दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार (3 जनवरी) को नई हज नीति को रद्द करने के लिए दायर की गई एक याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। इस नीति में विकलांगों को हज यात्रा के लिए आवेदन करने पर रोक लगाई गई है।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी हज (2018 – 2022) के दिशानिर्देशों में यह बताया गया है कि जो लोग शारीरिक रुप और मानसिक रूप से अक्षम हैं वह हज के लिए आवेदन नहीं कर सकते हैं।
विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता इस नीति का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस नीति के दिशानिर्देश भेदभावपूर्ण और अनुचित हैं क्योंकि इनमें विकलांगों के लिए “अपंग” और “पागल” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। विकलांगता अधिकार कार्यकर्ताओं ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को भी पत्र लिखकर इस बारे में अवगत कराया है। अपने पत्र में कार्यकर्ताओं ने लिखा है कि इस नीति के दिशानिर्देश न केवल विकलांग लोगों के प्रति भेदभाव हैं बल्कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम (RPWDA) 2016 के अधिकारों का भी उल्लंघन है। जो समानता और किसी भी तरह का भेदभाव ना करने की बात करता है।
नेशनल प्लेटफ़ॉर्म फॉर द राइट्स ऑफ द डिसएबल (NPRD) के सचिव मुरलीधरन ने कहा कि उन्होंने अपने पत्र में मुख्तार अब्बास नकवी से इन भेदभावपूर्ण प्रावधानों को हटाने के लिए कहा है साथ ही इस मामले में संसद के कुछ सदस्यों के साथ चर्चा की है और उम्मीद है कि यह सांसद मौजूदा शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में इस मामले को उठाएंगे। कार्यकर्ताओं का कहना है कि सऊदी अरब विकलांग लोगों को हज पर आने से नहीं रोकता है और उसने पिछले कुछ वर्षों में ऐसे लोगों के लिए हज यात्रा को अधिक आसान बना दिया है।
यह पूरा मामला उस वक्त सामने आया जब दिल्ली के एक 34 वर्षीय सोशल वर्कर फैसल नवाज़ ने हज के लिए आवेदन करने की मांग की। फैसल स्कोलियोसिस नाम की बिमारी से पीड़ित हैं और अक्सर व्हीलचेयर और ऑक्सीजन सिलेंडर पर निर्भर रहते हैं। फैसल ने बताया कि पिछले साल उनके पिता उन्हें अपने साथ हज के लिए ले जाना चहते थे। उस वक्त आवेदन करते वक्त मुझे पता चला कि विकलांग हज नीति के नियमों के मुताबिक आवेदन नहीं कर सकते हैं।