गर्भ में पल रहे बच्चे के लिंग जांच के तरीकों की जानकारी इंटरनेट से हटाने की मांग करने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (13 दिसंबर) को सुनवाई हुई।
पीठ ने कहा कि सरकार अकेले इस काम को नहीं कर सकती है। कोर्ट ने अपने आदेश पर बनी नोडल एजेंसी को गूगल,माइक्रोसॉफ्ट,याहू और याचिकाकर्ता के साथ बैठक कर मामले का हल निकालने को कहा। एजेंसी 6 हफ्ते में बैठक बुलाएगी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि अगर वह भविष्य में नोडल एजेंसी के काम से असंतुष्ट होता है तो दोबारा याचिका दाखिल कर सकता है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया। मामले पर 9 साल से सुनवाई चल रही थी।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ को केंद्र सरकार की तरफ बताया गया कि लाखों वेबसाइटों और अरबों पेजों को खंगालकर उसके बीच से इसे ढूंढना भूसे के ढेर में से गेंहू को अलग करने जैसा था। इसके लिए बेहद कठिन प्रक्रिया से गुजरना पड़ा और सर्च इंजन गूगल की मदद ली गई। गूगल और उसकी सहायक यूट्यूब को आपत्तियों के बारे में बताया गया जिसके बाद संदेश को 48 घंटे के अंदर हटा दिया गया।
कोर्ट मे यह पूरा मामला एक जनहित याचिका(PIL) के माध्यम से आया। अपनी याचिका में याचिकाकर्ता सबा मैथ्यू जॉर्ज ने कहा कि गर्भधारण पूर्व एवं प्रसव पूर्व तकनीकी (लिंग निर्धारण का वर्जन) अधिनियम 1994 के कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए इंटरनेट पर भ्रूण लिंग निर्धारण टेस्ट के विज्ञापन मौजूद हैं।
याचिकाकर्ता ने कहा कि अभी तक उल्लंघन के 50 हज़ार मामले सामने आए हैं। लेकिन गूगल और फेसबुक इन पर किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं ले रहे हैं और वह भारत सरकार को इसमें दोषी ठहरा रहे हैं। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने उदहारण देकर बताया कि इंटरनेट पर खोज के लिए ‘लिंग निर्धारण’ जैसे खास शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। सिंघवी ने कहा कि हम इन विज्ञापनों पर रोक के लिए नहीं कह रहे हैं बल्कि उन वेबसाइटों को ब्लॉक करने के लिए कह रहे हैं। याचिकाकर्ता की तरफ से यह भी कहा गया कि इंटरनेट पर इस तरह के शब्दों की खोज के लिए कोई नीति होनी चाहिए। यूट्यूब पर खोज करें तो लिंग निर्धारण से जुड़े 19 हज़ार परिणाम दिख जाएंगे।
सरकार की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हम जहां तक संभव है इस तरह की सामग्री को हटा रहे हैं लेकिन इन्हें एक-एक करके ढूंढना और हटा पाना बेहद मुश्किल है।