इस वक्त हर तरफ मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाए जाने को लेकर चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री तक ने इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि इससे 140 करोड़ भारतीय शर्मसार हुए हैं। मामले में कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं लेकिन इस सब के बीच सोचने वाली बात ये है कि 2023 में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने जैसी घटना हो रही है, ऐसे में बतौर समाज हम खुद को कहां खड़ा पाते हैं? आज हम इस पर चर्चा भी तब कर रहे हैं जब सोशल मीडिया पर इसका वीडियो सामने आया है। ऐसे न जाने कितनी घटनाएं हुई होंगी। बीते महीनों में। बहरहाल।
तारीख गवाह रही है कि दुनिया के किसी भी हिस्से में त्रासदी , विवाद , जंग या तनाव जैसा कुछ भी हुआ, महिलाओं के प्रति यौन हिंसा हुई ही है। उदाहरण के लिए हमारे देश में बंटवारे की त्रासदी के दौरान भी महिलाओं के प्रति जमकर यौन हिंसा हुई। न सिर्फ इतिहासकारों बल्कि सरहद के दोनों ओर के साहित्यकारों ने भी इसको दर्ज किया कि कैसे हिंदू मुस्लिम नफरत महिलाओं के प्रति यौन हिंसा में बदल गई।
आजादी के बाद भी जब देश में जाति, धर्म या दूसरे कारण से तनाव पनपा तो उसने महिलाओं के प्रति हिंसा का रूप लिया। फूलन देवी हो या बिलकिस बानो। फूलन जहां जाति आधारित नफरत का शिकार हुई तो वहीं बिलकिस मजहबी हैवानियत का। मणिपुर में भी दों समुदायों के बीच तनाव महिलाओं को निर्वस्त्र किए जाने में बदल गया। इस पर सोचने की जरूरत है। खासकर इसके पीछे के मनोविज्ञान को डिकोड करने की जरूरत है।
मनोवैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो बतौर समाज लड़कियों के जन्म से हमारे प्रति उनकी धारणा ये रहती है कि वो घर की इज्जत हैं। यहां इज्जत सकारात्मक तौर पर नहीं नकारात्मक है। दरअसल महिलाओं की इज्जत संग डोर पुरुषों द्वारा बांधी गई है। जिस दिन महिलाओं के साथ इज्जत के पहलू को खत्म कर दिया जाएगा। उनके प्रति हिंसा भी खत्म हो जाएगी। महिलाओं को इज्जत का तमगा पुरुषों ने अपनी सुविधा के लिए दिया है। जिससे उनका पुरुष अहम संतुष्ट हो।
अब बात यह कि महिलाओं के साथ इज्जत का पहलू आया कहां से ? इसका जवाब ये है कि महिलाओं की संतान उत्पत्ति करने की जैविक क्षमता ने उन्हें इज्जत से जोड़ दिया। कुछ हद तक तो उनके प्रति वही नजरिया रहता है जैसा कि किसी मवेशी के प्रति। मणिपुर मामले से और साफ हो जाता है कि घटना को अंजाम देने वाले पीड़ितों को इंसान तो नहीं समझ रहे होंगे।
यदि महिलाओं को इंसान समझा जाता तो कभी इस पर इतना सवाल नहीं किया जाता कि उसका कौमार्य भंग हुआ है या नहीं। इसके अलावा उसके गर्भवती होने न होने को लेकर भी सवाल न होता। एक जगह पढ़ा था कि जो समाज मातृ्त्व का महिमामंडन करता है वही नाजायज औलाद जैसा शब्द भी इस्तेमाल करता है, ये दोहरा मापदंड क्यों। महिला से उत्पन्न संतान को भी वैध अवैध के नजरिए से समाज देखता है। इसलिए भी महिलाओं को इज्जत से जोड़ दिया गया।
समस्या सिर्फ हमारे समाज के साथ नहीं है। दिक्कत दुनिया भर के देशों में मौजूद है। जहां महिलाओं को इंसान नहीं समझा जाता। अब आप सोचेंगे कि क्या मुद्दा लैंगिक समानता से जुड़ा है। जी हां। लैंगिक समानता की शुरूआत आपके खुद के बेडरूम से होती है जहां पति पत्नी के साथ किसी भी तरह की जोर आजमाइश नहीं करता। इसके अलावा महिलाओं को संभोग की वस्तु के रूप में पेश किया जाना भी बंद किया जाना चाहिए। उन्हें सेकंड सेक्स या लैंगिक रूप से कमतर नहीं समझा जाना चाहिए। वहीं हमें महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को गंभीरता से लेना चाहिए। शुरुआत महिलाविरोधी संस्कृति को खत्म करने से भी की जा सकती है।