Garba: गरबा एक पुरातन शब्द है,जिसका अर्थ होता है गर्भ दीप। गर्भ दीप को स्त्री के गर्भ की सृजन शक्ति का प्रतीक माना गया है।इसी शक्ति की मां दुर्गा के स्वरूप में पूजा की जाता है।नवरात्र के 9 दिनों में मां भगवती को प्रसन्न करने के उपायों में से एक इस नृत्य को माना जाता है।शास्त्रों में नृत्य को साधना का एक मार्ग बताया गया है।गरबा नृत्य के माध्यम से मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए देशभर में इसका आयोजन किया जाता है। पूरे नौ दिन ऐसा ही वातावरण बना रहता है।गरबा नृत्य में मुद्राओं का बहुत खास महत्व होता है।
मसलन ताली, चुटकी, खंजरी, डंडा या डांडिया और मंजीरा आदि का इस्तेमाल ताल या सुर देने के लिए किया जाता है। महिलाएं समूह में मिलकर नृत्य करती हैं। इस समयावधि में देवी के गीत गाए जाते हैं।गरबा का चलन आजकल इतना बढ़ गया है कि जो लोग हिन्दू धर्म से संबंध भी नहीं रखते या जो लोग नवरात्र का अर्थ भी नहीं जानते वे भी गरबा झूम-झूमकर करते हैं।

Garba: गरबा शुरू करने से पूर्व नियम

गरबा शुरू करने से पूर्व मिट्टी के कई छिद्रों वाले घड़े के अंदर एक दीप प्रज्ज्वलित कर मां शक्ति का आह्वान किया जाता है।नवरात्र की पहली रात गरबा की स्थापना की जाती है। इसके बाद महिलाएं इसके चारों ओर ताली बजाते हुए फेरे लगाती हैं। फिर इसी ‘गरबा’ के चारों ओर नृत्य कर महिलाएं मां दुर्गा को प्रसन्न करती हैं।गरबा नृत्य के दौरान महिलाएं 3 तालियों का प्रयोग करती हैं।
दरअसल ये 3 तालियां इस पूरे ब्रह्मांड के त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित होती हैं। गरबा नृत्य में ये तीन तालियां बजाकर इन तीनों देवताओं का आह्वान किया जाता है।इन 3 तालियों की ध्वनि से जो तेज और तरंगें उत्पन्न होती हैं, उससे शक्ति स्वरूपा मां अंबा जागृत होती हैं। देवी अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
Garba: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुका है गरबा
गरबा और नवरात्र का कनेक्शन आज से कई वर्ष पुराना माना जाता है।पहले इसे केवल गुजरात और राजस्थान जैसे पारंपरिक स्थानों पर ही खेला जाता था धीरे-धीरे इसे पूरे भारत समेत विश्व के कई देशों ने स्वीकार कर लिया। गुजराती समाज का मानना है कि यह नृत्य मां अंबा को बहुत प्रिय है, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए गरबा का आयोजन किया जाता है। भक्तिरस से परिपूर्ण गरबा भी मां अंबा की भक्ति का तालियों और सुरों से लयबद्ध एक माध्यम है।
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