चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चुनाव चिन्ह के रूप में साइकिल थमा दी है। इसे जहां मुलायम सिंह यादव के लिए एक सियासी हार के रूप में देखा जा रहा है वहीं ये सवाल भी उभर रहे हैं कि कहीं कुश्ती का ये महारथी फिर कोई बड़ा दांव तो नहीं खेल गया है। वो दांव जिससे एक ही बार में कई पहलवान चित्त कर दिये। कई ऐसी अनसुलझी पहेलियां है। जो अब भी रहस्य बनी हुई है। अगर इसे मुलायम सिंह यादव के नए दांव के रुप में भी मानकर चला जाये तो क्या इससे समाजवादी पार्टी को कोई बड़ा फायदा मिल सकता है।
मंगलवार 17 जनवरी को एपीएन न्यूज के खास कार्यक्रम मुद्दा में समाजवादी पार्टी के आपसी विवाद और चुनावी गठबंधन पर चर्चा हुई। इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इन लोगों में गोविंद पंत राजू (सलाहकार संपादक एपीएन न्यूज), अनुराग भदौरिया (नेता सपा), हरीश श्रीवास्तव ( प्रवक्ता यूपी बीजेपी), अनिल दुबे ( नेता आरजेडी), ओंमकार नाथ सिंह ( प्रदेश महासचिव यूपी कांग्रेस) व पार्सा वेंकटेश्वर राव (वरिष्ठ पत्रकार) शामिल थे। इस कार्यक्रम का संचालन एंकर अक्षय ने किया।
अनुराग भदौरिया ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी इस बात से बहुत चिन्तित रहती है कि कही सपा-कांग्रेस का गठबंधन तो नही हो रहा है। अखिलेश यादव पार्टी का चेहरा है और राष्ट्रीय अध्यक्ष है इसमें कोई दो राय नही है। लेकिन नेता जी के आशीर्वाद से ही चुनाव लड़ा जायेगा। नेता जी ने ही उनको मुख्यमंत्री बनाया था। मुलायम सिंह यादव का अस्तित्व पार्टी में सबसे बड़ा है।
ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि जिस तरह से स्टेज पर झगड़ा हुआ। आपस में तनातनी हुई उससे तो नहीं लगता कि ये सब पहले से रचित था। ये सोची समझी चाल तो नही लगती लेकिन इतना जरुर है कि जो बीजेपी की चाल थी कि धर्म निरपेक्ष दलों को छिन्न-भिन्न करके वो खुद आगे निकलना चाहते थे उसमें सफल नही हो पायें। अखिलेश को चाहिए की वो मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद लें व उनका हाथ अपने सर पर रखें। मुलायम सिंह यादव को भी खुश होना चाहिए कि उनके बेटे ने उचित शिक्षा लेकर उनको चित्त किया है।
हरीश श्रीवास्तव ने कहा कि बीजेपी के सामने कोई चुनौती नही है। बीजेपी कुशासन को यूपी से उखाड़ फेंकने और सुशासन को स्थापित करने के लिए मैदान में है। मोदी जी के काम से जनता उत्साहित है।
पार्सा वेंकटेश्वर राव ने कहा कि चुनाव आयोग के सामने अगर दोनों तरफ की बहस को देखा जाये तो ये साफ जाहिर है कि या तो मुलायम सिंह यादव की ओर कमजोर बहस की गई है या ये भी हो सकता है कि वो नरम रुख अपनाये हो। जो गठबंधन होने वाला है सपा-कांग्रेस में उससे जितेंगे इसका कोई भरोसा नहीं है। लोग वोट के जरिए जवाब देंगे कि अखिलेश सरकार ने 5 साल में क्या किया और क्या नहीं किया है।
गोविंद पंत राजू ने कहा कि बार-बार ये अटकलें लगाई जा रही थी कि ये सब कुछ सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है। ये विवाद दो व्यक्तियों के अहम का सवाल हो गया था। दोनों के अपने-अपने जो मुद्दे और सवाल थे उन पर जरा सा भी झुकने को तैयार नही थे। एक सीमा के बाद ये झगड़ा दोनों पक्षों के नियंत्रण के बाहर हो गया था। मुलायम सिंह यादव के राजनैतिक जीवन की ये सबसे बड़ी पराजय है। उत्तर प्रदेश पिछले 30 साल से जो पिछड़ रहा है उसकी बड़ी वजह ये है कि उत्तर प्रदेश में जो राजनीति है वो धर्म और जाति के ईर्दगिर्द घुमती है।