ट्रान्सजेंडर समाज का वो हिस्सा हैं जिन्हें सरकार ने न केवल कानूनी मान्यता प्रदान की है बल्कि वो देश के विकास में अपना अहम योगदान भी दे रहे हैं । और इसी की पहल की है महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के तरंगफल गांव ने, जहाँ ज्ञानदेव कांबले पहली ट्रान्सजेडर सरपंच बनी हैं। ज्ञानदेव कांबले न केवल प्रधान का चुनाव जीती हैं बल्कि अपने कामों से इन्होनें गांव वालों के दिलों को भी जीता है और आज समाज के लिए एक प्रेरणा बनकर आई हैं ।
देश में किन्नरों का काम शुभ मौकों पर लोगों के घरों पर जाकर बधाई देने या ट्रेनों, बसों, दुकानों में लोगों से पैसे मांगकर गुजारा करने तक ही माना जाता रहा है। कानून बन जाने के बाद भी हालात ये हैं कि आज भी हमारे समाज मे तृतीय पंथी को हेय नज़र से देखा जाता है, उन्हें न तो समाज अपनाता है औऱ ना ही उनके पास कोई दूसरा अवसर है। आप ने देखा होगा कि ट्रैफिक सिग्नल पर एक-एक सिक्के जमा करते हुए भीख मांग कर इस समाज को लोग अपना उदर निर्बाह करने को मजबूर हैं। अब हम आप को एक ऐसे गांव की कहानी बता रहे हैं जिसे जानने के बाद आप को लगेगा कि वाकई में ये भी हमारी आप की तरह हमारी ज़िन्दगी और समाज का एक अहम हिस्सा हैं । महाराष्ट्र के एक गांव तरंगफल में ट्रांसजेंडर गाँव के विकास में पूरा योगदान दे रहे हैं और बड़े मेहनत और ईमानदारी से अपने काम को अंजाम दे रहे हैं।
महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के मालसिरस तहसील के तरंगफल गांव में 2017 में राज्य की पहली किन्नर सरपंच चुनी गई थीं।तरंगफल गाँव जहाँ ग्राम पंचायत के चुनाव के चार हजार पंचायतों को लिए वोटिंग हुई थी। ज्ञानदेव कांबले (ट्रांसजेंडर)167 वोटों से चुनाव जीत कर तरंगफल गाँव की सरपंच पद पर चुनी गईं। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले तंरगफल गांव में ज्ञानदेव ने सरपंच पद के लिए बीजेपी की ओर से फॉर्म भरा था। इस पद के लिए विपक्ष के 6 उम्मीदवार और ज्ञानदेव के बीच कांटे की टक्कर थी लेकिन गांव वालों ने ज्ञानदेव को ही अपना सरपंच चुना।
ज्ञानदेव कांबले की कहानी देखिए इस वीडियो में
ज्ञानदेव काम्बले बताते हैं कि ज्यादातर लोग किन्नरों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते हैं। हमें अलग नजर से देखा जाता है, हम भी इंसान है यह बात लोगों को समझ में नहीं आती लेकिन हम भी कम नहीं है यह दिखाने के लिए मैंने सरपंच पद का चुनाव लडऩे का फैसला किया। जिसका मेरे परिजन ने और गांव वालों ने स्वागत किया। एक किन्नर का सरपंच बनना मुश्किल था लेकिन गांव वालों ने मुझपर भरोसा किया और गांव की सेवा करने का मुझे मौका दिया गया। ज्ञानदेव कांबले का कहना है की वह विकास से गांव की तस्वीर बदलेंगीं और मुख्यमंत्री से मिलकर गांव की उन्नति के लिए मदद की मांग करेंगीं ।
अपने 3 साल के कार्यकाल में ज्ञानदेव ने प्रधानमंत्री स्वछ भारत अभियान का हिस्सा बन गाँव के सभी घरों में शौचालय बनवाया। राज्य सरकार व केंद्र सरकार द्वारा दिये गए योजना का लाभ गाँव वालों को अब पूरे तौर पर मिल रहा है । अब महाराष्ट्र भर में ज्ञानदेव के जीत औऱ उनके कामों की चर्चा हो रही है । लोग ज्ञानदेव के हौसले और इनके कामों की तारीफ करते थक नहीं रहे हैं और आज ज्ञानदेव अपने पूरे समाज के लिए उम्मीदों की किरण बनकर आई हैं कि समाज में उनका भी बराबरी का हक है।
- एपीएन न्यूज ब्यूरो