सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (28 मार्च) को एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी दीवानी और आपराधिक मुकदमे की कार्रवाई पर छह महीने से अधिक रोक नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जिन मुकदमों की कार्रवाई पर पहले से रोक लगी हुई है, उस पर रोक अब से छह महीने बाद खत्म हो जाएगी। सर्वोच्च अदालत का ये आदेश लंबित मामलों के बोझ को कम करने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा है कि कुछ अपवाद मामलों में कार्यवाही पर रोक छह महीने से अधिक जारी रह सकती है लेकिन इसके लिए अदालत को बाकायदा आदेश पारित करना होगा।
जस्टिस एके गोयल, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की तीन जजों की बेंच ने यह महत्वपूर्ण फैसला दो जजों की पीठ के संदर्भ के जवाब में दिया है। जिसमें हाईकोर्ट के भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत आरोप तय करने और ट्रायल पर स्टे करने के क्षेत्राधिकार को चुनौती दी गई थी। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट को आरोप तय करने के आदेश पर स्टे लगाने का क्षेत्राधिकार है लेकिन यह क्षेत्राधिकार दुर्लभ से दुर्लभतम केसों तक ही सीमिति रहना चाहिए। यहां तक कि जब आरोप तय करने के आदेश को चुनौती दी गई हो, तो ऐसी याचिकाओं पर फैसले में देरी नहीं होनी चाहिए।
बेंच ने कहा कि अगर किसी मामले में स्टे दिया गया है तो यह बिना शर्त और अनिश्चितकाल के लिए नहीं होना चाहिए। इस मामले में उचित शर्त लगानी जानी चाहिए ताकि जिस पक्ष के लिए स्टे लगाया गया है उसे उसके केस में मेरिट नी पाए जाने पर जिम्मेदार ठहराया जा सके।
देश की निचली अदालतों में ढाई करोड़ से ज्यादा मुकदमे लंबित हैं जिनमें अधिकतर हाईकोर्ट के स्टे आदेशों की वजह से लंबित हैं। 31 मार्च 2017 तक कुछ राज्यों की निचली अदालतों पर नजर डालें तों उत्तर प्रदेश में इकसठ लाख से ज्यादा केस लंबित हैं। वहीं बिहार में करीब साढ़े इक्कीस लाख, दिल्ली में साढ़े छह लाख से ज्यादा, उत्तराखंड में करीब दो लाख और झारखंड में 33 हजार मामले लंबित हैं।
अब उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से मामलों में स्टे लेकर उन्हें लटकाने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी और मुकदमें तेजी से निपटाए जा सकेंगे।