‘घुघुतिया’ एक ऐसा पर्व जिसका ताल्‍लुक कौओं से है, Makar Sankranti 2023 के मौके पर जानिए कुमाऊंनी लोकपर्व का महत्‍व

Makar Sankranti 2023: हम स्थानीय पर्व होने के साथ ही स्थानीय लोक उत्सव भी कह सकते हैं क्योंकि इस दिन यहां के हर घर में एक विशेष प्रकार का व्यंजन जिसे घुघुत कहते हैं बनाया जाता है। इस त्‍योहार की अपनी अलग पहचान है। इसे ही उत्तराखंड में “उत्तरायणी” के नाम से भी जाना जाता है।

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Makar Sankranti 2023 ghughutiya parv
Makar Sankranti 2023 ghughutiya parv

Makar Sankranti 2023: उत्‍तरायणी कहें या घुघुतिया उत्‍तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्रांति को ही घुघुतिया या उत्‍तरायणी कहा जाता है।इस पर्व का यहां बड़ा महत्‍व है। हरेला पर्व के बाद कुमाऊं में मकर सक्रांति पर “घुघुतिया” लोकपर्व बेहद खास है।इसे हम स्थानीय पर्व होने के साथ ही स्थानीय लोक उत्सव भी कह सकते हैं क्योंकि इस दिन यहां के हर घर में एक विशेष प्रकार का व्यंजन जिसे घुघुत कहते हैं बनाया जाता है।

इस त्‍योहार की अपनी अलग पहचान है। इसे ही उत्तराखंड में “उत्तरायणी” के नाम से भी जाना जाता है।वहीं गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तरप्रदेश की तरह “खिचड़ी सक्रांति” के नाम से जाना जाता है।
मालूम हो कि हमारे कई ऐसे पर्व होते हैं जिसमें पशु-पक्षियों की भूमिका होती है। उन्‍हीं में से एक घुघुतिया भी है। इस दिन कौओं को विशेष व्यंजन खिलाए जाते हैं। यह लोकपर्व विशेषकर बच्चों और कौओं के लिए है।

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Makar Sankranti 2023.

Makar Sankranti 2023: कौओं को क्‍या कहकर बुलाते हैं बच्‍चे?

Makar Sankranti 2023: घुघुतिया के अगले दिन घर के सभी बच्चे सुबह- सुबह उठकर कौओं को बुलाते हैं। इस दिन कई तरह के पकवान बनाए और खिलाए भी जाते हैं।
कोओं को प्रसाद देते हुए एक कविता कहते हैं। जो इस प्रकार है।
“काले कौआ, काले घुघुती बड़ा खाले ,
लै कौआ बड़ा , आपु सबुनी के दिए सुनक ठुल ठुल घड़ा ,
रखिये सबुने कै निरोग , सुख समृधि दिए रोज रोज।”
इस कुमाऊंनी कविता का अर्थ है कि काले कौआ आकर घुघुती के लिए बनाया गया पकवान खाले, बड़ा यानी उड़द की दाल से बना पकवान खाले, ले कौव्वे खाने को बड़ा ले और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे, सभी लोगों को स्वस्थ रख और समृधि भी दे।

Makar Sankranti 2023: जानिए घुघुतिया पर्व की दिलचस्‍प कहानी

घुघुतिया मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोककथा है।पुरानी बात है उन दिनों कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे।कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी।ऐसे में राजा का मंत्री सोचता संतान ना होने के कारण उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं है।राजा के मरने के बाद राज्य उसे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर के दर्शन करने गए।

संतान प्राप्ति के लिए मनोकामना की, कुछ समय बाद राजा कल्याण चंद के घर पुत्र पैदा हुआ। जिसका नाम “निर्भय चंद” रखा। राजा की पत्नी अपने पुत्र को प्यार से “घुघुती” के नाम से पुकारती थी।अपने पुत्र के गले में “मोती की माला” बांधकर रखती थी। मोती की माला से निर्भय का विशेष लगाव हो गया था इसलिए उनका पुत्र जब कभी भी किसी वस्तु की हठ करता तो रानी अपने पुत्र निर्भय को यह कहती थी कि “हठ ना कर नहीं तो तेरी माला कौओं को दे दूंगी”।
उसे डराने के लिए रानी “काले कौआ काले घुघुती माला खाले” बोलकर डराती थी। ऐसा करने से कौऐ आ जाते थे और रानी कौओं को खाने के लिए कुछ दे देती। धीरे-धीरे निर्भय और कौओं के बीच दोस्ती हो गई।
Makar Sankranti 2023: दूसरी तरफ मंत्री घुघुती यानी निर्भय को मारकर राजपाट हड़पने की साजिश रचने लगा।एक दिन मंत्री ने अपने साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। घुघुती जब खेल रहा था तो मंत्री उसे चुपचाप उठा कर ले गया।जब मंत्री घुघुती को जंगल की तरफ ले जा रहा था, तो एक कौए ने मंत्री और घुघुती को देख लिया। कौवे जोर- जोर से कांव-कांव करने लगा।

शोर सुनकर घुघुती रोने लगा और अपनी मोती की माला को निकाल हवा में लहराई।कौवे ने वह माला घुघुती से छीन ली। कौवे की आवाज सुनकर उसके साथी कौवे भी इक्कठा हो गए एवम् मंत्री और उसके साथियों पर नुकली चोंचो से हमला कर दिया।घायल मंत्री और उसके साथी घुघुती को छोड़कर जंगल से भाग निकले।

Makar Sankranti 2023: दूसरी तरफ घुघुती के अचानक राजमहल से लापता होने पर सभी परेशान हो उठे।तभी एक कौवे ने घुघुती की मोती की माला रानी के सामने फेंक दी।यह देख कर सभी को संदेह हुआ कि कौवे को घुघुती) के बारे में जानकारी है।सभी कौवे के पीछे जंगल में जा पहुंचे और उन्हें पेड़ के नीचे बालक घुघुती दिखाई दिया।उसके बाद रानी ने अपने पुत्र को गले लगाया और राज महल ले गई।

जब राजा को यह पता चला कि उसके पुत्र को मारने के लिए मंत्री ने षड्यंत्र रचा तो राजा ने मंत्री और उसके साथ मिले लोगों को तत्‍काल मृत्युदंड दे दिया।
उधर घुघुती के मिल जाने पर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुती से कहा कि अपने दोस्त कौओं को भी बुलाकर खिला दे।

यह कथा धीरे- धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई। समय बदलता गया और पर्व ने बच्चों के त्यौहार का रूप ले लिया।इस दिन मीठे आटे से गोल और घुमावदार आकृति जिसे “घुघुत” कहते हैं बनाए जाते हैं। उसकी माला बनाकर बच्चों द्वारा कौवों को खिलाई जाती है।

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