Guru Nanak Jayanti 2022: श्री गुरु नानक देवजी के 553वें प्रकाश पर्व के मौके पर दिल्ली-एनसीआर में गुरुद्वारे जगमगा उठे हैं। गुरुपूरब से एक दिन पहले सोमवार को विशाल नगर कीर्तन सुबह 9:30 बजे सीसगंज गुरुद्वारे से निकला। गुरुद्वारे को बड़े ही सुंदर ढंग से सजाया गया है।मंगलवार को गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब में एक बड़े समागम का आयोजन किया जाएगा।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी के अनुसार रकाबगंज गुरुद्वारे के भाई लक्खी शाह वंजारा हॉल में दीवान सजाया जाएगा। जहां देश-विदेश से आए रागी जत्थे कीर्तन करेंगे।
पिछली कई सालों से कोरोना के चलते समागम बड़े लेवल पर नहीं हुए थे, लेकिन इस बार गुरु महाराज की कृपा के चलते गुरुद्वारा कमिटी दिल्ली के सभी ऐतिहासिक गुरुद्वारों में श्री गुरु नानक देवजी का प्रकाश पर्व मना रही है। गुरु नानक देव जी ने नाम जपो, किरत करो और वंड छको की बात कही है।

Guru Nanak Jayanti 2022: जानिए दिल्ली-एनसीआर के प्रसिद्ध गुरुद्वारों के बारे में
Guru Nanak Jayanti 2022: गुरुद्वारा बंगला साहिब – नई दिल्ली के कनॉट प्लेस स्थित गुरुद्वारा बंगला साहिब दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध सिक्ख गुरुद्वारों में से एक है। बाबा खड़क सिंह मार्ग पर बने गुरुद्वारे ने अपने गोल्डन डोम और ऊंचे झंडे के पोल, निशान साहिब की वजह से एक अलग पहचान बनाई थी।जैसा कि नाम से पता चलता है गुरुद्वारा बंगला साहिब असल में एक बंगला है, जोकि 17 वीं शताब्दी के भारतीय शासक, राजा जय सिंह का था और जयसिंह पुर पैलेस के नाम से जाना जाता था।
जानकारी के अनुसार 8वें सिख गुरु, गुरु हरकिशन वर्ष 1664 में दिल्ली प्रवास के दौरान यहां पर रुके थे।इस समय यहां के लोग चेचक और हैजा की बीमारी से पीड़ित थे। गुरु हरकिशन ने बीमारी से पीड़ित लोगों की सहायता उनका इलाज किया। उन्हें शुद्ध पानी पिलाकर की थी। जल्द ही उन्हें भी बीमारियों ने घेर लिया और अचानक 30 मार्च 1664 को उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना के बाद राजा जय सिंह ने एक छोटे पानी के टैंक का निर्माण जरुर करवाया था।यह गुरुद्वारा और यहां का पवित्र सरोवर सिखों के लिए एक श्रद्धा का स्थल है। हर साल गुरु हरकिशन की जयंती पर यहां विशेष मंडली का आयोजन किया जाता है।

पुरानी दिल्ली स्थित गुरुद्वारा सीसगंज साहिब– पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में स्थित, गुरुद्वारा सीसगंज साहिब दिल्ली के सबसे अधिक देखे जाने वाले गुरुद्वारों में से एक है। सन 1783 में बघेल सिंह (पंजाब छावनी में सैन्य जनरल) द्वारा निर्मित, यह 9वें सिख गुरु- गुरु तेगबहादुर जी का शहादत स्थल भी है। सिख गुरु ने खुद को इस्लाम में बदलने से इंकार करने से, 11 नवंबर 1675 को मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर मार दिया गया। जिस वजह से इस गुरुद्वारे का निर्माण बघेल सिंह ने गुरु तेगबहादुर जी की स्मृति में करवाया था।

Guru Nanak Jayanti 2022: गुरुद्वारा सिख शहीद बाबा बंदा सिंह बहादुर जी– कुतुब मीनार के पास महरौली में स्थित, यह गुरुद्वारा सिख शहीद बाबा बंदा सिंह बहादुर जी को चिह्नित करता है। 28 अप्रैल 1719 को मुगलों ने उनके बेटे और 40 अन्य सिखों के साथ उन्हें एक मौत के घाट उतार दिया था। उनकी निडर वीरता के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाता है। दिल्ली के इस प्रतिष्ठित गुरुद्वारे में हर साल वैसाखी पर मेला लगता है।
गुरुद्वारा माता सुंदरी– गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नी के नाम पर, गुरुद्वारा माता सुंदरी वह स्थान है।जहां माता सुंदरी जी ने 1747 में अंतिम सांस ली थी। ये गुरुद्वारा माता सुंदरी कॉलेज के पास स्थित है।यह स्थान उनकी याद में लोगों के बीच जाना माना तीर्थस्थल बन चुका है। माता सुंदरी गुरु गोबिंद सिंह जी के दक्कन के लिए रवाना होने के बाद यहां ठहरी थीं।
गुरु जी के निधन के बाद, माता सुंदरी ने 40 वर्षों तक सिखों का नेतृत्व किया। सिखों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता था, मार्गदर्शन के लिए वे हमेशा माता सुंदरी को ही अपना गुरु माना करते थे। माता सुंदरी के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार गुरुद्वारा बाला साहिब जी में किया गया था। ये गुरुद्वारा माता सुंदरी कॉलेज के पास स्थित है।
गुरुद्वारा बाला साहिब – गुरुद्वारा बाला साहिब दिल्ली में यमुना नदी के तट पर स्थित है। यह गुरुद्वारा 8वें गुरु श्री हरकिशन और गुरु गोबिंद सिंह की दो पत्नियों – माता सुंदरी और माता साहिब कौर से संबंधित है। बाला साहिब को उनके पिता गुरु हर राय जी के उत्तराधिकारी के रूप में 5 साल की उम्र में गुरु बनने का सम्मान मिला था। वह अपने हीलिंग टच यानी स्पर्श की मदद से इलाज के लिए जाने जाते हैं। जिन्होंने उस समय के दौरान दिल्ली में हैजा और चेचक के बहुत से रोगियों की सहायता की थी।
गुरुद्वारा मोती बाग साहिब– वर्ष 1707 में जब गुरु गोबिंद सिंह जी पहली बार दिल्ली आए, तो गुरुद्वारा मोती बाग साहिब वह जगह थी जहां वे और उनकी सेना ठहरी थी। ऐसा कहा जाता है कि यहीं से गुरु गोबिंद सिंह जी ने लाल किले पर अपने सिंहासन पर बैठे मुगल सम्राट औरंगजेब के पुत्र राजकुमार मुअज्जम (बाद में बहादुर शाह) की दिशा में दो तीर चलाए थे। दिल्ली का यह पवित्र गुरुद्वारा शुद्ध सफेद संगमरमर से बना हुआ है। यहां हर समय लंगर परोसा जाता है।
गुरुद्वारा श्री रकाबगंज– गुरुद्वारा श्री रकाबगंज वह स्थान है जहां गुरु तेग बहादुर सिंह जी का अंतिम संस्कार किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि गुरु तेग बहादुर की हत्या करने के बाद औरंगजेब ने उनका शव देने से इंकार कर दिया था।
तब गुरु तेग बहादुर के चेले लखा शाह वंजारा ने अंधेरे में उनके शव को लेकर चले गए और उनका अंतिम संस्कार इसी स्थान पर किया गया था। आज भी यहां सिख धर्म के लोग और गुरु तेग बहादुर जी के अनुयाई उन्हें श्रद्धांजलि देने आते हैं।
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