‘एक देश, एक चुनाव’ (वन नेशन, वन इलेक्शन) बिल को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है, लेकिन इसे पारित करना सरकार के लिए उतना आसान नहीं होगा। यह बिल देश में लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव रखता है, जिसे लेकर राजनीतिक गलियारों में गर्म चर्चा हो रही है। जहां सरकार इसे समय और संसाधन बचाने वाला कदम बता रही है, वहीं विपक्ष इसे संविधान और संघीय ढांचे के खिलाफ मान रहा है।
आइए जानते हैं कि इस बिल को लेकर सरकार को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और इसके पीछे की पूरी इनसाइड स्टोरी।
संवैधानिक चुनौतियां
‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करना केवल एक बिल पारित करने का मामला नहीं है। इसके लिए संविधान में बड़े बदलाव करने की आवश्यकता होगी।
- अनुच्छेद 83 और 172: लोकसभा और विधानसभा के कार्यकाल की अलग-अलग अवधि तय करता है। इसे बदलने के लिए संविधान संशोधन की जरूरत होगी।
- संघीय ढांचे पर असर: भारत के संविधान में संघीय ढांचे का प्रावधान है, जहां केंद्र और राज्यों के अधिकार स्पष्ट रूप से विभाजित हैं। विपक्ष का मानना है कि यह कदम राज्यों के अधिकारों को कमजोर कर सकता है।
- संविधान में संशोधन के लिए संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। राज्यसभा में सरकार के पास यह बहुमत नहीं है, जो इस बिल को पारित कराने में सबसे बड़ी बाधा बन सकता है।
राजनीतिक विरोध
इस बिल को लेकर लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों ने विरोध दर्ज कराया है।
स्थानीय मुद्दों की अनदेखी का आरोप:
विपक्ष का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से राज्यों के स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय राजनीति में दब जाएंगे।
सत्ता में अस्थिरता का खतरा:
यदि किसी राज्य की सरकार गिरती है, तो वहां चुनाव कराने के लिए पूरे देश के साथ चुनाव का इंतजार करना होगा। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अस्थिरता ला सकता है।
संवैधानिक संस्था की भूमिका:
चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और कार्यक्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष का आरोप है कि यह सरकार का सत्ता केंद्रीकरण करने का प्रयास है।
प्रायोगिक और लॉजिस्टिक समस्याएं
‘एक देश, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों की जरूरत होगी।
- ईवीएम और वीवीपैट की संख्या: पूरे देश के चुनाव के लिए लाखों अतिरिक्त ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की जरूरत होगी।
- सुरक्षा बलों की तैनाती: सभी राज्यों में एक साथ चुनाव कराने के लिए भारी संख्या में सुरक्षाबलों की आवश्यकता होगी, जो एक बड़ी चुनौती है।
- लॉजिस्टिक्स: इतने बड़े पैमाने पर चुनावों को आयोजित करना और उनका प्रबंधन करना बेहद कठिन होगा।
सत्ता के भीतर भी मतभेद
- खबरों के अनुसार, सरकार के भीतर भी इस मुद्दे को लेकर मतभेद हैं।
- राज्यों में अलग-अलग विचारधाराएं: भाजपा शासित कुछ राज्य भी इस बिल को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं।
- आर्थिक चुनौतियां: एक साथ चुनाव के लिए भारी धनराशि की आवश्यकता होगी, जो सरकार की मौजूदा वित्तीय स्थिति को देखते हुए मुश्किल हो सकता है।
विपक्ष के लिए यह राजनीतिक मुद्दा
‘एक देश, एक चुनाव’ न केवल संवैधानिक मुद्दा है, बल्कि यह राजनीतिक रणनीति का भी हिस्सा बन चुका है। विपक्ष इस बिल को केंद्र सरकार के खिलाफ एकजुट होने का मौका मान रहा है।
‘एक देश, एक चुनाव’ बिल को लेकर सरकार का दावा है कि यह समय और संसाधन बचाने के लिए जरूरी है। लेकिन संवैधानिक चुनौतियां, राजनीतिक विरोध और प्रायोगिक समस्याएं इसे लागू करने में बड़ी बाधा हैं। सरकार के लिए यह बिल पारित कराना आसान नहीं होगा, खासकर राज्यसभा में।