3 जून योजना: जब भारत के बंटवारे की नींव पड़ी, एक तारीख जिसने बदल दिया देश का नक्शा और भविष्य

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Mountbatten Plan: 3 जून 1947— एक तारीख जिसने सिर्फ एक देश का नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों के भविष्य का नक्शा बदल दिया। यह न सिर्फ एक राजनीतिक निर्णय था, बल्कि करोड़ों लोगों के जीवन, उनकी भावनाओं और देश के भूगोल को प्रभावित करने वाली एक ऐतिहासिक घोषणा भी थी। इस दिन ब्रिटिश शासन के अंतिम वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत के बंटवारे की औपचारिक घोषणा की थी, जिसे इतिहास में 3 जून योजना के रूप में जाना जाता है।

क्यों जरूरी हो गई थी ‘3 जून योजना’?

1947 में भारत उथल-पुथल से गुजर रहा था।

  • देशभर में जगह-जगह सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे।
  • केंद्र में कांग्रेस की अंतरिम सरकार थी, लेकिन कानून-व्यवस्था का अधिकार प्रांतों के पास होने के कारण हालात काबू से बाहर थे।
  • मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच कोई राजनीतिक सहमति नहीं बन पा रही थी।

ऐसे में लॉर्ड माउंटबेटन ने ब्रिटिश सरकार के समक्ष एक नया प्रस्ताव रखा, जिसे 3 जून को मंजूरी दी गई और भारत के बंटवारे की प्रक्रिया शुरू हो गई।

माउंटबेटन का ऐलान और बंटवारे की रूपरेखा

3 जून 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए देश को संबोधित किया और कहा, “यह योजना भारत को एकजुट रखने की हर कोशिश के बावजूद आवश्यक हो गई, क्योंकि कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच सहमति नहीं बन सकी।”

योजना के मुख्य बिंदु:

  • भारत का दो स्वतंत्र राष्ट्रों में विभाजन – भारत और पाकिस्तान।
  • पंजाब और बंगाल को धार्मिक आधार पर विभाजित करना।
  • विधानसभाओं के हिंदू और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में अलग-अलग मतदान
  • रियासतों को तीन विकल्प – भारत या पाकिस्तान में विलय या स्वतंत्र रहना।

रैडक्लिफ रेखा और विभाजन की लकीर

भारत और पाकिस्तान के बीच सीमाएं तय करने के लिए सिरिल रैडक्लिफ की अध्यक्षता में एक सीमा आयोग गठित किया गया।
उन्होंने केवल कुछ हफ्तों में सीमा रेखा खींच दी, जिसने इतिहास के पन्नों पर एक दर्दनाक लकीर छोड़ दी – जिसे हम आज ‘रैडक्लिफ लाइन’ के नाम से जानते हैं।

स्वतंत्रता की तारीख और उसका महत्व

माउंटबेटन योजना के तहत भारत को जून 1948 तक स्वतंत्रता देने की बात थी, लेकिन हालात को देखते हुए यह तारीख आगे बढ़ाकर 15 अगस्त 1947 कर दी गई। यही वह दिन बना जिसने दो नए देशों – भारत और पाकिस्तान – की नींव रखी।

रियासतों की भूमिका

देशी रियासतों को यह निर्णय लेना था कि वे भारत में मिलेंगी, पाकिस्तान का हिस्सा बनेंगी या स्वतंत्र रहेंगी। जिसके बाद कई रियासतों ने भारत में विलय का निर्णय लिया, वहीं कुछ ने अलग रास्ता अपनाया – जिनमें से एक जम्मू-कश्मीर जैसे मुद्दे आज भी विवाद का विषय बने हुए हैं।

3 जून 1947 सिर्फ एक तारीख नहीं थी, बल्कि एक ऐतिहासिक मोड़ था जिसने भारत का भूगोल, समाज, राजनीति और जनजीवन बदलकर रख दिया। यह दिन उस संघर्ष, स्वतंत्रता और विभाजन का प्रतीक है जिसने आज के भारत की नींव रखी।