महाराष्ट्र (Maharashtra) में महज दो दिन बाद घर घर में “गणपती बप्पा मोरया” का नारा गूंजेगा। 10 सितंबर से गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) आरंभ हो रही है। गणेश चतुर्थी का नाम जब भी लिया जाता है तो महाराष्ट्र की तस्वीर सामने आती है क्योंकि इसकी शुरूआत महाराष्ट्र से हुई थी। पर अब देश के हर राज्य में इस त्योहार को बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी सबसे प्यारी होती है।
आने वाले 10 दिनों तक पूरे महाराष्ट्र में रौनक रहने वाली है। बप्पा के आगमन की खुशी में भक्त मस्त रहते हैं। राज्य में जहां नजरें घुमाओं वहां पर रंग बिरंगी गणेश की मूर्तियां नजर आती हैं। पर हम इस मुद्दे पर कम ही बात करते हैं कि इतनी सुंदर मूर्तियां आती कहां से हैं।
सुनहरी बात तो यह है कि, गणेश की मूर्तियां महाराष्ट्र से देशभर में सप्लाई तो होती हैं साथ ही विदेशों में भी इनकी मांग अधिक है।
अब बात उस खजाने की करते हैं जहां से यह मूर्तियां आती हैं। मुंबई – पुणे के बीच स्थित पेण गांव को भारत का सबसे बड़ा कला केंद्र कहा जाता है। यहां पर राजा महाराजाओं के दौर से ही मूर्तियां बनाई जाती हैं।
इस गांव के हर गली घर में मूर्तियां बनाई जाती हैं। पेण में छह इंच की प्यारी सी मूर्ति से लेकर 12 फीट की ऊंची प्रतिमा बनाई जाती है।
पेण में कई परिवार ऐसे हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी मूर्तियां बनाने का काम करते आएं हैं। गणेश उत्सव पर कलाकारों के ऊपर भार अधिक बढ़ जाता है।
विश्वास करना मुश्किल होता है लेकिन पेण के गणपति इतने मशहूर हैं कि यहाँ गणेशोत्सव के अगले दिन से ही अगले साल की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
पेण में मूर्तियों का कारखाना सुबह आठ बजे खुल जाता है और देर रात तक लोग गणेश की प्रतिमा को आकार देते रहते हैं। यहां से मूर्तियां, इंग्लैंड, अमेरिका और मॉरीशस तक जाती हैं।
150 से ज्यादा कारखानों वाले इस गाँव में सालाना 25 से 30 हजार मूर्तियां बनती हैं। साल भर का लगभग 30 करोड़ रुपए का धंधा है। इस काम को करने के लिए कई लोगों ने बैंक की नौकरी तक को त्याग दिया है।
अब जहां की प्रतिमा इतनी मशहूर हो तो उसे मूर्तियों का खजाना कहना गलत नहीं होगा।
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