बांग्लादेश में चुनाव से पहले बढ़ा राजनीतिक तनाव—राष्ट्रपति शाहाबुद्दीन के इस्तीफे की मांग पर तेज टकराव, BNP–छात्र संगठनों में मतभेद

0
0
बांग्लादेश में चुनाव से पहले बढ़ा राजनीतिक तनाव—राष्ट्रपति शाहाबुद्दीन के इस्तीफे की मांग पर तेज टकराव, BNP–छात्र संगठनों में मतभेद
बांग्लादेश में चुनाव से पहले बढ़ा राजनीतिक तनाव—राष्ट्रपति शाहाबुद्दीन के इस्तीफे की मांग पर तेज टकराव, BNP–छात्र संगठनों में मतभेद

बांग्लादेश में आगामी चुनावों से पहले राजनीतिक हलचल तेज हो चुकी है। राष्ट्रपति मोहम्मद शाहाबुद्दीन के इस्तीफे की मांग को लेकर देश की राजनीति दो खेमों में बंटी दिख रही है। द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, विपक्षी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट मूवमेंट के बीच इस मुद्दे पर गंभीर मतभेद सामने आए हैं। इस बीच, पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया की तबीयत बिगड़ती जा रही है और उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया है, जिससे राजनीतिक अशांति के बीच चिंता और बढ़ गई है।

BNP राष्ट्रपति को हटाने की मांग का विरोध क्यों कर रही है?

BNP ने साफ कहा है कि राष्ट्रपति का पद खाली करना देश को बड़े संवैधानिक संकट में धकेल देगा।मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मोहम्मद यूनुस के साथ बैठक के बाद BNP के स्टैंडिंग कमिटी सदस्य नजूरुल इस्लाम खान ने मीडिया से कहा— राष्ट्रपति पद खाली हुआ तो संवैधानिक शून्य पैदा होगा। यह स्थिति “राष्ट्र की इच्छा के खिलाफ” होगी। किसी भी तरह के संवैधानिक संकट की कोशिश का लोकतांत्रिक दल मिलकर विरोध करेंगे। बैठक में विधि सलाहकार आसिफ नजूरुल और मुख्य सलाहकार के विशेष सहायक महफूज आलम भी मौजूद थे।

BNP नेता अमीर खासरू महमूद और सलाहुद्दीन अहमद ने भी यही चेतावनी दोहराई कि राष्ट्रपति को हटाने का कदम देशहित में नहीं होगा।
सलाहुद्दीन ने कहा—“राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, उसका हटाया जाना पूरे राष्ट्रीय ढांचे में अस्थिरता पैदा करेगा।” छात्र संगठनों की कड़ी मांग—“1972 संविधान खत्म करो, राष्ट्रपति हटाओ”। एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट मूवमेंट और जातीय नागरिक कमिटी ने बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस में दो बड़े मुद्दों पर ज़ोर दिया— 1972 के संविधान को रद्द किया जाए और राष्ट्रपति शाहाबुद्दीन को हटाया जाए।

मूवमेंट के कन्वेनर हसनत अब्दुल्लाह ने कई दलों से राष्ट्रीय एकता का हिस्सा बनने की अपील की। उन्होंने चेतावनी दी— “जो भी राजनीतिक दल 1972 संविधान को खत्म करने और राष्ट्रपति के इस्तीफे की मांग के साथ नहीं आएगा, उसका बहिष्कार किया जाएगा।” उन्होंने शेख हसीना का उदाहरण देते हुए कहा कि संविधान ने लगातार “फासीवादी ढांचे” को मजबूती दी। सरकार की अपील—धरना न दें, समाधान राजनीतिक सहमति से निकलेगा। अंतरिम सरकार के सूचना सलाहकार नहिद इस्लाम ने कहा— राष्ट्रपति पर कोई फैसला कानूनी उपायों से नहीं, बल्कि राजनीतिक सहमति और राष्ट्रीय एकता से होगा।

सरकार स्थिरता और सुरक्षा को प्राथमिकता दे रही है। प्रदर्शनकारियों से अपील है कि बांगभवन के आसपास धरना न दें—“आपका संदेश सरकार तक पहुंच चुका है।” मुख्य सलाहकार के प्रेस सचिव शफीकुल आलम ने साफ किया कि राष्ट्रपति को हटाने पर अभी कोई निर्णय नहीं हुआ है।

विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

यह विवाद तब भड़का जब रविवार को ‘मानव जमीन’ पत्रिका ने राष्ट्रपति शाहाबुद्दीन का बयान प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने दावा किया—उन्हें शेख हसीना का इस्तीफा मिलने की सूचना तो मिली, लेकिन उन्हें कोई आधिकारिक कागज नहीं दिया गया। राष्ट्रपति ने कहा—“मैंने इस्तीफा पत्र हासिल करने की कोशिश की, लेकिन नहीं मिला।” इसके बाद सोमवार को विधि सलाहकार आसिफ नजूरुल ने राष्ट्रपति पर झूठ बोलने का आरोप लगाया और उनकी मानसिक क्षमता पर सवाल खड़े किए। इस विवाद ने छात्र आंदोलनों को और उग्र बना दिया। मंगलवार को सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने बांगभवन सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश की, लेकिन वे रोक दिए गए।

राष्ट्रपति चुनाव के बाद इस्तीफे को तैयार

सूत्रों के अनुसार, राष्ट्रपति शाहाबुद्दीन ने एक विदेशी मीडिया संस्था से कहा है कि वे फरवरी के चुनाव के बाद इस्तीफा देने के इच्छुक हैं। उन्होंने इंटरिम सरकार द्वारा “अपमानित किए जाने” की शिकायत भी की— सात महीनों में कोई मुलाकात नहीं, प्रेस विभाग हटाना और दूतावासों से उनकी तस्वीरें हटाना। साथ ही उन्होंने कहा— “मैं पद छोड़ना चाहता हूँ… लेकिन चुनाव तक बना रहूंगा।”