Shattila Ekadashi: माघ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली षटतिला एकादशी सभी एकादशियों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। बीते 13 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी थी। आज के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु का व्रत एवं पूजन के पश्चात मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाकर बैकुंठ को प्राप्त करता है।पंचाग के अुनसर 28 जनवरी को माघ मास के कृष्ण पक्ष में इस वर्ष षटतिला एकादशी (shattila ekdashi ) का योग बना हुआ है। मान्यता है कि दिन विधि विधान से पूजन करने वाले मनुष्य को हजारों किए गए कन्यादान, दान, हजारों सालों की तपस्या और स्वर्ण दान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
क्या है षटतिला एकादशी का महत्व
Shattila Ekadashi : आज शुक्रवार होने की वजह से षटतिला एकादशी का महत्व कहीं और अधिक बढ़ गया है। दरअसल आज ही धन की देवी मां लक्ष्मी का व्रत भी रखा जाता है। कई लोग वैभव लक्ष्मी जी का व्रत एवं पूजन करते हैं। ऐसे में अगर आज उनके पूजन के साथ श्री हरि नारायण की उपासना कर भक्त श्रेष्ठ फल की प्राप्ति कर लेता है। मकर संक्राति के बाद पड़ रही इस एकादशी में पूजा के दौरान तिलों का विशेष रूप से प्रयोग करें। दरअसल सूर्य देव मकर राशि में होने के साथ ही उत्तरायण हैं। ऐसे में प्रभु को तिल का भोग लगाने से विशेष फल मिलता है ।
Shattila Ekadashi का शुभ मुहूर्त
Shattila Ekadashi : षटतिला एकादशी 2022 पूजन मुहूर्त 28 जनवरी को सुबह सात बजकर 11 मिनट से नौ बजकर 20 मिनट तक सर्वश्रेष्ठ है। इस दौरान व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व ही स्नान आदि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। शांत चित्त रहकर अपने कार्य करें, मन ही मन हरिनाम और विष्णु जी का स्मरण करें, उनके साथ ही देवी लक्ष्मी जी को भी नमन करें।
Shattila Ekadashi में तिल का दान है अहम: आज के किया गाय दान आपको कई जन्मों के पाप बंधन से मुक्त करेगा । इसलिए गरीब, जरूरतमंद, असहाय लोगों को तिल एवं तिल निर्मित पदार्थ जैसे तिल की पट्टी, तिल के बने लड्डू , तिल एवं गुड़ निर्मित मिठाई, तिल की बर्फी, तिल खजूर एवं फल दें। आज तिल के छह प्रकार से प्रयोग किए हैं। जिसमें तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन, तिल का दान प्रमुख हैं। भोजन में चावल का सेवन कदापि न करें।
Shattila Ekadashi की कथा: एक बार नारद मुनि ने भगवान विष्णु से जी षटतिला एकादशी का माहात्मय जाना तब श्री हरि विष्णु ने उन्हें एक कथा सुनाई। जिसके अनुसार प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी थी, जो सदैव व्रत किया करती थी। इससे वह काफी दुर्बल हो गई। उसने पूजा उपवास तो किया, लेकिन कभी किसी को मदद नहीं की, न ही अन्न से और न ही धन से । उसका मानना था कि व्रत और पूजा करने मात्र से ही वो भगवान को प्रसन्न कर बैकुंठ को प्राप्त कर लेगी।
एक दिन स्वयं प्रभु विष्णु भिखारी का वेश धारण कर मृत्युलोक में उसके पास पहुंचे। उन्होंने ब्राह्मणी से भिक्षा मांगी, इस पर उसने एक माटी का ढेला उनके बरतन में डाल दिया। कुछ दिन बाद वह देह त्याग स्वर्ग में प्रस्थान कर गई। उसे वहां महल, भवन समस्त सुख साधन तो मिले, लेकिन खाने को अन्न नहीं मिला। जब उसने भगवान विष्णु जी से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पहले तुम अपने घर जाओ वहां कुछ देव स्त्रियां तुम्हें देखने आएंगी।
तुम पहले उनसे षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुनना उसके बाद ही द्वार को खोलना, उसने ऐसा ही किया। इसके बाद ब्राह्मणी ने उन देव स्त्रियों के बताए अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत करने के बाद पारण किया। इसके प्रभाव से वह पहले की ही समान रूपवती और धन धान्य से पूर्ण हो गई। उसने प्रभु से क्षमा याचना की। अत: जो मनुष्य तिल, भोजन एवं कपड़ों का दान करता है। वह हमेशा सम्पन्न, दुर्भाग्य से दूर खुश रहता है।
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