By : Rajeev Sharma
Edited By: Umesh Chandra
MAHA KUMBH 2025: प्रयागराज में अष्टनायकों की महिमा के बारे में जानने से पहले, यह समझना आवश्यक है कि यह भूमि न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी कितनी समृद्ध है। यहाँ पर स्थित त्रिवेणी संगम से लेकर अन्य महत्वपूर्ण स्थानों तक, अष्टनायकों का पूजन और दर्शन एक पवित्र यात्रा का हिस्सा है। आज हम आपको बताएंगे प्रयागराज के अष्टनायकों के बारे में, जिनकी महिमा ने इस पवित्र स्थान को एक विशिष्ट स्थान दिलाया है। प्रयागराज में प्राचीनकाल से अष्टनायक विराजमान हैं। कुंभ मेले के दौरान संगम स्नान के साथ इन अष्टनायकों का दर्शन और पूजन अनिवार्य माना गया है। यह सभी तीर्थ स्थल अत्यंत पवित्र और पौराणिक महत्व से समृद्ध हैं। प्रयाग के अष्ट नायकों का विवरण इस प्रकार है-
“त्रिवेणी माधवं सोमं भारद्वाजं च वासुकीम्। वन्दे अक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकम्॥”
… तो हमारे साथ कीजिए तीर्थ राज प्रयाग के अष्ट नायकों की मानसिक यात्रा-
1. त्रिवेणी संगम सिंहासन (प्रथम नायक)
त्रिवेणी संगम, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियां मिलती हैं, प्रयागराज का मुख्य आकर्षण है। संगम में स्नान करने से पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है। वेद पुराण महाकाव्य और अन्य प्राचीन ग्रंथों में इस पवित्र तीर्थ की महिमा का उल्लेख है। रामायण, महाभारत और अन्य पुराणों में त्रिवेणी संगम की महिमा का बखान किया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने त्रिवेणी संगम क्षेत्र को तीर्थराज प्रयाग का राजसी भव्य सिंहासन कहा है।
स्नानं त्रिवेण्यां सततं प्रयत्नं, पातकं हरति पापिनाम्। संगम क्षेत्रं परमं पवित्रं, देवानां पूज्यं प्रयागराजम्॥
स्नान के पश्चात त्रिवेणी संगम पर दीपदान करें। भगवान विष्णु, गंगा माता, यमुना माता और सरस्वती देवी का ध्यान करें। त्रिवेणी की महिमा का कीर्तन श्रेयस्कर है।
प्रथम नायक: त्रिवेणी संगम सिंहासन
त्रिवेणी संगम वह पवित्र स्थल है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का मिलन होता है। यह स्थान वेदों और पुराणों में तीर्थराज का राजसी सिंहासन माना गया है। रामायण और महाभारत में इसका विशेष उल्लेख मिलता है। गोस्वामी तुलसीदास ने इस क्षेत्र को तीर्थराज प्रयाग का मुख्य केंद्र कहा है। त्रिवेणी संगम का स्नान पापों का क्षालन और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है।
त्रिवेणी संगम को लेकर एक प्राचीन कथा यह है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा ने इस स्थान पर यज्ञ किया था। इस यज्ञ के प्रभाव से यह स्थान पवित्र और शुभ माना गया। कहा जाता है कि यज्ञ समाप्ति के बाद त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—ने संगम जल को अमृत के समान पवित्र किया। संगम में स्नान करने वाले को सभी पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
प्रकृति और आध्यात्मिकता का मेल: गंगा, यमुना और सरस्वती का यह संगम स्थल प्रकृति और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम है। गंगा की धारा पवित्रता की प्रतीक है, यमुना प्रेम और भक्ति का, और सरस्वती ज्ञान की देवी मानी जाती हैं।
त्रिवेणी संगम को तीर्थराज का सिंहासन माना गया है। ऐसा माना जाता है कि देवता भी यहां स्नान करने आते हैं।
महाभारत और रामायण में उल्लेख: महाभारत में इस स्थान पर पांडवों के आगमन का उल्लेख है। रामायण में भी भगवान राम के इस स्थान पर आने और तप करने का वर्णन मिलता है।
कुंभ मेले का मुख्य आयोजन इसी स्थान पर होता है। यहां स्नान करना पुण्य फलदायी माना जाता है।
त्रिवेणी संगमे पुण्यं स्नानं पापविनाशनम्।तीर्थराजस्य राजेन्द्रं नमामि त्रिवेणीतम्॥
सूर्योदय के समय स्नान करना विशेष फलदायी होता है। संगम में स्नान करने से पहले गंगा माता का स्मरण करना चाहिए। स्नान के बाद पवित्र जल से देवी-देवताओं का अभिषेक करना चाहिए।
विशेष मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” का जाप करें।
कहा जाता है कि सृष्टि के आरंभ में जब ब्रह्मा ने इस स्थान पर यज्ञ किया, तब पृथ्वी को पवित्रता का आशीर्वाद मिला। यज्ञ की समाप्ति के बाद ब्रह्मा ने तीर्थराज प्रयाग को अमृत से सिंचित किया। यह भी कहा जाता है कि गंगा और यमुना ने यहां सरस्वती को संगम स्थल पर आमंत्रित किया। सरस्वती जो पहले हिमालय में प्रवाहित थीं, यहां आकर अदृश्य रूप से मिल गईं।
कहा गया है-
गंगा यमुना सरस्वती त्रिवेणी संगमे शुभे।पुण्यदा मोक्षदा देव्यः नमामि तीर्थराजकम्॥
त्रिवेणी संगम पर आने वाले श्रद्धालु यहां गहरी आध्यात्मिक शांति का अनुभव करते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां ध्यान करने से आत्मा को शुद्धि और उन्नति मिलती है।
एक किंवदंती है कि, त्रिवेणी संगम पर स्नान करते समय यदि कोई भक्त अपनी सभी इच्छाओं को त्यागकर सच्चे मन से प्रार्थना करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस स्थान पर ध्यान और साधना करने वाले ऋषि-मुनियों ने अनेक सिद्धियां प्राप्त की हैं।
इसलिए कहा गया है कि- स्नानेन त्रिपथागायाः सर्वपापं प्रणश्यति।मोक्षद्वारं प्रविशंति त्रिवेणी संगमे सदा॥
2. माधव (द्वितीय नायक)
द्वितीय नायक माधव प्रयागराज को विष्णु प्रजापति क्षेत्र और हरिहर क्षेत्र माना जाता है। भगवान शिव स्वयं इस क्षेत्र में निवास कर यहां वेणीमाधव की उपासना करते हैं तो दूसरी ओर प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना से पहले इस पवित्र क्षेत्र में दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। तीर्थराज प्रयाग में महाविष्णु के स्वरूप माधव का पूजन किया जाता है। पुराणों में कहा गया है कि प्रलयकाल में जब सारी सृष्टि जल में डूब जाती है, तब महाविष्णु माधव बाल मुकुन्द का रूप धारण कर अक्षयवट के पत्ते पर शयन करते हैं। तीर्थराज प्रयाग में माधव कई रूपों में विराजमान हैं। इन रूपों की उपासना के लिए यहां मंदिर हैं। प्रयाग महात्म्य में इनके नाम शंख माधव, चक्र माधव, यदा माधव, पद्म माधव, असि माधव अनंत माधव, बिन्दु माधव, मनोहर माधव गिनाए गए हैं। इनके अलावा संकटहर माधव की महिमा के बारे में बताया गया है।
माधवाय नमस्तुभ्यं शंखचक्रधराय च। शरणं ते प्रपन्नोऽस्मि पद्मनाभ नमोऽस्तु ते॥
पूजन विधि:
माधव मंदिर में पुष्प, तुलसीदल, और खीर का अर्पण करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
3. सोमेश्वर (तृतीय नायक)
सोमेश्वर महादेव का मंदिर यमुना पार अरैल गांव में स्थित है। यह स्थान शिवजी और चंद्रमा की पूजा का प्रमुख केंद्र है। माना जाता है कि चंद्रमा ने शिवलिंग की स्थापना की थी। यहां अमृत की वर्षा होती थी, और तीर्थयात्रियों को मानसिक और शारीरिक शुद्धि का अनुभव होता है।
सोमेश्वरं नमस्यामि यत्र चंद्रः स्वयं स्थिरः। अमृतस्य प्रवाहं च यत्र तीर्थं प्रवर्तते॥
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जप और बिल्वपत्र, अक्षत, और दूध अर्पित करना श्रेष्ठ माना गया है।
सोमेश्वर महादेव का मंदिर उत्तर भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है, जो यमुना नदी के
सोमेश्वर महादेव के मंदिर का पौराणिक महत्व अत्यधिक है।
यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं का मानना है कि इस स्थान पर अमृत की वर्षा होती थी, जिससे तीर्थयात्रियों को शारीरिक और मानसिक शुद्धि का अनुभव होता था। यह स्थल उन लोगों के लिए विशेष रूप से आकर्षक है जो मोक्ष की प्राप्ति के लिए और शांति की तलाश में आते हैं।
सोमेश्वर महादेव का मंदिर एक ऐसा स्थल है, जहाँ भगवान शिव और चंद्रमा के बीच की अद्भुत भक्ति और आस्था का मिलाजुला रूप दिखाई देता है। यह स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक और मानसिक शांति के लिए भी अत्यधिक पुण्यदायक माना जाता है।
4. भारद्वाज आश्रम (चतुर्थ नायक)
महर्षि भारद्वाज का आश्रम ज्ञान, विज्ञान और शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है। वाल्मीकि रामायण में इस आश्रम का उल्लेख किया गया है। श्रीराम और भरत ने यहां रुककर मुनि भारद्वाज से मार्गदर्शन लिया था। इस आश्रम में स्थापित शिवलिंग की पूजा आज भी होती है।
भारद्वाजं मुनिं वन्दे ज्ञानविज्ञानसंपदा। आश्रमं पुण्यमेवं च रामेण सम्पूजितम्॥
आश्रम में स्थित शिवलिंग का अभिषेक, वेदपाठ और गुरु मंत्र का जप श्रेष्ठकर बताए गए हैं।
प्रयाग नायक भारद्वाज के बारे में प्रयाग में स्थित भारद्वाज आश्रम का उल्लेख महाभारत और वाल्मीकि रामायण में किया गया है, जहां यह आश्रम एक पवित्र स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है और इसका धार्मिक तथा सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है। विशेष रूप से रामायण और महाभारत में इस आश्रम से जुड़ी घटनाएं बताई गई हैं। यहां महर्षि भारद्वाज का आश्रम था, जो ज्ञान, शिक्षा, और साधना का केंद्र था।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में प्रयाग स्थित महर्षि भारद्वाज के आश्रम का उल्लेख है। जब श्रीराम और उनके भाई भरत अपने वनवास के दौरान प्रयाग पहुंचे, तो उन्होंने महर्षि भारद्वाज से मार्गदर्शन लिया था। श्रीराम और भरत को देखकर महर्षि भारद्वाज ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें उनके धर्म, कर्तव्यों और जीवन के उद्देश्य के बारे में उपदेश दिया।
प्रयाग नायक भारद्वाज का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है, जहां इसे एक पवित्र स्थल के रूप में वर्णित किया गया है। विष्णु पुराण, पद्म पुराण, और स्कंद पुराण जैसे ग्रंथों में इस आश्रम को धार्मिक महत्व देने के साथ-साथ यहां की साधनाओं और पूजन विधियों का भी विवरण है। यह आश्रम ज्ञान की प्राप्ति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए उपयुक्त स्थान माना जाता था।
ऐसी मान्यता है कि खगोलशास्त्र, गणित, आयुर्वेद, और संस्कृत साहित्य में रुचि रखने वाले प्रयाग नायक भारद्वाज का ध्यान करते हैं तो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा शीघ्र पूरी होती है
5. नागवासुकि (पंचम नायक)
नागवासुकि मंदिर गंगा के तट पर स्थित है। वासुकि नाग, जो शेषनाग के भाई हैं, की पूजा इस मंदिर में होती है। यह स्थान भोगवती तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। नागवासुकि की पूजा करने से भय, रोग और कष्ट दूर होते हैं।
वासुकिं नागराजं च नमामि शरणं सदा। भोगवत्यां प्रवाहे च तीर्थं यत्र स्थिरं शिवम्॥
पूजन विधि:
नागवासुकि मंदिर में दुग्धाभिषेक, हल्दी, चावल और नारियल अर्पित किया जाता है यहां “ॐ नमो नागराजाय” मंत्र जाप करने से मनोरथ सिद्ध होते हैं
नागवासुकि मंदिर प्रयाग के एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, जो गंगा के पवित्र तट पर स्थित है। यह मंदिर विशेष रूप से वासुकि नाग की पूजा के लिए प्रसिद्ध है, जो शेषनाग के भाई माने जाते हैं। यह स्थान भोगवती तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। नागवासुकि मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है और यह अपने भक्तों को भय, रोग और कष्ट से मुक्ति दिलाने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है।
प्रयाग नायक नाग वासुकि भारतीय पुराणों में एक प्रमुख नागराज के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे शेषनाग के भाई माने जाते हैं और महाभारत, रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में उनका उल्लेख मिलता है। वासुकि नाग का नाम विशेष रूप से उस समय प्रसिद्ध हुआ जब उन्होंने देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन के दौरान अपनी मणियों से रस्सी का काम किया था। उस घटना के दौरान, वासुकि नाग ने मंथन की रस्सी के रूप में अपनी पूरी शरीर को लपेट लिया और समुद्र मंथन में योगदान दिया।
नागवासुकि मंदिर का पौराणिक संदर्भ बहुत ही प्राचीन है। यह मंदिर प्रयाग के पवित्र तीर्थ स्थल में स्थित है, जिसे भोगवती तीर्थ भी कहा जाता है। यह स्थान विशेष रूप से गंगा के किनारे होने के कारण धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। पुराणों में वर्णन है कि यहां स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, और विशेष रूप से वासुकि नाग की पूजा से जीवन के कष्ट और रोग दूर होते हैं।
प्रयाग नायक नाग वासुकि के दर्शन मनन से जीवन में सर्पदोष या नाग दोष या जन्मकुंडली में राहु और केतु के दुष्प्रभाव समाप्त हो जाते हैं
प्रयाग यात्रा और नाग वासुकि के दर्शन के दौरान “ॐ नमो नागराजाय” मंत्र का जाप करना चाहिए, जो वासुकि नाग को समर्पित एक शक्तिशाली मंत्र है। यह मंत्र श्रद्धा और विश्वास से जपने से व्यक्ति के जीवन में आ रही समस्याएं दूर होती हैं। इसके अलावा, कुछ विशेष मंत्रों का भी जाप किया जाता है जो वासुकि नाग के आशीर्वाद को प्राप्त करने में सहायक होते हैं। पूजा का प्रमुख उद्देश्य जीवन में समृद्धि और शांति लाना है।
6. अक्षयवट (षष्ठ नायक)
प्रयाग नायक अक्षयवट संगम के पास स्थित एक प्राचीन बरगद का वृक्ष है, जिसे प्रलयकाल में भी नष्ट न होने वाला माना गया है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने यहां यज्ञ किया था। अक्षयवट के दर्शन और पूजन से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
अक्षयवृक्षं नमस्यामि यत्र पुण्यं प्रवर्तते। प्रलयं नाशयत्येव अक्षयः सततं वटः॥
किसी भी दिवस प्रयाग यात्रा करें तो अक्षयवट के नीचे दीप जलाएं। वृक्ष की परिक्रमा करें और यज्ञ करें।
तीर्थ नायक प्रयाग के बारे में कहा जाता है कि ये सनातन हैं। प्रलय में भी इनका क्षय नहीं होता है। यहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) ने यज्ञ किया था और यह स्थान अक्षय पुण्य की प्राप्ति के लिए प्रसिद्ध है। अक्षय का अर्थ है नष्ट न होने वाला, और वट का अर्थ है वृक्ष। इसलिए, अक्षयवट का शाब्दिक अर्थ है वह वृक्ष जो कभी नष्ट नहीं होता। यह वृक्ष प्रयाग के संगम के पास स्थित है, जहां गंगा, यमुन और सरस्वती नदियों का संगम होता है। अक्षयवट का महत्व धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक है, और इसे भगवान के आशीर्वाद और पुण्य की प्राप्ति का एक मुख्य स्रोत माना जाता है।
धार्मिक शास्त्रों में प्रयाग नायक अक्षयवट का उल्लेख कई स्थानों पर मिलता है। विशेष रूप से यह स्थल पुण्य क्षेत्र के रूप में प्रतिष्ठित है, जहां पर लोगों के द्वारा किए गए पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह वृक्ष भगवान के द्वारा आशीर्वाद देने का प्रतीक माना जाता है और इसे प्रलयकाल में भी नष्ट न होने वाला कहा जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह स्थान और वृक्ष आंतरिक रूप से दिव्य और शाश्वत हैं।
अक्षयवट का महत्व पौराणिक संदर्भों में भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) ने यहां एक साथ यज्ञ किया था। इस यज्ञ का उद्देश्य संसार के कल्याण के लिए था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अक्षयवट का स्थान अत्यंत पवित्र था और यहीं पर प्रलयकाल में भी यह वृक्ष कभी नष्ट नहीं होगा। यह स्थान देवताओं का प्रिय स्थल भी माना जाता है, क्योंकि यहीं पर उन्होंने सृष्टि के आरंभ, पालन, और संहार की प्रक्रिया का समन्वय किया।
शास्त्रों में प्रयाग नायक अक्षयवट का विशिष्ट उल्लेख हैः विष्णु पुराण में अक्षयवट का उल्लेख पवित्र और शक्तिशाली स्थान के रूप में किया गया है। यहां पर बताया गया है कि ब्रह्मा, विष्णु, और महेश ने इस स्थल पर यज्ञ किया था और इस स्थान को पुण्य की प्राप्ति के लिए आदर्श माना गया है। स्कंद पुराण में भी अक्षयवट का विशेष महत्व है, जहां इसे अक्षय पुण्य का स्त्रोत माना गया है। इसके दर्शन और पूजन से व्यक्ति को असीम पुण्य प्राप्त होता है और उसकी आत्मा के समस्त पापों का नाश होता है। रामायण में भी अक्षयवट के महत्व का वर्णन किया गया है, जहां इस स्थान को भगवान राम और उनके अनुयायी भी पवित्र मानते थे। यहां पर धर्म, आस्था और पुण्य की प्राप्ति का विशेष स्थान है। महाभारत में भी अक्षयवट के महत्व का उल्लेख मिलता है, जहां इसे धर्म की स्थिरता और आशीर्वाद का प्रतीक माना गया है।
अक्षयवट के दर्शन और पूजन से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, और यह व्यक्ति के जीवन में धर्म, समृद्धि और शांति का कारण बनता है। अक्षयवट के दर्शन से व्यक्ति के जीवन से सभी पापों का नाश होता है और वह अक्षय पुण्य प्राप्त करता है, जो उसे संसार के किसी भी संकट से मुक्त कर देता है।
प्रयाग के नायक अक्षयवट के दर्शन और पूजन के दौरान कुछ विशेष विधियां और मंत्रों का जाप किया जाता है। इस पूजा का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि, और भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करना होता है। पूजा विधि निम्नलिखित है प्रयाग के नायक अक्षयवट दर्शन के दौरान, भक्तों को ध्यान और साधना करनी चाहिए, ताकि उनके मन और आत्मा की शुद्धि हो सके। भगवान शिव, विष्णु, और ब्रह्मा के नाम का जाप करके, अपने सभी पापों से मुक्ति प्राप्त करते हैं। पूजा के दौरान, अक्षयवट के वृक्ष को दुग्धाभिषेक और पुष्पों से सजाया जाना। अक्षय वट आध्यात्मिक शाश्वतता और धर्म की निरंतरता का प्रतीक है।
7. शेष भगवान (सप्तम नायक)
तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। शेषनाग, जो भगवान विष्णु के शयन स्थल के रूप में प्रसिद्ध हैं, उनकी पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि शेषनाग के फन पर पृथ्वी टिकी हुई है, और इस मान्यता ने इस स्थान की महिमा को और भी बढ़ा दिया है। प्रयाग के संगम क्षेत्र में स्थित शेष भगवान का पूजन न केवल आध्यात्मिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है, बल्कि यह संतुलन और समृद्धि का भी प्रतीक माना जाता है। शेष भगवान के दर्शन से जीवन में स्थिरता और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
शेष भगवान का शास्त्रों में उल्लेख बहुत महत्वपूर्ण है। शेषनाग के बारे में कहा जाता है कि वे भगवान विष्णु के सहायक के रूप में कार्य करते हैं और भगवान के शयन (आश्रय) का मुख्य आधार होते हैं। शास्त्रों में यह बताया गया है कि शेषनाग के फन पर पृथ्वी स्थित है, और यह प्रतीक है कि इस धरती का संतुलन शेषनाग के संरक्षण में बना हुआ है।
यह मान्यता है कि तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान के पवित्र स्थान को और भी अधिक महत्व देती है। शेष भगवान का शास्त्रों में अत्यधिक महत्व है, और वे न केवल पृथ्वी के संतुलन के प्रतीक हैं, बल्कि उनका संबंध धर्म, योग, और संतुलन से भी है।
तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान का उल्लेख त्रेता युग में भी किया गया है। त्रेता युग में भगवान लक्ष्मण ने शेषनाग के रूप में अवतार लिया था। लक्ष्मण का शेषनाग के रूप में अवतार लेना उस समय की आस्था और विश्वासों को पुष्ट करता है। शेषनाग ने लक्ष्मण के शरीर को न केवल शुद्ध किया, बल्कि उन्हें दिव्य शक्तियां भी प्रदान कीं। इस प्रकार, तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान का त्रेता युग में आंतरिक महत्व बढ़ जाता है, और यह दर्शाता है कि शेष भगवान के प्रभाव से जीवन में शक्ति, स्थिरता और संतुलन आता है।
तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान का महत्व द्वापर युग में भी विशेष था। द्वापर युग में भगवान बलराम का शेषावतार था। बलराम, जो भगवान श्री कृष्ण के भाई थे, उन्हें शेषनाग के रूप में पूजने का महत्व बताया गया है। वे शेष भगवान के अवतार थे और उनके माध्यम से पृथ्वी पर संतुलन और स्थिरता बनी रहती थी।
द्वापर युग में बलराम ने शेष भगवान के रूप में प्रकट होकर न केवल अपनी दिव्य शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि समाज के लिए एक आदर्श स्थापित किया। शेष भगवान के रूप में बलराम का अवतार जीवन में सत्य, धर्म और संतुलन के महत्वपूर्ण सिद्धांतों का पालन करने का संदेश देता है।
तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे पृथ्वी के संतुलन के प्रतीक माने जाते हैं। शेषनाग के फन पर पृथ्वी का स्थिर रहना इस तथ्य का प्रतीक है कि शेष भगवान पृथ्वी को संतुलन और सुरक्षा प्रदान करते हैं। यह दृश्य प्रतीकात्मक रूप से जीवन के संतुलन को दर्शाता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान की कृपा और उनके आशीर्वाद से हर व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक शांति, स्थिरता और भौतिक संतुलन प्राप्त करता है।
तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान की पूजा विधि अत्यधिक सरल और प्रभावशाली मानी जाती प्रयाग या संगम स्नान के बाद तीर्थ नायक शेष भगवान के दर्शन-पूजन से तिजोरी हमेशा भरी रहती है। व्यपार-व्यसाय करने वालों, उद्योग धंदा चलाने वालों और शेयर मार्केट से जुड़े लोगों को प्रयाग नायक शेष भगवान का दर्शन-पूजन अवश्य करना चाहिए। तीर्थ नायक शेष भगवान को विशेष रूप से नारियल, पुष्प और फल अर्पित किए जाते हैं। ये भेंटें उनके आशीर्वाद और संतुलन को साकार करती हैं।
शेष भगवान का मंत्र जाप: पूजा के दौरान भक्त “ॐ शेषनागाय नमः” मंत्र का जाप करते हैं, जो शेष भगवान के आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक मुख्य साधन है। दीपदान और आहुति देना इस पूजा में आवश्यक होते हैं। यह प्रतीक है कि भक्त अपनी आस्थाओं और विश्वासों को शेष भगवान के प्रति अर्पित कर रहे हैं।
तीर्थराज प्रयाग के सप्तम नायक शेष भगवान की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार के लाभ होते हैं। शेष भगवान के आशीर्वाद से व्यक्ति की मानसिक शांति और संतुलन को बल मिलता है। उनकी कृपा से जीवन के संघर्षों में विजय प्राप्त होती है और जीवन में स्थिरता की भावना उत्पन्न होती है। इसके अलावा, शेष भगवान के आशीर्वाद से जीवन में वित्तीय स्थिरता, समृद्धि और स्वास्थ्य का भी वास होता है।
शास्त्रों में कहा गया है-
शेषाय नमो नित्यं भूमिधारणहेतवे। सर्वसृष्टिं स्थिरीकर्तुं प्रार्थयामि पुनः पुनः॥
8. तीर्थराज प्रयाग (अष्टमनायक)
प्रयागराज को तीर्थों का राजा कहा गया है। प्रयाग स्वंय तीर्थ नायक हैं। पुराणों में वर्णित है कि यह स्थान सप्तपुरियों का स्वामी है। प्रयागराज के दर्शन और पूजन से सभी तीर्थों के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
तीर्थराजं नमस्यामि सप्तपुर्याधिपं प्रभुम्। मुक्तिदं सर्वतीर्थेषु प्रयागं पुण्यमुत्तमम्॥
अर्थात् तीर्थराज प्रयाग के संगम पर स्नान करें। तीनों देवों का आह्वान करते हुए दीपदान करें। और “ॐ तीर्थराजाय नमः” मंत्र का जाप करें।
तीर्थराज प्रयाग के अष्टम नायक प्रयाग का उल्लेख भारतीय शास्त्रों में एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रयाग, जो कि गंगा, यमुन, और सरस्वती नदियों के संगम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, भारतीय संस्कृति, धर्म, और आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण केंद्र है। प्रयाग को तीर्थराज का सम्मान प्राप्त है, जिसका अर्थ है तीर्थों का राजा, और इसे अष्टम नायक के रूप में पूजा जाता है।
शास्त्रों में प्रयाग की महिमा को बखान किया गया है, और इसे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तीर्थस्थलों में एक माना गया है। यहां के पवित्र संगम में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में प्रयाग का वर्णन भगवान विष्णु, भगवान शिव और अन्य देवताओं के विशेष स्थलों के रूप में किया गया है। इसे पुनर्नवनीकरण, शुद्धि, और आत्मा की मोक्ष प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम स्थान माना जाता है।
प्रयाग स्वयं तीर्थ नायक हैं। जिसका वर्णन विष्णु पुराण, स्कंद पुराण, महाभारत, रामायण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से किया गया है। प्रत्येक शास्त्र में प्रयाग की धार्मिक और आध्यात्मिक महिमा को महत्व दिया गया है।
विष्णु पुराण में प्रयाग को धर्म, पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति का प्रमुख स्थल बताया गया है। यहां पर स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का नाश हो जाता है और वह स्वर्ग के अधिकारी बनता है।
“यत्र यत्र गंगायमुनासंयुतं त्रिवेणी संप्रवर्तते, तत्र स्नात्वा पुनरादित्यं प्राप्नोति परमं सुखम्।”
अर्थात, जहां-जहां गंगा और यमुनाजी का संगम होता है, वहां स्नान करने से मनुष्य को परम सुख की प्राप्ति होती है। यह श्लोक इस बात का प्रमाण है कि प्रयाग में स्नान करने से धर्म और पुण्य की प्राप्ति होती है।
स्कंद पुराण में प्रयाग को तीर्थराज के रूप में पूजा गया है। इसे सर्वश्रेष्ठ तीर्थ स्थल माना गया है, और यहां पर विशेष रूप से महाशिवरात्रि और कुंभ मेले के अवसर पर भक्तों का जमावड़ा होता है। स्कंद पुराण में प्रयाग के महत्व को इस प्रकार से बताया गया है:
“तीर्थराज प्रयागं नित्यम् पावनं पुण्यदायकं। यत्र स्नानं महात्मानं मोक्षं प्राप्नोति मानवः॥”
इस श्लोक का अर्थ है: तीर्थराज प्रयाग वह स्थान है जहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मनुष्य को पुण्य और शुद्धता मिलती है।
महाभारत के भी कुछ श्लोकों में प्रयाग का उल्लेख किया गया है, जहां इसे धर्म यज्ञ और पुण्य अर्जन का प्रमुख स्थान माना गया है। महाभारत में युधिष्ठिर और उनके भाइयों का प्रयाग में स्नान करने का उल्लेख है, जिससे उनकी आत्मा शुद्ध हुई और उन्हें यमराज से छुटकारा मिला। महाभारत में प्रयाग के महत्व का वर्णन करते हुए एक श्लोक आता है:
“प्रयागे पुण्यकर्माणि सर्वपापविनाशिनी। तत्र स्नानं महापुण्यं सर्वसिद्धिकरं स्मृतम्॥”
अर्थात, प्रयाग में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और यह स्नान व्यक्ति को सिद्धि और धर्म की प्राप्ति देता है।
प्रयाग के अष्टम नायक प्रयाग की पूजा के दौरान विशेष मंत्रों और श्लोकों का जाप किया जाता है, जो शास्त्रों में उल्लिखित हैं। सबसे सरल मंत्र है “ॐ प्रयाग तीर्थराजाय नमः” जिससे पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह मंत्र श्रद्धालुओं को धार्मिक शांति और संतुलन प्रदान करता है। इसके जाप से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और वह अपने पापों से मुक्त होता है।