Navratri 2022: आदि शक्ति का प्रतीक हैं जौ, देवी का आशीर्वाद प्राप्‍त करने के लिए जरूर बोएं जो, यहां जानिए इनका महत्‍व

Navratri 2022: हिंदू शास्‍त्रों के अनुसार पृथ्वी पर उगाई जाने वाली सबसे पहली फसल जौ को ही माना गया है। पृथ्वी को मां का दर्जा दिया गया है।ऐसे में धरती पर उगी पहली फसल जवारे को भी शास्त्रों में मां का ही एक रूप माना गया है।

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Navratri 2022: जगत जननी मां आदि शक्ति की उपासना का पर्व यानी नवरात्र जल्‍द ही शुरू होने जा रहा है। शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से आरंभ हो रहे हैं। नवरात्रि में 9 दिनों की पूजा से पहले देवी दुर्गा का नाम लेते हुए कलश स्थापना करने और जवारे बोने की परंपरा प्राचीन है। नवरात्रि में देवी मां की पूजा ज्‍वारे बिना अधूरी मानी जाती है।ज्‍वारे इस प्रकृति के चक्र का संकते देने के साथ ही हमें बहुत कुछ समझाते भी हैं।यही वजह है कि नवरात्रि के मौके पर देवी को प्रसन्‍न करने के लिए ज्‍वारे बोए जाते हैं। इस नवरात्र में जौं जरूर बोएं।

इन्‍हें बोने के बाद माता रानी की चौकी के समीप ही रखें। कुछ ही दिनों में इनमें अंकुर आने शुरू हो जाएंगे, जोकि हमें कई बातों का संकेत देते हैं। आइये जानते हैं कि आखिर क्‍यों बोए जाते हैं जौं ? क्‍या है इनका महत्‍व और क्‍या संकेत बताते हैं ये हमें ?

हिंदू शास्‍त्रों के अनुसार पृथ्वी पर उगाई जाने वाली सबसे पहली फसल जौ को ही माना गया है। पृथ्वी को मां का दर्जा दिया गया है।ऐसे में धरती पर उगी पहली फसल जवारे को भी शास्त्रों में मां का ही एक रूप माना गया है। नवरात्रि में अलग-अलग घरों में जौ बोने का तरीका भी अलग-अलग होता है। कुछ लोग बालू में जौ डाल कर जवारे उगाते हैं तो कुछ लोग मिट्टी में।आइए जानते हैं कि जवारे बोने का सही तरीका क्‍या है और इस दौरान किन नियम-धर्मों का भक्‍त को ध्‍यान रखना चाहिए।

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Navratri 2022: जौ बोने की विधि

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नवरात्रि में एक मिटटी के बरतन में गेहूं और जौ को बोया जाता है। पूरे 9 दिन इसका विधि-विधान के साथ पूजन भी किया जाता है।नवरात्र में जवारे के बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है।चाहे चैत्र हो शारदीय या गुप्‍त नवरात्र सभी में भी जवारे बोने की परंपरा सनातन धर्म में सदियों से चली आ रही है।नवरात्रि के दौरान जो लोग कलश स्थापना या घट स्थापना करते हैं। उन्‍हें जवारे जरूर बोना चाहिए, क्योंकि जवारों के बिना मां दुर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है। नवरात्र में प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना के समय जवारों को माता रानी की चौकी के पास ही बोया जाता है।

जवारों को नवरात्र के समापन पर बहते पानी में प्रवाहित कर दिया जाता है। जौ बोने के पीछे मान्यता है कि सृष्टि की शुरुआत में सबसे पहली फसल जौ की ही थी। जौ को पूर्ण फसल भी कहा जाता है। इसे बोने का मुख्य कारण है कि अन्न ब्रह्म है, इसलिए अन्न का सम्मान करना चाहिए। देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, तो हवन में जौ अर्पित किए जाते हैं।

जवारे बोने के नियम

  • जौ बोने से पूर्व पूजा स्थल को साफ करें और वहां चावल के कुछ दाने डाल दें
  • मिट्टी का एक शुद्ध पात्र लेकर इसे स्वच्छ जल से साफ कर लें
  • अब इस पात्र में किसी पवित्र नदी की बालू डालें, बालू को पहले अच्छी तरह से छान लें ताकि कंकड़-पत्थर न जाएं
  • अब इसमें जौ के दाने डाल दें और अच्छी तरह से फैलाकर बालू से ही हल्के-हल्के ढक दें
  • इसी पात्र में कलश स्थापना करें, हालांकि कई लोग जौ के पात्र से अलग ही कलश की स्थापना करते हैं
  • 9 दिनों तक लगातार जौ की स्थिति देखते हुए पात्र में शुद्ध जल अर्पित करते रहें, सीमित मात्रा में जल का छिड़काव करें
  • तीन दिन में जवारे अंकुरित होते नजर आने लगेंगे, 5वें दिन तक अच्छी वृद्धि हो जाएगी। ऐसे में मौली की मदद से उन्हें हल्के बांध दें इससे सपोर्ट मिलेगा और जवारे गिरेंगे नहीं
  • डिसक्लेमर- इस लेख में निहित जानकारी/सामग्री विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित की गईं हैं।ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं।हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही पढ़ें।

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