सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान नायर सर्विस सोसाइटी की ओर से वरिष्ठ वकील के पाराशरन ने दलील रखी कि हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है और हिन्दू नियम-कायदे और परंपराएं भेदभाव नहीं करतीं। उन्होंने कहा कि सती प्रथा का हिन्दू धर्म और आस्था में कोई आधार नहीं रहा है। पाराशरन ने ये भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के प्रावधान धार्मिक स्थलों और संस्थानों पर लागू नहीं होते। उन्होंने हिंदू धर्म की व्याख्या करते हुए कोर्ट में कहा कि यहाँ ब्रह्मा की भूमिका “विधायिका” वाली है जबकि विष्णु “कार्यपालिका” और शिव “न्यायपालिका” की भूमिका में हैं। उन्होंने ये भी कहा कि इसीलिए शिव अर्द्धनारीश्वर है। और उनका ये रूप अनुच्छेद 14 जैसा है यानी सबको बराबर का अधिकार।

उन्होंने कहा कि उनकी राय है कि सबरीमाला मंदिर में 60 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को ही प्रवेश करने की मंजूरी मिले। उनके मुताबिक अयप्पा स्वामी की मान्यता ब्रह्मचारी के रूप में है। पाराशरन ने ये भी कहा कि अगर कोर्ट सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज को सुन रहा है तो उनकी बात भी सुनी जानी चाहिए जो परंपरा को जीवित रखने के लिए आवाज उठा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 (2) (b) की व्याख्या ज़रूरी है। इस अऩुच्छेद की एक धारा सरकार को कानून बनाने का अधिकार देती है लेकिन सबरीमाला के मामले में इसमें छूट है।

इस पर जस्टिस नरीमन ने पूछा कि क्या अनुच्छेद 25 (2) (b) के तहत दलित महिलाएं भी आती हैं। तो पाराशरन का सीधा जवाब था कि कानून वर्ग आधारित है, लिंग आधारित नहीं। उनकी दलील थी कि अगर अनुच्छेद 25 (2) (b) महिलाओं पर लागू हों तो फिर धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर सभी महिलाओं पर लागू हों। सिर्फ हिन्दू महिलाओं पर ही लागू न हों क्योंकि ऐसा करना धर्म विशेष के प्रति भेदभाव करना होगा। पाराशरन ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि उनके ऊपर दो दायित्व है कि कोर्ट में मौजूद माई लॉर्ड के आगे अपना पक्ष रखना और दूसरा उस लॉर्ड के आगे जो हम सब से ऊपर है। मामले में सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी। गुरुवार को सबरीमाला मन्दिर के पुजारी की ओर से दलीलें रखी जाएंगी।

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