Supreme Court: आखिरकार 10 दिन तक चली सुनवाई के बाद कर्नाटक हिजाब मामले में कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है।सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि कर्नाटक हाईकोर्ट का हिजाब पर दिया गया फैसला सही है या नहीं। कर्नाटक हिजाब मामला मुस्लिम छात्रा की ओर से दुष्यंत दवे ने जवाबी पक्ष रखते हुए SG के द्वारा PFI का मुद्दा उठाया। जिसमें कहा गया था कि PFI ने सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने के लिए अभियान चलाया।
दवे ने कहा कि सरकारी सर्कुलर में कहीं भी PFI का जिक्र नहीं था, लेकिन SG ने इसका जिक्र किया। SG का PFI को लेकर पूरे इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में हेडलाइन के बन गई।दवे ने कहा कि कल ही जस्टिस केएम जोसफ ने बताया है कि किस तरह मीडिया नफरत फैला रहा है।हालांकि जस्टिस गुप्ता ने दवे से कहा कि वह तो यह बता रहे थे कि पूरी घटना कैसे हुई?दवे ने कहा कि लेकिन आप बाहर की चीजों को मामले में नहीं ला सकते।जस्टिस गुप्ता ने पूछा क्या आपका स्टैंड है कि वर्ष 2021-22 से पहले कोई ड्रेस कोड नहीं था।
दवे ने जवाब में कहा कि हमारा मामला यह है कि हिजाब पर कभी आपत्ति नहीं हुई। हमारा मसला स्वैच्छिक प्रथा है।इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि यहां मसला ड्रेस का है।जिस पर हम चर्चा कर रहे हैं,दवे ने कहा कि ड्रेस अनिवार्य नहीं थी। इस तरह हिजाब पर बैन नहीं लगाया जा सकता।जस्टिस धूलिया ने कहा कि मुद्दा यह नहीं है कि छात्र इसे पहने हुए हैं या नहीं। यहां मुद्दा यह है कि आप हिजाब की अनुमति दे रहे हैं या नहीं।जस्टिस गुप्ता ने कहा कि सरकार का हिजाब को लेकर तर्क है कि यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
दवे ने कहा यह एक व्यक्तिगत पसंद है। इसलिए आवश्यक धार्मिक प्रथा के मसले को बहुत पहले ही खारिज कर दिया गया था। कुछ लोग अधिक धार्मिक होते हैं और हिजाब पहनते हैं। उन्होंने कहा कि हिजाब पर रोक को पिछले दरवाजे से लाया गया था।जस्टिस धूलिया ने कहा लेकिन याचिकाकर्ता का कहना है कि यह जरूरी है।दवे ने कहा की कुछ लोगों के लिए यह एक आवश्यक प्रथा है, कुछ लोग अधिक धार्मिक होते हैं तो कुछ अधिक सहिष्णु होते हैं।
Supreme Court: वकील सलमान खुर्शीद बोले- आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को परखने का अधिकार
वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कहा कि सरकार की तरफ से गाय की कुर्बानी, ट्रिपल तलाक, राम मंदिर का फैसला, जिसमें नमाज के लिए मस्जिद का जिक्र करते हुए दलील दी। जबकि कुरान में उनका जिक्र ही नहीं हुआ है।खुर्शीद ने कहा कि ट्रिपल तलाक के फैसले की दलील दी गई। जस्टिस कुरियन जोसफ का फैसला है कि उन्होंने कुरान का अध्ययन किया है। उसमें कुरान में कहीं भी 3 तलाक का जिक्र नहीं किया है।
उन्होंने कहा कि यहां अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख करना होगा। जहां एक मस्जिद में नमाज अदा करने की अनिवार्य प्रथा का मुद्दा था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद अनिवार्य प्रथा नहीं है। कुरान यह नहीं कहता कि आपको नमाज मस्जिद में ही पढ़नी चाहिए।
खुर्शीद ने कहा की सरकार की तरफ से कोर्ट में हिजाब बैन को लेकर फ्रांस और तुर्की का हवाला दिया गया। जबकि फ्रांस में तो क्रॉस भी नहीं देखा जा सकता है।
ऐसा इसलिए कि वहां धार्मिक मान्यताओं की अभिव्यक्ति वाली कोई भी चीज प्रदर्शित नहीं की जा सकती।
खुर्शीद ने सुप्रीम कोर्ट को धर्म को बिना रुकावट मानने की आजादी के अनुछेद- 25 के तहत अधिकारों को संतुलित करने के लिए आवश्यक धार्मिक प्रथाओं को परखने का अधिकार है।
खुर्शीद ने कहा कि हालांकि हिजाब अनुछेद 51 ए का मुद्दा है। हम बता चुके हैं कि आर्टिकल 51ए के तहत मिश्रित संस्कृति अपनाने का प्रावधान है फिर भी विविधता का सम्मान नहीं किया जा रहा है।
Supreme Court: हुजेफा ने सरकारी आदेश अवैध बताया
हुजेफा अहमदी ने जवाबी पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार ने पहले कहा कि वो याचिकाओं पर जवाब दाखिल नहीं करेंगे। उन्होंने पहले कहा कि वे अपीलों का जवाब दाखिल नहीं करना चाहते।जबकि PFI के खिलाफ सीलबंद लिफाफे में चार्जशीट दाखिल करना चाहते थे।इस पर जस्टिस गुप्ता ने कहा कि सरकार चार्जशीट दाखिल करने को तैयार थी, लेकिन फिर हमने सोचा कि यहां इसकी जरूरत नहीं है। यह सरकार ने जमा करने लिए नहीं कहा था बल्कि यह हमारी मांग थी।
अहमदी ने कहा कि सरकार ने अपनी पूरी दलीलों में कहीं भी नहीं बता पाई कि हिजाब पहनने के कारण किसके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ?
इसे लेकर सरकार द्वारा कुछ भी नहीं दिखाया गया है।
जब कोई लड़की हिजाब पहनती है तो कोई दूसरे क्यों भड़के ?उन्होंने कहा कि सरकार का यह सुझाव कि यह सार्वजनिक व्यवस्था का मुद्दा है।जोकि बिल्कुल बचकाना है। ये सुशासन नहीं बल्कि यह प्रभाव वाले समूहों के आगे झुकने और धमकाने के जैसा है।यह सरकारी आदेश अवैध है।
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