बेंगलुरु के एआई इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने समाज को हिलाकर रख दिया। अपनी पत्नी और ससुराल वालों से उत्पीड़न का शिकार होकर उन्होंने पिछले साल दिसंबर में आत्महत्या कर ली थी। अपनी जान देने से पहले उन्होंने एक सुसाइड नोट और वीडियो रिकॉर्ड किया था, जिसमें उन्होंने अपनी निजी जिंदगी के कई पहलुओं को उजागर किया। इस मामले में पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया और अतुल सुभाष की पत्नी निकिता सिंघानिया और उनके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार किया। अब एक महत्वपूर्ण सवाल उठता है कि अतुल के बेटे की कस्टडी किसे दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले के माध्यम से यह स्पष्ट किया कि बेटे की कस्टडी उनकी पत्नी निकिता सिंघानिया को दी जाएगी। तो चलिए जानते हैं कि कस्टडी के मामले में कोर्ट के नियम क्या होते हैं और वह किस आधार पर फैसला लेते हैं।
कस्टडी के निर्णय की प्रक्रिया:
कस्टडी का मामला विशेष रूप से तलाक, अलगाव या किसी अन्य पारिवारिक विवाद के समय सामने आता है। इस प्रक्रिया में कोर्ट का मुख्य उद्देश्य बच्चे के कल्याण और उसकी खुशहाली को सुनिश्चित करना होता है। जब कोई युगल अपनी शादी को समाप्त करने का निर्णय लेता है या किसी भी अन्य कारण से अलग होता है, तो सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह होता है कि बच्चे की देखभाल किसे सौंपी जाए।
गार्डियन एंड वार्ड एक्ट:
भारत में कस्टडी का मामला ‘गार्डियन एंड वार्ड एक्ट’ के तहत आता है, जिसके अनुसार किसी भी बच्चे की देखभाल का अधिकार उसके माता-पिता दोनों के पास बराबरी से होता है। हालांकि, कोर्ट इस बात पर विचार करता है कि कौन सा अभिभावक बच्चे की बेहतर देखभाल और परवरिश कर सकता है। इसके अलावा, बच्चे की इच्छा और उसकी मानसिक स्थिति का भी विचार किया जाता है।
कस्टडी के लिए कोर्ट द्वारा निर्धारित मापदंड:
कोर्ट जब कस्टडी का फैसला करता है, तो उसे कई मापदंडों को ध्यान में रखना होता है, जैसे:
बच्चे की उम्र: छोटे बच्चों की कस्टडी आमतौर पर माँ को दी जाती है, क्योंकि उनकी देखभाल में माँ की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।
बच्चे की इच्छाएं: यदि बच्चे की उम्र थोड़ी बड़ी है, तो कोर्ट यह देखता है कि बच्चा किसके साथ रहना चाहता है। इसके लिए बच्चे से व्यक्तिगत रूप से भी पूछा जा सकता है।
शारीरिक और मानसिक स्थिति: कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि बच्चा मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहे, और उसे किसी भी प्रकार की मानसिक या शारीरिक चोट का सामना न करना पड़े।
परिवार का माहौल: कोर्ट यह भी देखता है कि जिस अभिभावक के पास कस्टडी दी जाती है, उसका घर और परिवार बच्चें के लिए एक सुरक्षित और आरामदायक वातावरण प्रदान करता हो।
पारिवारिक विवाद और हिंसा: यदि अभिभावक के बीच कोई गंभीर पारिवारिक विवाद या हिंसा का मामला हो, तो कोर्ट बच्चे की सुरक्षा और भलाई को प्राथमिकता देते हुए कस्टडी का निर्णय करता है।
अंतिम विचार: कोर्ट का उद्देश्य केवल बच्चे की भलाई को ध्यान में रखते हुए कस्टडी का निर्णय लेना होता है। अतुल सुभाष के बेटे के मामले में, यह देखा गया कि उनकी माँ, निकिता सिंघानिया, बच्चे की परवरिश और देखभाल के लिए बेहतर विकल्प थीं। हालांकि, कस्टडी के निर्णय में न्यायालय का मुख्य ध्यान हमेशा बच्चे की मानसिक और शारीरिक स्थिति, उसकी सुरक्षा और खुशहाली पर होता है, जो कि परिवार के अन्य सदस्यों से अधिक महत्वपूर्ण होता है।