मध्यप्रदेश में 15 नवंबर 2022 को जनजातीय गौरव दिवस के दिन 1996 में बने पेसा एक्ट (‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) (Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act, 1996- PESA Act) अधिनियम को लागू कर दिया है. इसके साथ ही मध्यप्रदेश ये कानून लागू करने वाला 10वां राज्य बन गया है.
पेसा अधिनियम PESA Act क्या है?
आदिवासियों के हितों को लेकर बनाई गई भूरिया समिति की सिफारिशों के आधार पर यह सहमति बनी कि देश के अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक केंद्रीय कानून बनाना ठीक रहेगा, जिसके दायरे में राज्य विधानमंडल अपने-अपने कानून बना सकें. भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद दिसंबर, 1996 में संसद में PESA विधेयक प्रस्तुत किया गया. दिसंबर, 1996 में ही यह दोनों सदनों से पारित हो गया तथा 24 दिसंबर 1996 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त कर लागू हो गया था.
इसका मूल उद्देश्य यह था कि केंद्रीय कानून में जनजातियों की स्वायत्तता के बिंदु स्पष्ट कर दिये जाएं जिनका उल्लंघन करने की शक्ति राज्यों के पास न हो. वर्तमान में 10 राज्यों (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान) में यह अधिनियम लागू होता है.
इसका अन्य उद्देश्य जनजातीय जनसंख्या को स्वशासन प्रदान करना, पारंपरिक परिपाटियों की सुसंगता में उपयुक्त प्रशासनिक ढांचा विकसित करना एवं ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाना भी है. लागू हो गया है. हालांकि इसे लागू करने की घोषणा काफी पहले ही की जा चुकी है.
मध्यप्रदेश में पेसा कानून?
देशभर के कई राज्यों में लागू पेसा एक्ट (PESA Act) का संबंध मध्यप्रदेश से ज्यादा है. क्योंकि मध्यप्रदेश के ही जनप्रतिनिधि दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में बनाई गई समिति की अनुशंसा पर यह एक्ट बनाया गया था. 24 दिसंबर 1996 को पेसा कानून देश में लागू हुआ था. इसके लगभग 26 साल के बाद लागू होने के पिछे सबसे बड़ा कारण इस कानून के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकारों की ओर से नियम बनाए जाने थे.
73वां भारतीय संविधान संशोधन अधिनियम 1992 में पंचायती राज्य की व्यवस्था की गई है, इसी संशोधन के नियम-2 में यह उपबंध है कि पंचायतों में महिलाओं एवं अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लिए संख्या के आधार पर आरक्षित कर लाभ दिया जाए. इसी आधारशीलता पर पेसा एक्ट पारित किया गया है.
क्या है उद्देश्य
केंद्र सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए बनाए गए पेसा कानून को देश की आदिवासी पंचायतों की रीढ़ माना जाता है. पेसा के तहत आदिवासियों की पारंपरिक प्रणाली को मान्यता दी गई है. केंद्र ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र के लिए विस्तार) (पेसा) अधिनियम 1996 कानून लागू किया था. वर्तमान में 5वीं अनुसूची में छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, गुजरात, हिमाचल, राजस्थान, तेलंगाना और राजस्थान में लागू है. मध्यप्रदेश देश का 10वां राज्य है जिसने इसे पूरी तरह से लागू किया है.
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996
भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में देश में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई थी. लेकिन यह महसूस किया गया कि इसके प्रावधानों में अनुसूचित क्षेत्रों विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों की आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है. इसी कमी को पूरा करने के लिए संविधान के भाग 9 के अन्तर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशिष्ट पंचायत व्यवस्था लागू करने के लिए पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996 बनाया गया. इस अधिनियम को 24 दिसम्बर 1996 को राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदित किया गया था.
पेसा अधिनियम की विशेषताएं
यह संविधान के भाग 9 के पंचायत से जुड़े प्रावधानों को संशोधनों के साथ अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करता है. यह अधिनियम जनजातीय समुदाय को भी स्वशासन का अधिकार प्रदान करता है. इसका उद्देश्य सहयोगी लोकतन्त्र के तहत ग्राम प्रशासन स्थापित करना और ग्राम सभा को सभी गतिविधियों का केंद्र बनाना है. इसमें जनजातीय समुदाय की परम्पराओं और रिवाजों की सुरक्षा और संरक्षण का भी प्रावधान किया गया है. यह जनजातीय लोगों की आवश्यकताओं के अनुरूप उपर्युक्त स्तरों पर पंचायतों को विशिष्ट शक्तियों से युक्त बनाता है.
ग्राम सभा के कार्य
ग्राम सभा एक ऐसा निकाय है जिसमें वे सभी लोग सम्मिलित होते हैं जिनके नाम ग्राम स्तर पर पंचायत की निर्वाचन सूची में दर्ज होते हैं. ग्राम सभा को संविधान के अनुच्छेद 243ख में परिभाषित किया गया है. ग्राम सभा से जुड़े प्रावधानों को संविधान में 73वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा गया था. ग्राम सभा की मतदाता सूची में दर्ज 18 वर्ष से अधिक उम्र के सभी व्यक्ति ग्राम सभा के सदस्य होते हैं. पंचायती राज अधिनियम के अनुसार ग्राम सभा की बैठकें साल में कम से कम दो बार अवश्य होनी चाहिए. ग्राम पंचायत को अपनी सुविधानुसार ग्राम सभा की बैठक आयोजित करने का अधिकार है.
पेसा अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव
देश में पेसा अधिनियम के क्रियान्वयन में आई समस्याओं को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2013 में उसमें संशोधन करने के लिये एक विधेयक तैयार किया था जो अभी पारित नहीं हो सका है. यह संशोधन विधेयक अपनी प्रकृति में काफी प्रगतिशील है जिसमें कई उपबंध किये गए थे, जैसे- अधिग्रहण या पुनर्वास से जुड़े उक्त मामलों के लिये ग्रामसभा या पंचायत की ‘जानकारीपूर्ण सहमति’ ली जाएगी. संशोधन विधेयक में पुनर्वास के साथ ‘धारणीय आजीविका’ शब्दावली का प्रयोग किया गया है. पेसा संशोधन विधेयक में गौण खनिजों के साथ-साथ महत्त्वपूर्ण खनिजों को भी शामिल कर लिया गया है.
पेसा संशोधन विधेयक में यह व्यवस्था भी की गई है कि केंद्र सरकार इस अधिनियम तथा इसके तहत बनाए गए नियमों के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये राज्य सरकारों को सामान्य तथा विशेष निर्देश जारी कर सकेगी.