदी से ज्यादा लोग चाहते थे कि यह प्रतिबंध हटाया जाए, जबकि 33 फीसदी लोग गर्भपात पर प्रतिबंध के पक्षधर थे।
इस पूरी मुहिम के पीछे खास बात यह रही कि इस मुहिम में एक भारतीय महिला रही। आयरलैंड में भारतीय दंतचिकित्सक सविता हलप्पनवार को 2012 में गर्भपात की इजाजत नहीं मिलने पर एक अस्पताल में उनकी मौत हो गई थी। वह उस वक्त सविता 17 हफ्तों की गर्भवती थीं।
सविता के पति प्रवीण हालापनवर ने बताया था कि एक दिन भारी पीड़ा में बिताने और यह बताए जाने के बाद कि वह जीवित बच्चे को जन्म नहीं दे पाएंगी, सविता ने चिकित्सीय रूप से गर्भपात करने को कहा। प्रवीण ने बताया था कि डॉक्टरों ने यह मांग खारिज कर दी क्योंकि भ्रूण में अभी भी दिल की धड़कन मौजूद थी और यह कहा कि ‘यह एक कैथोलिक देश है। ’ बाद में मृत भ्रूण को हटा कर सविता को सघन चिकित्सा कक्ष में रखा गया, जहां 28 अक्टूबर 2012 को सेप्टिसेमिया के कारण उनकी मौत हो गई थी इसके बाद से ही देश में गर्भपात पर चर्चा छेड़ दी।
सविता के पिता आनंदप्पा यालगी ने कर्नाटक स्थित अपने घर से कहा कि उन्हें आशा है कि आयरलैंड की जनता उनकी बेटी को याद रखेंगी।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब तक यहां महिला की जान को खतरा होने की स्थिति में ही गर्भपात की इजाजत है लेकिन बलात्कार के मामलों में भी गर्भपात को मंजूरी नहीं है।
भारतीय मूल के प्रधानमंत्री लियो वरदकर ने शनिवार को जनमत संग्रह के नतीजों की घोषणा की। वरदकर ने कहा, “लोगों ने अपनी राय जाहिर कर दी। उन्होंने कहा है कि एक आधुनिक देश के लिए एक आधुनिक संविधान की जरूरत है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि आयरलैंड के मतदाता, “महिलाओं के सही निर्णय लेने और अपने स्वास्थ्य के संबंध में सही फैसला करने के लिए उनका सम्मान और उन पर यकीन करते हैं।” उन्होंने कहा कि हमने जो देखा वह आयरलैंड में पिछले 20 साल से हो रही शांत क्रांति की पराकाष्ठा है।
दरअसल आयरलैंड में यूरोप के कुछ कड़े गर्भपात संबंधी कानूनों को लचीला बनाने को लेकर जनमत संग्रह में हिस्सा लिया था। आयरलैंड पारंपरिक रूप से यूरोप के सबसे धार्मिक देशों में से एक है। हालांकि बाल यौन उत्पीड़न के मामले सामने आने के बाद हाल के वर्षों में कैथोलिक चर्च का प्रभाव कम हुआ है।