Janue: हमारी सनातन संस्कृति का प्रतीक और हमारी पहचान यानी जनेऊ, हमारा गर्व और हमारी संस्कृति को दिखाता है। बदलते मशीनी दौर में बेशक अब इसका निर्माण हाथों की जगह मशीनों ने ले लिया है।बावजूद इसके आज भी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में इसे हाथों से ही तैयार किया जाता है। ये काम बेहद समय और मेहनत से किया जाने वाला होता है। पहाड़ के गांव-देहात के लोग जो पुश्तैननी रूप से इस काम को करते आए हैं।
एक विशेष शारीरिक मुद्रा में इसे बनाते हैं। रक्षाबंधन से करीब 2 माह पूर्व ही पुरोहित अपने यजमानों के लिए जनेऊ बनाने का काम शुरू कर देते हैं। उसे कातने, लपेटने, ग्रंथी डालने और रंगने का कार्य भी कई चरणों में पूरा होता है।

Janue: आइये बताते हैं कैसे होता है इसका निर्माण?

इसके लिए शुद्ध जगह पर उगी कपास को 3 दिन धूप में सुखाकर रूई से धागा भी खुद ही कातना होता है। लेकिन आजकल बाजार से लोग बारीक मिले धागे का इस्तेमाल करते हैं। इस धागे को जनेऊ की माप में तीन सूत्रों के साथ हथेली खोलकर चार अंगुलियों पर 96 बार लपेटा जाता है। 96 की संख्या में 32 विद्याओं जिसमें 4 वेद, 4 उपवेद, 6 अंग, 6 दर्शन, 3 सूत्र ग्रंथ और 9 अरण्यंक आते हैं, तथा 64 कलाओं का प्रतिनिधित्वऔ माना जाता है।

Janue: इसे बनाने के दौरान शुद्धि और ब्रहमचर्य का पालन किया जाता है। इसकी ग्रंथि डालने तक मन ही मन गायत्री मंत्र का उच्चाररण किया जाता है। इसके बाद एक तकली की सहायता से कातकर सूत में बट दिया जाता है। इस प्रकार 3 सूत्र का जनेऊ तैयार होता है।
दरअसल इसे बनाते हुए 3 सूत्र का ही 1 जोड़ा बनाया जाता है। दोनों को जोड़कर कुल 6 सूत्र हो जाते हैं। इस त्रिसूत्र को कई बार मोड़कर छोटे आकार में लपेटा जाता है और हल्दी के रंग में इसे रंगाकर सुखाया जाता है।
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