सरकारी नौकरियों में अऩुसूचित जाति और जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 2006 में नागराज मामले के फैसले पर पुनर्विचार किया जाए। केंद्र ने कहा कि इस फैसले में जो शर्त रखी गई हैं उनका हर मामले में पालन करना संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अब 9 अगस्त को होगी।
सरकारी नौकरियों में एससी/एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने शुक्रवार (3 अगस्त) को सुनवाई के दौरान सरकार से पूछा कि एससी-एसटी आरक्षण के मुद्दे पर कोर्ट को अपने 12 साल पुराने फैसले की समीक्षा की जरूरत क्यों है? इस पर केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि 2006 का सुप्रीम कोर्ट का नागराज मामले का फैसला ऐसी प्रमोशनों में बाधा बन रहा है।
2006 में आये इस फैसले में कहा गया था कि प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले यह साबित करना होगा कि सेवा में एससी और एसटी का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसके लिए डेटा देना होगा। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि नौकरियों में SC/ST के अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को कैसे साबित करेंगे? क्या यह हर पद के लिए होगा? या क्या पूरे विभाग के लिए होगा? उन्होंने पूछा कि यह सारे मापदंड कैसे निर्धारित होंगे? उन्होंने कहा कि SC/ST समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा रहा है और SC/ST में पिछड़ेपन को साबित करने की ज़रूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि 1000 साल से SC/ST जो भुगत रहे है, उसे संतुलित करने के लिए एससी/एसटी को आरक्षण दिया गया है। एजी ने कहा कि ये लोग आज भी उत्पीड़न के शिकार हो रहे है।
AG ने दलील रखी कि सरकार SC/ST समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों में 22.5 फीसदी पदों पर प्रमोशन में रिजर्वेशन चाहती है। केवल यही संख्या नौकरियों में उनके वाजिब प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित कर सकती है। अटॉनी जनरल ने कहा कि इस फैसले में आरक्षण दिये जाने के लिए दी गई शर्तो पर हर केस के लिए अमल करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। अब इस मामले में 9 अगस्त को सुनवाई होगी।
संविधान पीठ सरकारी नौकरियों की पदोन्नति में ‘क्रीमी लेयर’ के लिए एससी-एसटी आरक्षण के मुद्दे पर अपने 12 साल पुराने फैसले की समीक्षा कर रही है। पीठ इस बात पर भी विचार कर रही है कि इस मुद्दे को पुनर्विचार के लिए सात जजों की पीठ को भेजे जाने की जरूरत है या नहीं।