चुनावी सरगर्मी दिनोंदिन तेज होती जा रहा है। पांच राज्यों में चुनाव होने है पर यूपी के चुनाव में लोगों की नजर में सबसे ज्यादा है। क्योंकि एक और सपा–कांग्रेस का गठबंधन अखिलेश किसी भी हालत में सत्ता अपने पास रखने चाहते हैं वहीं मायावती ने भी मुक्तार अंसारी को टिकट देकर सत्ता के लिए कुछ भी करेगा की नीति दिखा दी है। प्रधानमंत्री मोदी के सासंदीय क्षेत्र वाराणसी क्षेत्र में भी टिकट को लेकर हंगामा मचा हुआ है। ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी बाहरियों के सहारे चुनावी बेड़ा पार कर पाएगी? एपीएन कार्यक्रम मुद्दा में एंकर हिमांशु के साथ मेहमान थे…
गोविन्द पंत राजू, सलाहकार संपादक एपीएन लखनऊ
अनिला सिंह, प्रवक्ता यूपी बीजेपी नोएडा
देवेन्द्र प्रताप सिंह, प्रवक्ता कांग्रेस
संजीव मिश्रा, प्रवक्ता
अनिला सिंह का मानना है कि पार्टी में चयन प्रकिया होती है उस प्रकिया में अगर पार्टी को लगता है कि किसी व्यक्ति को टिकट मिलना चाहिए तो मिलता है फिर चाहे वह किसी बड़े नेता का पुत्र हो या कोई रिश्तेदार हो। चुनाव जीतने के लिए लड़ा जाता है तो जो हमारे पार्टी में आ गया वह बाहरी कैसै रहा,वह तो हमारे परिवार का गो गया। एक मिनट पहले भी कोर्ई यहां आ जाए तो वह हमारे परिवार का हिस्सा बन जाता है। पहले वह गलत दल में थे अब सही दल में आ गए है, तो अब उनकी विचारधारा भी बदल जाएगी। हमारी पार्टी बाकी सभी से अलग है। कांग्रेस और सपा एक ही परिवार से चलती है, जबकि भाजपा अनेक परिवारों से चलती है।
देवेन्द्र प्रताप का मानना है कि बीजेपी की विचाकधारा हमेशा से गलत रही है। यह लोग जो बोलते है वो करते नही है। इनके घोषणापत्र में जो होता है यह उसे कभा पूरा नही करते। कांग्रेस पार्टी सबसे पुरानी और जिम्मेदार पार्टी है। हमारी पार्टी का हर कार्यकर्ता अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाता है। कांग्रेस एक विचारधार और सिद्धांत की पार्टी है, लेकिन पार्टी में कुछ आस्तिन के सांप आ जाते है, जिसके लिए हम जिम्मेदार है और वहां हमसे चूक हुई है। लेकिन अब राहुल गांधी के नेत्तृव में पार्टी में कोई भी गलत विचारधारा वाला व्यक्ति नही रहेगा।
संजीव मिश्रा का कहना है, बीजेपी ने कहां था, सौ दिन में अच्छे दिन आएंगे लेकिन ढ़ाई साल में नही आ पाए बल्कि नोटबंदी से और बुरे दिन आ गए। इस हालात में यह लोग दूसरी पार्टी से आए भगोड़े पर ही भरोसा करेंगे। यही कारण हे कि भाजपा को एक मुख्यमंत्री का चेहरा भी उत्तर प्रदेश में नही मिल पाया। आरएलडी से सपा की कोई बात नही हुई कांग्रेस से बात हो रही थी तो गठबंधन हुआ। पार्टी में हुए टिकट बंटवारे से सब खुश है और जिन्हें टिकट नही मिला है उन्हें सरकार में कहीं और कोई पद दिया जाएगा।
गोविंद पंत राजू का मानना है कि चुनावी दौर में हर राजनीतिक दल एक दुकान की तरह है और उम्मीदवार उनके ग्राहक हैं। अगर 6-8 महीने पहले कोई व्यक्ति दल बदल करता है तो समझा जा सकता है कि उसकी विचारधारा चुनाव से पहले नई पार्टी के अनुकूल हो जाएगी, लेकिन कुछ घंटों या कुछ दिनों पहले अगर कोई व्यक्ति जो कुछ समय पार्टी जिस पार्टी के खिलाफ नारेबजी करता था वह कैसे बदल सकता है। चुनाव के कुछ समय पहले किया गया दल बदल या गठबंधन जनता के साथ धोखा या विश्वासघात है। ऐसे समय जनता को कोई पार्टी पसंद नही आती है।
उत्तराखंड में यूपी से ज्यादा खराब हालात है क्योंकि वह एक छोटा राज्य है। कांग्रेस ने भी वहां क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी हांलाकि उत्ताखंड में कांग्रेस और बीजेपी ही बड़ी पार्टी है लेकिन सरकार बनाने में क्षेत्रीय दलों का महत्व भी बढ़ जाता है। ऐसे में दल बदलना, गठबंधन करना यह सब पार्टियों की सत्ता बनाने की मजबूरी में किया जाता है, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान जनता को ही होता है।