पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने न्यूयार्क में एक ऐसी बात कह दी है, जो कि न तो भारत, न अफगानिस्तान और न ही पाकिस्तान के हित में है। यदि उनकी बात मान ली जाए तो उससे इन तीनों देशों का नुकसान ही नुकसान है। अब्बासी ने न्यूयार्क की कौंसिल आफ फारेन पालिसी में कह दिया कि अफगानिस्तान में भारत की कोई भूमिका नहीं है। शून्य भूमिका है। वहां भारत को कोई राजनीतिक या सामरिक भूमिका नहीं निभानी है। यदि वह अफगानिस्तान की आर्थिक सहायता करना चाहे तो यह उसकी मर्जी है। अब्बासी ने इतना लिहाज तो किया कि भारत की आर्थिक सहायता को गलत नहीं बताया लेकिन क्या दुनिया को यह पता नहीं है कि भारत द्वारा जब जरंज-दिलाराम सड़क बनाई जा रही थी तो उसके इंजीनियरों और मजदूरों की हत्या किसने की थी और जब भारत अफगान संसद भवन का निर्माण कर रहा था तो उस पर कहां से व्यंग्य-बाण छोड़े जा रहे थे। भारत ने अफगानिस्तान को पिछले 15 साल में 2 बिलियन डॉलर से ज्यादा की मदद दी है और उसके पहले भी बराबर सहायता करता रहा है। आज अफगानिस्तान में सबसे ज्यादा इज्जत किसी देश की है तो वह भारत की है, लेकिन आज तक उसने अफगान बादशाह या प्रधानमंत्री से कभी यह नहीं कहा कि वह पाकिस्तान के विरुद्ध हमारा समर्थन करे। भारत ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अफगानिस्तान से पाकिस्तान पर हमले के लिए कभी नहीं कहा। इसी तरह उसने कश्मीर पर कभी समर्थन नहीं मांगा। इतना ही नहीं, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जब-जब युद्ध की नौबत आई, भारत तटस्थ रहा। इसी प्रकार डूरेंड सीमा-रेखा और पख्तूनिस्तान के सवाल पर भी भारत मौन रहा। कहने का मतलब यह कि भारत ने अफगानिस्तान के साथ अपने संबंधों को बिल्कुल द्विपक्षीय ही रखा। उनसे पाकिस्तान को हानि पहुंचाने की कोशिश कभी नहीं की। यह तो मैं कई बार लिख चुका हूं और पाकिस्तान व अफगानिस्तान के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों से निवेदन कर चुका हूं कि यदि ये तीनों देश आपस में मिलकर काम करें तो पख्तूनिस्तान और कश्मीर की समस्याएं तो हल हो ही जाएंगी, संपूर्ण मध्य एशियाई देशों की अपार संपदा सारे दक्षिण एशिया को मालामाल कर देगी।
डा. वेद प्रताप वैदिक