उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सहयोगी दलों की नाराजगी की खबरें बढ़ रही हैं। हाल ही में यूपी सरकार में मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने संकेत दिए कि यदि छोटे दलों को गठबंधन से कोई फायदा नहीं मिलता तो गठबंधन को तोड़ने का विकल्प भी अपनाया जा सकता है। उनके इस बयान को राजनीतिक दबाव बनाने की रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।
संजय निषाद ने उठाया दबाव का मुद्दा
पत्रकारों से बातचीत में संजय निषाद ने कहा कि बीजेपी को सहयोगी दलों के लिए लाभ सुनिश्चित करना चाहिए, अन्यथा दोस्ताना संबंध बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने यह बात सिर्फ अपनी पार्टी तक सीमित नहीं रखी बल्कि राष्ट्रीय लोकदल और ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा को भी इसमें शामिल किया। उन्होंने याद दिलाया कि 2019 में सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद छोटे दलों की मदद से बीजेपी ने जीत हासिल की थी।
निषाद पार्टी की राजनीतिक ताकत
संजय निषाद अपनी नाराजगी सिर्फ बयानबाजी तक सीमित नहीं रखते। पश्चिमी यूपी से पूर्वांचल तक छोटे दलों का वोट बीजेपी की सफलता में निर्णायक भूमिका निभाता है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 6 सीटों पर जीत हासिल की। गठबंधन की वजह से बीजेपी को लगभग 70 सीटों पर फायदा हुआ, खासकर उन क्षेत्रों में जहां निषाद समाज की बड़ी हिस्सेदारी है।
छोटे सहयोगी दलों की नाराजगी बीजेपी के लिए चुनौती
संजय निषाद की नाराजगी का एक कारण यह भी है कि निषाद समाज को अनुसूचित जाति में शामिल करने का वादा अब तक पूरा नहीं हुआ। वहीं, अपना दल सोनेलाल भी कुर्मी समाज के समर्थन के चलते नाराजगी दिखा रहा है, जिसका असर प्रदेश की 30-35 सीटों पर पड़ सकता है। ऐसे में छोटे दलों का बगावती तेवर बीजेपी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।